विधानसभा चुनाव से पहले महाराष्ट्र का सियासी पारा हाई है. राजनीतिक पार्टियां तैयारियों में जुटी हैं. इस बीच बुधवार से मुंबई के ताज लैंड्स एंड (होटल) में इंडिया टुडे कॉन्क्लेव (India Today Conclave 2024) का आगाज हो चुका है. इसमें राजनीति से लेकर फिल्म और बिजनेस इंडस्ट्री तक के कई दिग्गज शामिल हो रहे हैं. दो दिन तक चलने वाले इस कॉन्क्लेव के पहले दिन 'RSS के लिए आगे क्या?' सेशन में संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने बेबाकी से कई सवालों के जवाब दिए.
इस दौरान उन्होंने आरएसएस के विजन पर बात करते हुए कहा कि आरएसएस सामाजिक संगठन होने के नाते देश के विकास के लिए काम करता है. संगठन की आइडियोलॉजी थी कि किसी को भी किसी पर निर्भर नहीं होना चाहिए. हमने अभी तक जो काम किया वो ये ध्यान में रखकर किया है कि समाज के हर वर्ग से लोग तैयार हो जाए और आगे आ जाए. इसके लिए हमने एक नेटवर्क बनाने का काम किया है. इसके पीछे की योजना ये है कि आने वाले समय में भारत ऐसा हो कि किसी पर निर्भर न होना पड़े. किसी को गरीबी से जूझना न पड़े. हमारी स्टोरी आने वाले समय में ऐसी होगी कि हर एक को ऑपर्टूनिटी मिले.
उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी बात हमारे देश में सोशल हार्मनी की है. समाज में जो कई फॉल्ट लाइन्स के कारण कई सारी बाते उठती हैं, तो पूरा समाज एक होकर चले, ये एक बेसिक आइडिया है. हमारा देश और हम इस पर रहे कि हमारे पास पोटेंशियल है. कॉन्फिडेंस है कि हम आगे बढ़ सकते हैं. हम चाहते हैं कि देश युवाओं में ऐसा जोश बन जाए. मैं देख रहा हूं कि आज युवाओं में ऐसा जोश देखने को भी मिल रहा है.
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पिछले 10 साल में संघ की नजर से देश में क्या अच्छा हुआ और क्या बुरा हुआ? इस पर सुनील आंबेकर ने कहा कि पहले हम देखते थे कि देश में बहुत सारे चैलेंज हैं. वो अभी भी चैलेंज ही हैं. उसके लिए हमें बहुत सारा काम करना होगा. दुनिया अब भारत की क्षमता और शक्ति को पहचानती है. दुनिया विज्ञान और अर्थव्यवस्था सहित कई क्षेत्रों में प्रगति के कारण भारत की क्षमता को देखती है. पहले लोगों को लगता था कि भारत शायद आगे नहीं बढ़ पाएगा. हालांकि, पिछले 10-20 सालों में यहां रहने वाले और यहां तक कि विदेश में रहने वाले भारतीयों को भी एहसास हुआ है कि आगे बढ़ने की प्रबल संभावना है. अभी भी कुछ चुनौतियां हैं जो भारत को चिंतित करती हैं. अभी भी सामाजिक असमानता एक चिंता का विषय बनी हुई है, और हम सभी को सामाजिक सद्भाव हासिल करने के लिए बहुत काम करना होगा. इसमें राजनीतिक दलों की भूमिका है, लेकिन इसे हासिल करने के लिए समाज की भूमिका और भी बड़ी है.
संघ में महिलाओं की भागीदारी पर क्या बोले आंबेकर
संघ के कार्यक्रम में महिलाओं की भागेदारी और टॉप लीडरशिप में महिलाओं की कमी के सवाल पर उन्होंने कहा कि संघ का काम मुख्य रूप से मैदान में शाखा के माध्यम से होता है. इसलिए हमने 1925 में संघ बनाया. 1936 में राष्ट्रीय सेविका समिति बनी. तो जो शाखा लगती है, वहां काम अलग-अलग तरीके से होता है. जहां भी नेशन बिल्डिंग की बात आती है, जितने भी देश से संबंधित मुद्दे होती हैं, उनमें महिलाओं की भागीदारी तय होती है. संघ की शाखा का जो स्ट्रक्चर बना है, उसमें पुरुष आते हैं. समिति में महिलाएं आती हैं.
RSS का हिस्सा बनने वाले लोग अच्छे काम करना चाहते हैं: सुनील आंबेकर
जब उनसे पूछा गया कि क्या लोग इसलिए संगठन में शामिल हो रहे हैं क्योंकि इससे उनके राजनीतिक विकास को बढ़ावा मिलेगा या उनकी राजनीतिक यात्रा को बढ़ावा मिलेगा, तो आंबेकर ने कहा कि संघ जमीन पर काम करता है. जो लोग आरएसएस का हिस्सा बन रहे हैं, वे समाज में अच्छे काम करना चाहते हैं। उन्होंने कहा, "संघ का ट्रेनिंग बहुत कठिन है, आपको हर रोज़ शाखा में जाना पड़ता है, इसमें बहुत ज़्यादा शारीरिक व्यायाम और अनुशासन शामिल होता है। हमारे पास हर रोज़ बहुत से लोग आते हैं जो बहुत अच्छा काम करना चाहते हैं। हमारे पास आईटी सेक्टर से बहुत से लोग आते हैं जो दूसरों की सेवा करना चाहते हैं। अगर कोई व्यक्ति राजनीतिक लाभ के बारे में सोचकर हमारे साथ जुड़ता भी है, तो आरएसएस से जुड़ने के कारण वे अपने आप ही अच्छे काम करने लगते हैं. कुछ होते हैं जो दूसरे कामों में जुट जाते हैं, हमें उससे फर्क नहीं पड़ता."
मणिपुर हिंसा पर भी रखे विचार
मणिपुर हिंसा और हालातों पर उन्होंने कहा कि मणिपुर की स्थिति बहुत चिंताजनक है. मोहन भागवत जी ने भी इस पर चिंता व्यक्त की है. संघ के कार्यकर्ता ग्राउंड पर जा रहे हैं. लोगों को समझा रहे हैं कि कैसे हम शांति से रहे. कार्यकर्ता लगातार वहां पर जुटे हुए हैं. समाज के हर व्यक्ति के पास पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं. हम लोगों ने कई बार कहा है कि इस हल जल्दी से जल्दी निकाला जाए. लेकिन इस तरह की स्थिति हो जाती है तो इनका हल जल्दी नहीं हो पाता. उम्मीद है समाधान जल्दी होगा. सरकार को चाहिए कि जो लोग हथियार लेकर आ रहे हैं. उन पर लगाम लगाए.
कई बार सरकार ऐसे फैसले लेती है, जहां संघ की सोच अलग होती है. उसमें कॉर्डिनेशन कैसे बनता है? इस पर आंबेकर ने कहा कि हम डेमोक्रेसी में हैं. इसमें अपने-अपने मत होते हैं. जैसे संघ के कार्यकर्ता काम करते हैं तो वो ग्राउंड पर जाते हैं. उनका अपना मत होता है. सरकार की अपनी साइड होती है. लीगल, पॉलिटिकल, फाइनेंशियल स्थिति क्या है किसी फैसले को लेकर. तो डेमोक्रेसी में सभी को हक है अपने-अपने फैसले लेने का. जैसे 10 मुद्दे हैं, 6 पर सहमति है, 4 पर नहीं होती तो संघर्ष चलता रहता है डेमोक्रेसी में.
बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा द्वारा लोकसभा चुनाव के दौरान आरएसएस को लेकर दिए गए बयान पर सुनील आंबेकर ने मुस्कुराते हुए कहा, "हम फैमिली मैटर को पारिवारिक मामलों की तरह ही सुलझाते हैं. हम ऐसे मुद्दों पर सार्वजनिक मंचों पर चर्चा नहीं करते."
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केजरीवाल के पांच सवालों पर दिया ये जवाब
केजरीवाल द्वारा आरएसएस से पांच सवाल पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि मुझे लगता है उनको राजनीति करनी चाहिए. राजनीति अपनी मेहनत से होती है. जमीन पर जाना पड़ता है. लोग आपकी मेहनत देखते हैं. उसी आधार पर वोट देते हैं. उसी को वो करें. ज्यादा फायदा होगा. संघ अपना काम करेगा. संघ का मानना है कि समाज के लोगों को हमेशा एकजुट रहना चाहिए. चाहे पॉलिटिकल सोच अलग-अलग हो. आज लोग समझ चुके हैं कि भारत की शक्ति एकजुटता में है. कुछ दिनों तक लोगों को भ्रमित किया जा सकता है लेकिन हमेशा के लिए नहीं. संघ का काम है लंबे समय तक काम करने का तो हम 5 साल तक सरकार बनाने वाली पार्टियों की तरह नहीं सोचते.
जातिगत जनगणना के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि हमारे समाज में और खासकर हिंदू समाज में निश्चितरूप से कुछ लोग जाति के नाम पर बात करने के कारण पीछे रह गए. ये हमारे समाज की वास्तविक फॉल्ट लाइन है. सरकार अगर लोगों के वेलफेयर के लिए आंकड़े जुटाना चाहती है तो ये ठीक है. लेकिन इसका राजनीतिकरण करना और वोट बंटोरने के लिए इस्तेमाल करना बहुत गलत है.
धर्मांतरण मुद्दे को राजनीतिक रंग देना गलत: आंबेकर
कॉन्क्लेव के दौरान, आंबेकर से जबरन धर्मांतरण पर आरएसएस के विचारों और इस समस्या से निपटने के लिए संगठन द्वारा की जाने वाली पहलों के बारे में पूछा गया. इस पर उन्होंने कहा कि "जबरन धर्मांतरण गलत है, चाहे किसी को लालच देकर हो या फिर झूठ बोलकर या डरा-धमकाकर. स्वाभाविक रूप से, जब भी यह सामने आता है, इसका विरोध किया जाता है और हम इसके खिलाफ बोलने वालों के साथ खड़े होते हैं. जहां भी यह समस्या उत्पन्न होती है, हम समाज के साथ मिलकर इसका समाधान करने के लिए इसके खिलाफ खड़े होते हैं और सभी कानूनी और आवश्यक विकल्पों पर विचार करते हैं. हालांकि, लोगों ने इस मुद्दे को राजनीतिक रंग दे दिया है, जो गलत है."