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फडनवीस चले आनंदी की राह, पाटीदार आंदोलन की तर्ज पर मराठा मोर्चा

राज्य में विकासपुरुष की इमेज बनाने में जुटे फडनवीस को अब यह कहना पड़ा है, 'मैं कितने दिन तक मुख्यमंत्री पद पर रहूंगा, इसकी मुझे कोई परवाह नहीं है. लेकिन जब तक मुख्यमंत्री पद पर हूं, तब तक परिवर्तन के लिए काम करता रहूंगा.'

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मराठा मोर्चा
मराठा मोर्चा

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महाराष्ट्र के मराठा समाज की गोलबंदी अब विशाल आंदोलन का रूप लेने जा रही है. नासिक के बाद रविवार को पुणे में मराठा मौन मोर्चा के नाम पर लाखों की भीड़ जुटी. इस जनसैलाब ने सूबे के सीएम देवेंद्र फडनवीस को यह बयान देने पर मजबूर कर दिया कि मराठा समुदाय को आरक्षण मिलना चाहिए.

मराठा मोर्चे का 'बिना चेहरे वाला लीडर'
खास बात है कि इन बड़े मोर्चों का नेतृत्व ना तो कोई नेता कर रहा है और ना कोई राजनीतिक पार्टी. जिससे महाराष्ट्र की पार्टियों का परेशान होना भी स्वाभाविक है. राजनीति के जानकर इस आंदोलन की तुलना गुजरात के पाटीदार आंदोलन से भी कर रहे हैं. लेकिन मराठा मोर्चा की अगुआई पाटीदार आंदोलन के नेता हार्द‍िक पटेल जैसे किसी शख्स के हाथ में नहीं है. यहां तक कहा जा रहा है कि सोशल मीडिया मराठा मोर्चा का 'बिना चेहरे वाला लीडर' है.

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जब गुजरात में हुआ पाटीदार आंदोलन
अक्टूबर 2014 में महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी की सरकार बनी. संघ की पृष्ठभूमि वाले और मोदी की पसंद फडनवीस ने सूबे में सत्ता की कमान संभाली. नरेंद्र मोदी जब पीएम बने थे, तो गुजरात की सत्ता आनंदीबेन पटेल को सौंप गए. आनंदीबेन को पिछले साल पाटीदार आरक्षण आंदोलन का सामना करना पड़ा था. इस आंदोलन को काबू करने में आनंदीबेन पूरी तरह विफल रहीं. इसके अलावा कुछ अन्य कारणों की वजह से आनंदीबेन को कुर्सी भी गंवानी पड़ी.

राज्य में विकासपुरुष की इमेज बनाने में जुटे फडनवीस को अब यह कहना पड़ा है, 'मैं कितने दिन तक मुख्यमंत्री पद पर रहूंगा, इसकी मुझे कोई परवाह नहीं है. लेकिन जब तक मुख्यमंत्री पद पर हूं, तब तक परिवर्तन के लिए काम करता रहूंगा.'

क्या है राजनीति के मायने?
1. महाराष्ट्र की जनसंख्या में मराठाओं की हिस्सेदारी 35 फीसदी है. ये बड़ा वोट बैंक है.
2. राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव होने हैं. इसलिए अब इस आंदोलन से नेता जुड़ने लगे हैं.
3. रविवार को पुणे में निकाले गए मोर्चे में सांसद उदयनराजे भोंसले, पूर्व सहकारिता मंत्री हर्षवर्धन पाटिल, राज्यमंत्री विजय शिवतारे, पूर्व उपमुख्यमंत्री अजित पवार आदि नेता शामिल थे.
4. राज्य में राजनीति से लेकर शिक्षण संस्थानों, शुगर फैक्ट्री और को-ऑपरेटिव सेक्टर तक सबसे ज्यादा मराठाओं का ही दबदबा है.

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क्यों है नाराजगी?
1.
90 फीसदी मराठा नौकरी में पीछे, इसलिए मराठा समाज खुद के लिए आरक्षण की मांग कर रहा है.
2. मराठा मुख्य तौर पर खेती पर निर्भर हैं, लेकिन कृषि उपज को उचित भाव नहीं मिल रहा है.
3. कोपर्डी दुष्कर्म के दोषियों को फांसी नहीं दिए जाने से भी रोष है. कोपर्डी कांड की पीड़िता मराठा थी, जबकि अत्याचार करने वाले दलित समुदाय के लोग थे.
4. एट्रोसिटी कानून रद्द नहीं किए जाने से भी नाराजगी है. इनका आरोप है कि एट्रोसिटी कानून का सबसे ज्यादा गलत इस्तेमाल मराठा लोगों के खिलाफ होता है.

ये है गणित
फडनवीस के मुख्यमंत्री बनने के बाद राज्य में ब्राह्मण लॉबी सक्रिय हो गई है और लंबे समय से सत्ता पर काबिज रहे मराठा समुदाय को ये बिल्कुल भी रास नहीं आ रहा है. इसलिए मराठा आंदोलन को इससे भी जोड़कर देखा जा हा है. इस आंदोलन के पीछे दो नाम सामने आ रहे हैं, एक धार्मिक नेता भय्यू महाराज और दूसरे एनसीपी नेता शरद पवार. पवार और भय्यू महाराज दोनों ही मराठा समुदाय से आते हैं.

भय्यू महाराज की थी सत्ता पर अच्छी पकड़
पवार का तो महाराष्ट्र में राजनीतिक वर्चस्व है और उनकी गिनती बड़े मराठा नेताओं में होती है. एक टीवी चैनल के मुताबिक, इस आंदोलन के पीछे भय्यू महाराज की बड़ी भूमिका है. विलासराव देशमुख के शासनकाल में भय्यू महाराज उर्फ उदयसिंह राव देशमुख की राज्य की सत्ता पर अच्छी पकड़ थी और साथ ही राज्य में उनके ट्रस्ट के कई प्रकल्प भी संचालित हो रहे थे, जिनके माध्यम से वे किसानों और अन्य लोगों से सीधे जुड़े थे.

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