महाराष्ट्र के ज्यादातर इलाके भयंकर सूखे की चपेट में हैं, जबकि प्रदेश के नेता अजब-गजब बयान देकर जनता के दर्द में इजाफा ही करते नजर आ रहे हैं. आजतक की पड़ताल में सूखे को लेकर कई खुलासे हुए हैं, जो ऐसे हालात के लिए संवेदनहीन नेताओं को ही जिम्मेदार ठहराते हैं.
सूखे के हालात पर अगर नजर डालें, तो तस्वीरें सूखे की भी हैं, भूखे की भी, पानी की भी, बेईमानी की भी, पीर की भी, धीर की भी, लालच की भी और लूट की भी नजर आती हैं.
इस्तीफे के नाम पर आई पार्टी की याद
अभद्र बयान के कारण जब अजीत पवार के इस्तीफे की मांग उठी, तो उनका कहना था, 'मैंने पार्टी से वादा किया है कि बिना उनसे पूछे इस्तीफा नहीं दूंगा. मैं उनसे पूछकर इसके बारे में तय करूंगा.' अनुशासन के नाम पर अजीत पवार का ये उद्गार एक अघोषित अन्याय की प्रस्तावना थी. चाचा की चतुराई को भतीजे की छोटी-सी भेंट. दरअसल बूंद-बूंद को तरसते महाराष्ट्र में कुछ दोस्तों की तिजोरी में मुनाफ़े की बाढ़ का बंदोबस्त था ये.
क्या था अजीत पवार का बयान
अजीत पवार ने कहा था, उज्जनी बांध में जितना पानी था, दे दिया, अब पानी नहीं है. जब पानी ही नहीं है तो कहां से दें. क्या मैं उज्जनी डैम में पेशाब करूं? किसानों की बेबसी पर महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री का ये फूहड़, सस्ता और संवेदनहीन मज़ाक अपनी जगह और सच अपनी जगह. दरअसल झूठ बोल रहे थे अजीत पवार.
आजतक की पड़ताल में हुए खुलासे
आजतक ने इसकी पड़ताल के लिए उज्जनी डैम से लेकर भीमा-सीना लिंक तक का दौरा किया. पड़ताल में कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं.
शरद पवार ने की गुप्त बैठक
केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार इस काफिले के साथ एक गुप्त बैठक के सिलसिले में सोलापुर पहुंचे थे. पार्टी और सरकार के कई बड़े नेताओं की गुप्त बैठक. जिसमें शामिल थे महाराष्ट्र के जल संसाधन मंत्री लक्ष्मण राव ढोबले, एनसीपी के विधायक बब्बन राव शिंदे व अन्य नेता. इस गुप्त बैठक में इनकी उपस्थिति का महत्त्व तो जाहिर है, लेकिन पहले उस बैठक का एजेंडा जान लीजिए. उज्जनी बांध के पानी का स्तर देखने के लिए. आप कहेंगे कि ये काम तो बांध का चौकीदार कर सकता था, इसके लिए देश के कृषि मंत्री, राज्य के जलसंसाधन मंत्री, विधायकों और अफसरों के कुनबे की क्या ज़रूरत थी? जरूरत थी. ज़रूरत ये थी कि उज्जनी बांध की धारा को मुनाफे की तरफ मोड़ना था.
मुनाफाखोरी के लिए जारी है 'कसरत'
कांग्रेस के संजय पाटिल कहते हैं, 'दादा भाई ज़्यादा पानी छोड़ने के लिए मजबूर कर रहे हैं.' दादा भाई मतलब अजीत पवार. और पानी किसानों के लिए नहीं चीनी और शराब की फैक्ट्रियों के लिए.
इस गुप्त बैठक के अंदर क्या हुआ, नहीं पता लेकिन बाहर ये हुआ कि सोलापुर के उज्जनी बांध से पुणे की तरफ जाने वाले सीना लिंक में पानी छोड़ दिया गया. मतलब सोलापुर में ज़मीन फटी की फटी रह गई, किसान बिलखते रह गए, मवेशी मरते रह गए. और उन्हें बचाने के लिए बनाए गए उज्जनी बांध का अमृत कारोबारी कूट रहे थे.
किसानों के हक के पानी पर कुर्बान 'चाचा'
मुंबई के आजाद मैदान में सोलापुर के सैकड़ों किसान 65 दिन से धरने पर बैठे हैं. ये किसान कहते हैं कि हमारे खेतों के लिए उज्जनी डैम का पानी छोड़ो, नहीं तो हम मर जाएंगे. इस मांग
के जवाब में 6 अप्रैल को राज्य के उप मुख्यमंत्री अजीत पवार ने पुणे के निंबोडी गांव में सार्वजनिक तौर पर किसानों की मजबूरी का मज़ाक उड़ाया और एक बेहद ही हल्का बयान दे डाला.
अजीत पवार के इस अंधेर की असलियत की तलाश में आजतक संवाददाता पंकज खेलकर सोलापुर के उज्जनी डैम पहुंचे. इस बांध के हर बूंद में अजीत पवार के झूठ के डूब मरने की गहराई है.
कांग्रेस के संजय पाटिल कहते हैं, 'अजित पवार झूठे हैं, 60 टीएमसी पानी अभी भी डैम में है.' तो फिर झूठ क्यों बोला अजित पवार ने. और क्यों की गई थी सोलापुर में देश के कृषि मंत्री शरद पवार ने गुप्त बैठक?
फैक्ट्रियों को फायदा पहुंचाने की साजिश
दरअसल 16 अक्टूबर की गुप्त बैठक में ये तय हुआ था कि सोलापुर के उज्जनी बांध का पानी पुणे की तरफ जाने वाली सीना नहर की तरफ मोड़ दिया जाए. दरअसल सीना नहर के किनारे शरद पवार के चहेतों और एनसीपी से जुड़े नेताओं की चीनी और शराब की फैक्ट्रियां हैं.
एक चीनी मिल गुप्त बैठक के हिस्सेदार विधायक बब्बन शिंदे के भाई की है. विट्ठल शुगर फैक्ट्री. दूसरी चीनी मिल बरषी में महाराष्ट्र के सहकारिता मंत्री हर्षवर्द्धन पाटिल की है. तीसरी चीनी मिल एनसीपी के पूर्व विधायक राजन पाटिल की है मोहोल में. चौथी चीनी मिल उत्तरी सोलापुर में है एनसीपी के ही विधायक दिलीप माणे की. पांचवी चीनी मिल बब्बन शिंद के बेटे जवाहर की है. एक शराब फैक्ट्री भी बब्बन शिंदे के रिश्तेदार की है.
स्थानीय नेता कहते हैं कि राजनीति है. वो नहीं चाहते सोलापुर के किसानों का विकास हो. ये यूं ही नहीं है कि जब सोलापुर में बैठक की तस्वीरें कुछ पत्रकारों के हाथ लगीं तो सिंचाई विभाग के चीफ एक्जीक्यूटिव इंजीनियर की सांस हलक में अटक गई थी.
विकास की आड़ में लूट का खेल
जब एनसीपी से पूछा गया कि उज्जनी डैम से किसानों का हक मारकर कारोबारियों पर कृपा की नहर क्यों बहाई गई है तो प्रवक्ता नवाब मलिक ने कहा, 'कुछ लोग चाहते हैं कि महाराष्ट्र औद्योगिक विकास में अपने पड़ोसी राज्यों से पिछड़ जाए इसलिए वो प्रोपेगैंडा कर रहे हैं.'
ये अब एक सार्वजनिक रहस्य है कि 2003 से 2011 के बीच अजीत पवार महाराष्ट्र में सिंचाई की सबसे शक्तिशाली समिति के अध्यक्ष थे तो सूबे के पानी का हिसाब रखती है. लेकिन हर बार उन्होंने किसानों के आगे कारोबारियों को अहमियत दी.
एनसीपी की दलील अपनी जगह और किसानों का दर्द अपनी जगह. और इन दोनों सच्चाइयों के बीच एक षडयंत्र अपनी जगह जो आकार लेता है कारोबार और कोहराम की सीमारेखा पर खड़ी सियासत के संसार में.