महाराष्ट्र की सियासत में इन दिनों मराठा आरक्षण अहम मुद्दा बना हुआ है, जिसके लिए विपक्ष लगातार उद्धव सरकार को घेरने में जुटा है. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करेंगे. इस मुलाकात से एक दिन पहले सीएम उद्धव ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार मिले थे. पीएम मोदी से मंगलवार को मुख्यमंत्री के संग जो प्रतिनिधिमंडल मिलेगा उसमें डिप्टी सीएम अजित पवार और मराठा आरक्षण सब-कमेटी के प्रमुख अशोक चव्हाण भी शामिल हैं. माना जा रहा है कि उद्धव ठाकरे सरकार अब केंद्र की मोदी सरकार के जरिए मराठा आरक्षण का हल निकाले का फॉर्मूला तलाश करेगी.
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा घोषित करने के लिए कदम उठाने का अनुरोध किया था. ताकि इसके जरिए वो राज्य में मराठा समुदाय को शिक्षा और सार्वजनिक रोजगार में क्रमश: कम से कम 12 और 13 प्रतिशत आरक्षण का दावा मजबूती के साथ कर सकें.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने इस साल 5 मई को महाराष्ट्र सरकार द्वारा 2018 में लाए गए मराठा समुदाय के लिए सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि यह पहले लगाए गए 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक है. जस्टिस अशोक भूषण, एल नागेश्वर राव, एस अब्दुल नजीर, हेमंत गुप्ता और रवींद्र भट की पांच जजों की संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा कि मराठा समुदाय के लोगों को शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग के रूप में घोषित नहीं किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले के बाद से महाराष्ट्र की सियासत गर्मा गई है. मराठा नेता और बीजेपी सांसद सांभाजीराजे छत्रपति ने सरकारी नौकरियों में मराठा आरक्षण के समर्थन में आंदोलन करने का अल्टीमेटम दिया है. यही नहीं सांभाजी ने एनसीपी चीफ शरद पवार से भी हाल ही में मुलाकात कर मराठा आरक्षण के विषय पर बातचीत की थी तथा इस मामले में पहल करने का अनुरोध भी किया था. महाराष्ट्र प्रदेश भाजपा अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने उद्धव ठाकरे सरकार पर मराठा आरक्षण पर 'लापरवाह रवैया' अपनाने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि आरक्षण मामले पर शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस सरकार उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपना पक्ष मजबूती के साथ रखने में विफल रही.
वहीं, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार ने मराठा आरक्षण के मुद्दे पर हाईकोर्ट के सेवानिवृत जज दिलीप भोंसले के नेतृत्व में एक कमेटी बनाई थी, जिसके जरिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पढ़कर आगे की राह के लिए सुझाव मांगे थे. इसपर बीते शुक्रवार को इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी है तथा उद्धव सरकार को सलाह दी है कि वो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को रिव्यू पीटिशन के जरिए चुनौती दे सकती है.
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने पीएम मोदी को पत्र लिखा था, 'सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ (पांच न्यायाधीशों सहित) द्वारा 5 मई, 2021 को दिए गए फैसले ने मुझे यह अवसर दिया है कि मैं आपको मराठा आरक्षण के लिए पत्र लिखूं. मेरे राज्य में मराठा समुदाय को कानून के अनुसार, शिक्षा में न्यूनतम 12 प्रतिशत और सार्वजनिक रोजगार में 13 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए जल्द से जल्द उचित कदम उठाए जाएं.
बता दें कि महाराष्ट्र में मराठों की आबादी 28 से 33 फीसदी है. महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से 20 से 22 सीटें और विधानसभा की 288 सीटों में से 80 से 85 सीटों पर मराठा वोट निर्णायक माना जाता है. मराठाओं की पहली पसंद एनसीपी है, उसके बाद शिवसेना और तीसरे नंबर पर कांग्रेस आती है. वहीं, बीजेपी का मूल वोटर नहीं होने के बाद भी साल 2018 में देवेंद्र फणडवीस के नेतृत्व वाली सरकार ने मराठा समुदाय के लिए आरक्षण दिया था, जिसका चुनाव में उसे फायदा भी मिला है.
वहीं, अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद महाराष्ट्र में जिस तरह मराठा समुदाय ने आरक्षण की मांग को लेकर फिर से आवाज उठानी शुरू की है, उससे उद्धव ठाकरे पूरे मामले को केंद्र के पाले में डालने की कवायद में हैं. इसी कड़ी में मुख्यमंत्री ने पहले पीएम को पत्र लिखा और खुद तीन सदस्यीय कमेटी के साथ मुलाकात करने आ रहे हैं. ऐसे में देखना है कि पीएम मोदी मराठा आरक्षण पर क्या फॉर्मूला सुझाते हैं?