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BMC पर शिवसेना का सियासी प्रभुत्व, कंगना मामले में जानिए क्यों लग रहे हैं आरोप

बृहन्मुंबई म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (बीएमसी) पर शिवसेना का साढ़े तीन दशक से एकछत्र राज कायम है. सूबे में कांग्रेस और एनसीपी की सरकार आती रही, लेकिन शिवसेना के हाथों से बीएमसी को नहीं छीन सकी. इसीलिए बीएमसी द्वारा कंगना रनौत के आफिस पर किए गए हमले को लेकर शिवसेना निशाने पर है.

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महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बीएमसी पर साढ़े 3 दशक से शिवसेना का कब्जा
  • शिवसेना का राजनीतिक आधार मुंबई में ज्यादा है
  • बीएमसी का बजट देश के कई राज्यों से ज्यादा है

महाराष्ट्र की सियासत में भले ही किसी भी पार्टी की तूती बोलती रही हो और सत्ता में किसी की भी सरकार बनती रही हो, लेकिन बृहन्मुंबई म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (बीएमसी) पर शिवसेना का साढ़े तीन दशक से एकछत्र राज कायम है. सूबे में कांग्रेस और एनसीपी की सरकार आती रही, लेकिन शिवसेना के हाथों से बीएमसी को नहीं छीन सकी. बीएमसी पर कब्जे का मतलब मुंबई पर राज करने और अपने सियासी प्रमुत्व को स्थापित करने का माध्यम है. 

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बता दें कि शिवसेना और फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत के बीच कड़वाहट लगातार बढ़ती जा रही है. कंगना के बुधवार को मुंबई पहुंचने से पहले बीएमसी उनके पॉली हिल्स स्थित ऑफिस पर जेसीबी लेकर पहुंच गई. अवैध निर्माण के आरोप में बीएमसी ने कंगना के ऑफिस के एक हिस्से को गिरा दिया. बीएमसी के नोटिस में लिखा था कि आपने (कंगना) हमारे पिछले नोटिस का जवाब नहीं दिया और ऑफिस में काम करवाना जारी रखा. 

हालांकि, कंगना रनौत के वकील ने सात दिन का समय मांगा था, लेकिन बीएमसी इससे संतुष्ट नहीं है और बुधवार को कार्रवाई की. ऐसे में बीएमसी के एक्शन को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं. विपक्ष इसे बदले की कार्रवाई बता रहा तो शिवसेना इसे बीएमसी के नियम का हवाला दे रही है. शिवसेना ने कहा कि कंगना से पहले भी बीएमसी कई बॉलीवुड से जुड़े लोगों के बंगलों पर कार्रवाई कर चुका है. इसलिए इसे राजनीति के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए. 

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बीएमसी पर शिवसेना का कब्जा

बता दें कि शिवसेना का आगाज ही मुंबई से हुआ है. शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे ने पार्टी के जनाधार को मजबूत करने के लिए मुंबई के रेहड़ी-पटरी वालों के हक में आवाज उठाई. बाल ठाकरे ने 1966 में शिवसेना की बुनियाद रखी थी. इसके पांच साल बाद ही 1971 में शिवसेना बीएमसी में अपना मेयर डॉ. एसएस गुप्ता को बनाने में कामयाब रही थी. इसके बाद शिवसेना ने पलटकर नहीं देखा और बीएमसी में राजनीतिक प्रभुत्व को मजबूती के साथ स्थापित करती चली गई. 

आपातकाल के दौरान शिवसेना कांग्रेस के साथ हाथ मिलकर बीएमसी पर अपनी ताकत को बनाए रखने में सफल रही थी. इसके बाद 1985 में शिवसेना ने बीएमसी पर अपना प्रभुत्व इतनी मजबूती से जमाया कि फिर उसे कोई दोबारा से नहीं तोड़ सका. हालांकि, बीच में 1992 से 1995 में जरूर शिवसेना के हाथों से बीएमसी की सत्ता को कांग्रेस छीनने में कामयाब रही थी, लेकिन 1996 के बाद से शिवसेना का एकछत्र राज कायम है. शिवसेना के इस दुर्ग में कोई सेंध नहीं लगा सका है. 

हालांकि, बीजेपी ने बीएमसी में 1987 में पहली बार किस्मत आजमाया थे. इसके बाद वो बीजेपी के संग ही मिलकर चुनाव लड़ती रही है. बीजेपी को 2017 के चुनाव में पहली बार बीएमसी में 82 सीटें मिली थी, लेकिन इस बार वो अकेले चुनाव लड़ी थी. इसके बावजूद शिवसेना बीएमसी पर अपना कब्जा जमाने में कामयाब रही थी. 2017 में बीएमसी के नतीजे आने के बाद उद्धव ठाकरे ने कहा था कि इस बार बीएमसी का मेयर ही नहीं, बल्कि अगले चुनावों में सीएम भी शिवसेना का ही होगा. इस बात को अमलीजामा पहनाने के लिए शिवसेना ने बीजेपी का साथ छोड़कर कांग्रेस-एनसीपी से हाथ मिलाया और सफल रहे. उद्धव ठाकरे 2019 में महाराष्ट्र के सीएम बने. 

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बीएमसी का बजट कई राज्यों से ज्यादा

बीएमसी पूरे ग्रेटर मुंबई क्षेत्र का प्रभारी है और इसके विशाल बजट के कारण इसका बहुत प्रभाव है. 2019-20 का आंकड़ा 30,692 करोड़ रुपये का है, जो कि 2016-17 के 37,052 करोड़ रुपये के उच्च स्तर से काफी नीचे है. यह बजट कुछ छोटे राज्यों जैसे नागालैंड, मेघालय, सिक्किम और गोवा से काफी अधिक है. इसके चलते मुंबई की सियासत में शिवसेना की अपनी राजनीतिक रसूख कायम है. शिवसेना कहती भी है कि हमारी मुंबई है. 

 

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