शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे के बागी तेवरों ने उद्धव सरकार को मुसीबत में डाल दिया है. तमाम कोशिशों के बावजूद शिवसेना अब तक एकनाथ शिंदे और बागी विधायकों को मनाने में सफल नहीं हो सकी है. यह वजह है कि संजय राउत ने महाराष्ट्र की विधानसभा भंग होने के संकेत तक दे दिए. महाराष्ट्र में ये पूरा घटनाक्रम विधान परिषद की 10 सीटों पर हुए चुनाव के बाद सामने आया. लेकिन एकनाथ शिंदे की ये बगावत कुछ ही घंटों की नहीं है, बल्कि इसकी शुरुआत 2019 में ही शुरू हो गई थी. आईए जानते हैं, किन वजहों से बागी हुए शिंदे...
1- एकनाथ शिंदे हमेशा से बीजेपी के साथ गठबंधन के पक्ष में थे. जब 2019 में उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस-एनसीपी के साथ सरकार बनाने का फैसला किया, तब भी वे बीजेपी के साथ गठबंधन में सरकार बनाने के पक्ष में थे. लेकिन आखिर में उद्धव ठाकरे की मर्जी के मुताबिक, एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन की सरकार बनी.
2- महाविकास अघाड़ी में शिंदे को शहरी विकास मंत्रालय दिया गया, लेकिन आदित्य ठाकरे के साथ कई मुद्दों पर विवाद रहा. बताया जा रहा है कि शिंदे अपने मंत्रालय में आदित्य ठाकरे के दखल से भी नाराज थे. यहां तक कि अन्य विभाग एमएसआरडीसी (राज्य सड़क विकास) में भी आदित्य को बड़ी परियोजनाओं के लिए चेहरे के रूप में पेश किया जा रहा था.
3- शिंदे ने राज्यसभा चुनाव में भी बीजेपी के साथ आने की राय रखी थी. यहां तक की बैठक में भी उन्होंने इसका प्रस्ताव रखा था. लेकिन संजय राउत ने इसका विरोध किया था.
4- शिवसेना के स्थापना दिवस पर उद्धव ठाकरे ने कहा था कि जो लोग बगावत करना चाहते हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि अगर शेर चला गया, तो सवा शेर आ गया है. ऐसे में एकनाथ शिंदे को एहसास हो गया था कि उनके दिन गिने चुने बचे हैं.
5- शिवसेना के कई विधायक एनसीपी के खिलाफ चुनाव लड़कर जीते थे. ऐसे में शिवसेना के विधायक नाखुश थे कि एनसीपी नेतृत्व अपने विधायकों को ज्यादा फंड के साथ मजबूत कर रहा है, जबकि शिवसेना के विधायकों को खाली हाथ रहना पड़ रहा है.
6- इतना ही नहीं शिवसेना विधायकों की शिकायत रही है कि उद्धव ठाकरे उन्हें मिलने के लिए समय नहीं देते थे. यहां कि वे कई बार शिवसेना के वरिष्ठ नेताओं से भी मुलाकात नहीं करते थे.