महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Government) राज्य की फाइनेंशियल समस्याओं को कम करने की कोशिश में दो प्रमुख योजनाओं, शिव भोजन थाली और आनंदाचा शिधा को बंद करने पर विचार कर रही है. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अधिकारियों को दोनों योजनाओं की समीक्षा करने का निर्देश दिया है, जिसका फैसला मार्च में आगामी बजट सेशन के दौरान होने की उम्मीद है.
शिव भोजन थाली स्कीम: एक सब्सिडी वाला भोजन प्रोग्राम
महाराष्ट्र सरकार द्वारा 2020 में शुरू की गई शिव भोजन थाली योजना का मकसद गरीबों और जरूरतमंदों को किफायती भोजन उपलब्ध कराना है. इस योजना के तहत ₹10 की सब्सिडी दर पर दो चपाती, सब्जियां, चावल और दाल से बनी पूरी भोजन थाली दी जाती है.
राज्य भर में 1,699 भोजनालयों में शिव भोजन थाली परोसी जा रही है, जिसमें 1,88,463 स्वीकृत थालियां हैं. हर रोज करीब 1,80,000 थालियां बांटी जाती हैं. हर रोज 2 लाख थालियां परोसने का लक्ष्य रखा गया है.
शिव भोजन की 2 लाख डेली प्लेट्स का वार्षिक खर्च करीब 267 करोड़ रुपये है, जिसके बारे में पूर्व उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल का तर्क है कि गरीबों और जरूरतमंदों को मिलने वाले फायदों को देखते हुए यह लागत नगण्य है.
आनंदाचा शिधा योजना: एक फेस्टिवल किट डिस्ट्रीब्यूशन प्रोग्राम
आनंदाचा शिधा स्कीम राज्य सरकार द्वारा शुरू की गई फेस्टिवल किट डिस्ट्रीब्यूशन प्रोग्राम है. इस स्कीम का मकसद दिवाली, गुड़ी पड़वा और डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर जयंती जैसे त्यौहारों के दौरान पात्र लाभार्थियों को जरूरी चीजें प्रदान करना है. लाभार्थियों को 6 वस्तुओं के साथ एक किट मिलती है, जिसमें 1 किलो चीनी, 1 लीटर तेल, 500 ग्राम रवा, 500 ग्राम चना दाल, 500 ग्राम मैदा और 500 ग्राम पोहा शामिल है.
ये किट ₹100 प्रति किट की रियायती दर पर बांटी जाती हैं. आनंदाचा शिधा योजना की वार्षिक लागत करीब ₹161 करोड़ (2022), ₹159 करोड़ (2023) और ₹160 करोड़ (2024) है.
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योजना में कटौती का विरोध
पूर्व उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल और एनसीपी (SP) नेता जितेंद्र आव्हाड ने संभावित कटौती का विरोध किया है. उन्होंने तर्क दिया कि ये योजनाएं गरीबों और वंचितों को जरूरी सहायता प्रदान करती हैं. छगन भुजबल ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को पत्र लिखकर मांग की है कि राज्य के गरीब और जरूरतमंद नागरिकों के लिए शुरू की गई शिव भोजन थाली योजना को भविष्य में भी पहले की तरह जारी रखा जाए.
वहीं, जितेंद्र आव्हाड ने इन जरूरी प्रोग्राम्स में कटौती पर विचार करते हुए अन्य योजनाओं के विज्ञापनों पर करोड़ों खर्च करने के लिए सरकार की आलोचना भी की है.