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कर्नाटक से विवाद के बीच महाराष्ट्र विधानसभा में प्रस्ताव पास, सीएम शिंदे बोले- 865 गांव कराएंगे शामिल

18 साल पहले 2004 में महाराष्ट्र सरकार इस सीमा विवाद को सुप्रीम कोर्ट लेकर गई थी. महाराष्ट्र सरकार ने 814 गांवों उसे सौंपने की मांग की थी. 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि इस मसले को आपसी बातचीत से हल किया जाना चाहिए. साथ ही ये भी सुझाव दिया था कि भाषाई आधार पर जोर नहीं देना चाहिए, क्योंकि इससे परेशानी और बढ़ सकती है.

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महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे (फाइल फोटो)
महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे (फाइल फोटो)

कर्नाटक के साथ जारी सीमा विवाद के बीच महाराष्ट्र विधानसभा में मंगलवार को एक प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास हुआ. प्रस्ताव के मुताबिक, कर्नाटक के 865 मराठी भाषी गांवों को राज्य में शामिल करने के लिए कानूनी रूप से आगे बढ़ा जाएगा. इस दौरान महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि राज्य सरकार 865 गांवों में मराठी भाषी लोगों के साथ मजबूती से खड़ी है. 

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मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने ये प्रस्ताव विधानसभा में पेश किया. उन्होने कहा कि कर्नाटक ने सीमा विवाद को जानबूझकर भड़काने के लिए इस मुद्दे पर प्रस्ताव पारित किया. उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र सरकार कर्नाटक के 865 मराठी भाषी गांव के साथ खड़ी है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार कर्नाटक के इन गांवों की इंच-इंच जमीन को शामिल करने के मामले को सुप्रीम कोर्ट में कानूनी रूप से आगे बढ़ाएगी. 

इससे पहले कर्नाटक विधानसभा में गुरुवार को सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास हुआ था. इसमें कर्नाटक के हितों की रक्षा करने और अपने पड़ोसी राज्य को एक भी इंच जमीन न देने का संकल्प किया गया था. इतना ही नहीं प्रस्ताव में कहा गया था कि ये विवाद महाराष्ट्र ने पैदा किया था और उसकी निंदा की जाती है. 

उद्धव ने शिंदे सरकार को घेरा

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इससे पहले सोमवार को उद्धव ठाकरे ने इस मुद्दे पर शिंदे सरकार को घेरा था. उन्होंने कहा था कि कर्नाटक के सीएम कह रहे हैं कि वो एक इंच भी ज़मीन नहीं देंगे. लेकिन उन्हें ये अच्छे से समझ लेना होगा कि हमें उनकी ज़मीन नहीं चाहिए, बल्कि हमें हमारा बेलगाम चाहिए. जो कि मराठी बहुल इलाका है. ऐसे में जब मामला सुप्रीम कोर्ट में है तो उसके बाद भी कर्नाटक सरकार द्वारा बेलगाम में रहने वाले मराठियों को तकलीफ क्यों दी जा रही है? उन्होंने विधान परिषद में मांग उठाते हुए कहा कि जब तक कर्नाटक महाराष्ट्र सीमा विवाद सुप्रीम कोर्ट में लम्बित है, तब तक बेलगाम को केंद्र शासित प्रदेश किया जाए. 

सुप्रीम कोर्ट में है मामला

18 साल पहले 2004 में महाराष्ट्र सरकार इस सीमा विवाद को सुप्रीम कोर्ट लेकर गई थी. महाराष्ट्र सरकार ने 814 गांवों उसे सौंपने की मांग की थी. 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि इस मसले को आपसी बातचीत से हल किया जाना चाहिए. साथ ही ये भी सुझाव दिया था कि भाषाई आधार पर जोर नहीं देना चाहिए, क्योंकि इससे परेशानी और बढ़ सकती है. ऐसे में इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 30 नवंबर को सुनवाई हुई थी.

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क्या है कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच का विवाद?

दरअसल, आजादी से पहले महाराष्ट्र को बंबई रियासत के नाम से जाना जाता था. आज के समय के कर्नाटक के विजयपुरा, बेलगावी, धारवाड़ और उत्तर कन्नड़ पहले बंबई रियासत का हिस्सा थे. आजादी के बाद जब राज्यों के पुनर्गठन का काम चल रहा था, तब बेलगावी नगर पालिका ने मांग की थी कि उसे प्रस्तावित महाराष्ट्र में शामिल किया जाए, क्योंकि यहां मराठी भाषी ज्यादा हैं. इसके बाद 1956 में जब भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का काम चल रहा था, तब महाराष्ट्र के कुछ नेताओं ने बेलगावी (पहले बेलगाम), निप्पणी, कारावार, खानापुर और नंदगाड को महाराष्ट्र का हिस्सा बनाने की मांग की.

जब मांग जोर पकड़ने लगी तो केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मेहर चंद महाजन की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया. इस आयोग ने 1967 में अपनी रिपोर्ट सौंपी. आयोग ने निप्पणी, खानापुर और नांदगाड सहित 262 गांव महाराष्ट्र को देने का सुझाव दिया. इस पर महाराष्ट्र ने आपत्ति जताई, क्योंकि वो बेलगावी सहित 814 गांवों की मांग कर रहा था. महाराष्ट्र का कहना है कि कर्नाटक के हिस्से में शामिल उन गांवों को उसमें मिलाया जाए, क्योंकि वहां मराठी बोलने वालों की आबादी ज्यादा है. लेकिन कर्नाटक भाषाई आधार पर राज्यों के गठन और 1967 की महाजन आयोग की रिपोर्ट को ही मानता है.

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कर्नाटक, बेलगावी को अपना अटूट हिस्सा बताता है. वहां सुवर्ण विधान सौध का गठन भी किया गया है, जहां हर साल विधानसभा सत्र होता है. विधानसभा का विंटर सेशन बेलगावी में 19 से 30 दिसंबर तक होगा.

 

 

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