राजनीति में छाप छोड़नी है तो सत्ता चाहिए और सत्ता के लिए सामर्थ्य का होना जरूरी है. ये भी सच है कि सत्ता और सामर्थ्य का यह रास्ता सरोकारों से होकर गुजरता है. लेकिन उस सरोकार को क्या नाम दें, जिसका सामर्थ्य जनशक्ति की बजाय अपराध की दुनिया से आता है. ये कहानी महाराष्ट्र की है, जहां तीन दलितों की हत्या अब राजनीतिक रंग लेने लग गई है और कानून सिर झुकाए, आंखें मूंदकर खड़ी है.
अहमदनगर में कानून व्यवस्था की कल्पना कीजिए, जहां इलाके के एसपी के सामने अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन का भाई और स्थानीय नेता दीपक निखालजे पुलिस वालों को थप्पड़ मारने की बात कहता है और प्रशासन मौन रहता है. दीपक भाऊ 'निखलाजे संगठन' का अध्यक्ष है.
दरअसल, अहमदनगर के जावखेड़े खालसा गांव के रहने वाले एक ही परिवार के तीन लोगों की 20 अक्टूबर की रात हत्या कर दी गई. हत्यारों ने संजय जाधव, उसकी पत्नी जयश्री और बेटे सुनील के शव को गांव के सूखे कुएं में फेंक दिया. अगले सुबह हत्या के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हो गया और दीपक निखालजे भी इस पद्रर्शन का हिस्सा बने. बताया जाता है कि मामले में अभी तक पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की, लिहाजा लोगों में गुस्सा है.
'पुलिसवालों को कान के नीचे मारेगा'
तो बात नेतागिरी की है, जिसमें धैर्य की जरूरत होती है. हजारों को साथ लेकर चलने की क्षमता होती है. लेकिन पुलिस से बातचीत के क्रम में दीपक निखालजे का आपा जवाब दे जाता है. दीपक कहता है, 'हमारे लोगों का खून हुआ और उल्टा हमें दबाया जा रहा है. अगर गलत करेंगे तो कोई भी पुलिस वाले को कान के नीचे मारेगा.'
अब जरा गौर कीजिए, जिस समय यह सब कुछ हुआ उस वक्त कार्यकर्ताओं के अलावा वहां जिला के एसपी भी मौजूद थे, लेकिन सभी चुप्पी साध गए. यही नहीं, अपने बयान पर अफसोस जताने की बजाय दीपक निखाल्जे का कहना है कि अगर पुलिस ने वक्त रहते कार्रवाई नहीं की और राज्य में कानून व्यवस्था के हालात खराब हुए तो उसके लिए जिम्मेदार खुद पुलिस ही है.
दीपक की दादागिरी
दीपक निखालजे कहता है, 'अगर हमको कायदा हाथ में लेना पड़ा तो कौन सी गलत बात है. आप काम नहीं करोगे तो ऐसा ही होगा.'
जानकारी के मुताबिक, हत्या के दो हफ्ते बाद भी पुलिस ने मामले में किसी आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया है. जाहिर है ऐसे में लोगों का गुस्सा जायज है, लेकिन किसी अपराधी की तरह पुलिस को धमकी देने और चांटा जड़ने की बात कहना कहीं से सही नहीं ठहराया जा सकता. इसके साथ पुलिस की तौहीन पर वहां मौजूद वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का बुत बने रहना भी कई सवाल खड़े करता है.