scorecardresearch
 

51 साल बाद जब लता जी ने गाया 'ऐ मेरे वतन के लोगों'

बरसों से यह गीत शहादत को सलाम करता रहा है. इस गीत की 51वीं वर्षगांठ पर सोमवार को मुंबई में कार्यक्रम का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में शहीदों को श्रद्धांजलि के साथ ही सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर का भी सम्‍मान किया गया. लेकिन असल रंग तब भरा जब लता जी ने इस गीत के अंतरा को फिर से अमर कर दिया.

Advertisement
X
लता मंगेशकर
लता मंगेशकर

'ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी. जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी.'
बरसों से यह गीत शहादत को सलाम करता रहा है. इस गीत की 51वीं वर्षगांठ पर सोमवार को मुंबई में कार्यक्रम का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में शहीदों को श्रद्धांजलि के साथ ही सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर का भी सम्‍मान किया गया. लेकिन कार्यक्रम में असल रंग तब भरा जब मंच पर मौजूद नरेंद्र मोदी की फरमाइश पर लता जी ने इस गीत के अंतरा को फिर से अमर कर दिया.

Advertisement

रेसकोर्स ग्राउंड में आयोजित इस कार्यक्रम में नरेन्द्र मोदी के मुख्य अतिथि होने की वजह से सियासी सवाल भी उठे. लेकिन इस गीत का कोरस हर रंग पर भारी पड़ा. लता मंगेशकर ने 27 जनवरी 1963 में दिल्‍ली के नेशनल स्‍टेडियम में पहली बार जब यह गीत गया था तब सभी की आंखें नम हो गई थीं. 51 साल बाद 85 साल की लताजी ने जब आज भी मुंबई में जब अंतरा गाया तो यकीनन लाखों लोगों का गला रूंध गया.

...और खुलता चला गया यादों का मंजर
इस गीत के साथ ही लता जी को वह कहानी भी याद आई जब 51 साल पहले गाना सुनकर तत्‍कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी रोने लगे थे. नेशनल स्टेडियम का वो हर मंजर लता जी की जुबान में खुलता चला गया. कैसे इस गीत को अलख जगाना था. कैसे कवि प्रदीप ने इस गीत का ताना-बाना बुना था. बरसों तक कैसे श्रोताओं की तरफ से इस गीत के लिए जिद भरी फरमाइश होती रही.

Advertisement

तब नेहरू अब मोदी और कवि प्रदीप
आज से 51 साल पहले जब लता जी ने यह गीत गया तब मंच पर जवाहर लाल नेहरू थे, देश के पहले प्रधानमंत्री और आज नरेद्र मोदी, जो बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार हैं. इन दो चेहरे के साथ 51 साल में राष्ट्रवाद बदल चुका है. राष्ट्रवाद की परिभाषा पर आज सियासी विचारधाराएं एक दूसरे की विरोधी बनकर खड़ी हो जाती हैं, उसके निर्विवाद प्रतीक बनकर उभरे थे कवि प्रदीप. 30 के दशक से ही वो हिंदी कवि के रूप मशहूर थे. कवि सम्मेलनों और मुशायरों में उनकी अलग धाक जमा करती थी. उनकी कविताई और मंच से अदायगी से प्रभावित होकर महाकवि निराला ने 4 पन्‍नों का लेख दिया था.

समय आगे बढ़ा, 40 के दशक में जब प्रदीप ने फिल्मों का रुख किया तो उनकी आलोचना हुई. मगर यहां वो अपने अंदाज में ही गीत रचते रहे. उर्दू शायरों की बीच ऐसे हिंदी गीतकार के रूप में उभरे जो न सिर्फ प्रेमगीत लिख सकता था बल्कि देश भक्ति से लबरेज गीतों के बोल भी बुलंद करता था.

गीत लिखने से किया था मना
भारत-चीन जंग में हार के बाद 1963 में जब एक और देशभक्ति गीत लिखने का मौका आया, तो मायूस कवि ने पहले मना कर दिया. इसके पीछे शकील बदायुंनी का लिखा गीत 'अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं' था. कवि प्रदीप की नजर में इससे बेहतर गीत नहीं लिखा जा सकता था.

Advertisement

जंग में हार प्रदीप के सीने में नहीं खटक रही थी बल्कि उस दौर में मायूसी इतनी हावी थी कि कविताई भला क्या सूझती. लेकिन ये बात महबूब खान जैसे डायरेक्टर कहां मानने वाले थे. शहीदों के लिए कुछ नया लिखने की जिद लिए एक दिन तो वो प्रदीप के घर ही पहुंच गए.

महबूब खान के जाते ही कवि का मन अपनी धुन और कलम के साथ जुट गया. प्रदीप कई दिन गीत लिखने के लिए जूझते रहे. उस दिन वो समंदर के किनारे टहल रहे थे, जब जेहन में एक ख्याल कौंधा. ख्याल ये कि देश के आगे उन जवानों के लिए कोई जाति, धर्म या समुदाय नहीं. सबसे आगे वतन है.

सिगरेट के रैपर पर लिखा गीत
कवि प्रदीप को गाना तो सूझ गया, लेकिन लिखने के लिए तब उनके पास कागज का टुकड़ा नहीं था. ऐसे में उन्होंने जेब से सिगरेट का पैकेट निकाला और उसके अंदर सिल्वर वर्क वाला रैपर निकालर उस पर ये गीत लिखा. यह गीत 27 जनवरी 1963 को वो गीत दिल्ली के नेशनल स्टेडिम में लता जी के सूरों में गूंज रहा था. उस गीत पर भाव-विभोर हुए नेहरू जी की आंखों से झरझर गिर रहे थे. लेकिन वो ऐतिहासिक पल देखने के लिए कवि प्रदीप मौजूद नहीं थे.

Advertisement

कवि प्रदीप की बेटी मितुल पद्रीप के अनुसार, कार्यक्रम के हिस्‍सा लेने के लिए उनके पिता को नहीं बुलाया गया था.

लता जी ने वैसे तो हजारों गीत गाए, लेकिन यह गीत सुनकर उनकी आंखे आज भी भर आती है. वह इसे अपना सबसे पसंदीदा और सबसे असरदार गीत मानती हैं.

Advertisement
Advertisement