कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच सीमा विवाद बढ़ता जा रहा है. जमीन पर हिंसा भी देखने को मिल गई है और बसों पर पथराव भी हुआ है. उसी स्थिति को देखते हुए उत्तर पश्चिम कर्नाटक सड़क परिवहन निगम ने बड़ा फैसला लेते हुए महाराष्ट्र की तरफ जा रही सभी बसों को सस्पेंड कर दिया है. ये फैसला तब हुआ है जब बेलगावी जिले के पास कर्नाटक की बस पर पथराव हुआ था. इस समय महाराष्ट्र की तरफ से भी कई कर्नाटक जाने वाली बसों को सस्पेंड कर दिया गया है.
बस सर्विस सस्पेंड
जारी बयान में उत्तर पश्चिम कर्नाटक सड़क परिवहन निगम ने कहा है कि इस समय सिर्फ बेलगावी जिले के निपानी तक ही बस संचालित की जा रही हैं. सुबह से ही तनाव की स्थिति है, महाराष्ट्र से Ranebennur आई बस क्षतिग्रस्त पाई गई. इसी वजह से कुछ समय के लिए बस सर्विस सस्पेंड कर दी गई है. अब बस सर्विस सस्पेंड होने से करीब 25 लाख का नुकसान भी उठाना पड़ रहा है. ये नुकसान भी सिर्फ एक दिन का बताया जा रहा है. ऐसे में इस सीमा विवाद ने दोनों ही राज्यों को आर्थिक नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया है.
अब एक तरफ बसों पर हो रहे पथराव ने चिंता को बढ़ाया है, तो जमीन पर आरोप-प्रत्यारोप के दौर ने भी तनाव को बढ़ाने का काम किया है. महाराष्ट्र के सोलरपुर में कर्नाटक की जो गाड़ियां रहीं पर कालिख पोत विरोध दर्ज करवाया गया. इसी तरह कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई की तस्वीरों पर भी कुछ लोगों ने कालिख पोत दी. अब जिस वजह से ये प्रदर्शन किया जा रहा है, वो समझना भी जरूरी हो जाता है.
क्या है ये पूरा विवाद?
असल में महाराष्ट्र चाहता है कि बेलगावी कर्नाटक में नहीं, उसके राज्य में शामिल होना चाहिए. इसके अलावा महाराष्ट्र 814 अन्य गांवों पर भी अपना हक मानता है. लेकिन कर्नाटक को ये स्वीकार नहीं है और इसी वजह से ये सीमा विवाद खड़ा हुआ है. इस विवाद की शुरुआत तो तभी हो गई थी जब 1956 में जब भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का काम चल रहा था. उस समय महाराष्ट्र के कुछ नेताओं ने बेलगावी (पहले बेलगाम), निप्पणी, कारावार, खानापुर और नंदगाड को महाराष्ट्र का हिस्सा बनाने की मांग की थी. लेकिन पूर्व जज मेहर चंद महाजन की अध्यक्षता में एक आयोग ने निप्पणी, खानापुर और नांदगाड सहित 262 गांव महाराष्ट्र को देने का सुझाव दिया था. हालांकि, महाराष्ट्र बेलगावी सहित 814 गांवों की मांग कर रहा था. इस रिपोर्ट पर महाराष्ट्र ने आपत्ति जताई थी.
इस मामले में 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि इस मसले को आपसी बातचीत से हल किया जाना चाहिए. साथ ही ये भी सुझाव दिया था कि भाषाई आधार पर जोर नहीं देना चाहिए, क्योंकि इससे परेशानी और बढ़ सकती है.