अगले साल 2019 में होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव से पहले महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन बीजेपी के लिए सिरदर्द बन गया है. देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार के चार साल के कार्यकाल में एक के बाद एक आंदोलन लगातार हो रहे हैं.
राज्य के बदलते सियासी समीकरण के बीच पहले भीमा कोरेगांव में दलित हिंसा, किसान आंदोलन और फडणवीस सरकार के खिलाफ दूसरी बार मराठा समुदाय आरक्षण की मांग और शिवसेना से साथ बिगड़ते रिश्ते महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए मुश्किल बढ़ा सकते हैं.
महाराष्ट्र में मराठा क्रांति मोर्चा के नेतृत्व में मराठा समुदाय शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 16 फीसदी आरक्षण की मांग को लेकर सड़क पर आंदोलन कर रहा है. राज्य के कई जगहों पर हिंसक घटनाएं भी हुई हैं. मराठा समुदाय फडणवीस सरकार के खिलाफ दूसरी बार सड़क पर उतरा है.
मराठाओं को आरक्षण ओबीसी कोटे से ही देना होगा ऐसे में बीजेपी बूरी तरह से फंसी हुई है. बीजेपी अगर मराठों की मांग को मानती है तो फिर हरियाणा और गुजरात में भी ऐसी मांग उठ सकती हैं. राज्य में करीब 32 फीसदी मराठों का वोट है. ऐसे में एनसीपी और कांग्रेस उनके समर्थन में है.
2. भीमा-कोरे गांव में दलित हिंसा
पुणे के भीमा-कोरेगांव में दलित संगठनों ने पेशवा बाजीराव द्वितीय की सेना पर अंग्रेजों की जीत का रविवार 31 दिसंबर को शौर्य दिवस कार्यक्रम मना रहे थे. दलितों द्वारा मना जा रहे शौर्य दिवस के आयोजन के विरोध में हिंदू संगठनों ने दलितों पर हमला बोल दिया. इसके बाद राज्य को कई गांवों में हिंसा भड़क गई, जिसमें कई लोगों की जान चली गई. फडणवीस सरकार के खिलाफ दलित समुदाय की नाराजगी को और भी बढ़ा दिया है. महाराष्ट्र में 10 फीसदी से ज्यादा दलित मतदाता हैं. 288 विधानसभा सीटों में से करीब 60 सीटें इसके अलावा 10 से 12 लोकसभा सीटें हैं, जहां दलित वोट हार जीत तय करते हैं.
महाराष्ट्र के हजारों किसानों ने कर्जमाफी सहित कई मांग को लेकर नासिक से मुंबई तक पदयात्रा किया था. किसान अपनी मांगों को पूरा करने के लिए विधानसभा के घेराव करने के लिए मुंबई पहुंचे थे. दरअसल किसान आत्महत्या के मामले में महाराष्ट्र देश में पहले नंबर पर है.
राज्य में किसानों की आत्महत्या का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. राज्य में इस साल जनवरी से मई के आखिर तक 1092 किसानों ने आत्महत्या की है. किसानों की समस्या को लेकर महाराष्ट्र के भंडारा-गोंदिया के लोकसभा सदस्य नाना पटोले बीजेपी और लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. ऐसे में किसानों की नाराजगी बीजेपी के लिए मंहगी पड़ सकती है.
4. शिवसेना-बीजेपी में फूट
शिवसेना और बीजेपी के बीच पिछले चार साल में दोनों दलों के बीच रिश्ते सबसे खराब दौर में पहुंच गए हैं. केंद्र की मोदी और राज्य की फडणवीस सरकार में साथ रहते हुए भी शिवसेना सवाल खड़ी करती रही है. अविश्वास प्रस्ताव के दौरान शिवसेना के बर्ताव से नाराज बीजेपी ने महाराष्ट्र में अकेले चुनाव लड़ने के संकेत दिए हैं. जबकि शिवसेना पहले ही घोषणा कर चुकी है कि 2019 का चुनाव वो अकेले ही लड़ेगी. ऐसे में दोनों दलों के अकेले लड़ने से दोनों दलों को नुकसान उठाना पड़ सकता है.
5. कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन
महाराष्ट्र में जहां बीजेपी-शिवसेना की दोस्ती टूट रही है. वहीं, कांग्रेस और एनसीपी फिर से नजदीक आ गए हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में इनके अलग-अलग लड़ने का सीधा फायदा बीजेपी को मिला था. अब जब फिर कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन करके आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव में उतरने की तैयारी कर रहे हैं. ऐसे में इन दोनों दलों को जहां फायदा होने की संभावना है तो बीजेपी-शिवसेना को खामियाजा उठाना पड़ सकता है.