महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को लेकर शिंदे सरकार में दोफाड़ जैसे हालात बन गए हैं. राज्य सरकार में मंत्री और वरिष्ठ ओबीसी नेता छगन भुजबल ने रविवार को बड़ा ऐलान किया है. भुजबन ने कहा, मराठा आरक्षण के संबंध में राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ एक फरवरी को विधायकों, सांसदों और तहसीलदारों के आवासों के बाहर विरोध प्रदर्शन किया जाएगा. भुजबल ने यहां अपने आधिकारिक आवास पर एक बैठक की, जिसमें ओबीसी विधायकों, नेताओं और अन्य लोगों ने हिस्सा लिया.
बता दें कि मराठा आरक्षण के मुद्दे पर राज्य सरकार को झुकना पड़ा है. सरकार ने जातिगत आरक्षण पर सरकारी संकल्प (जीआर) जारी कर दिया है. इस जीआर को फरवरी में आगामी विधानसभा सत्र में कानून में बदल दिया जाएगा. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मराठा आरक्षण को लेकर आंदोलन कर रहे कार्यकर्ता मनोज जरांगे के पास उनकी विभिन्न मांगों के संबंध में एक मसौदा अध्यादेश भेजा था. शिंदे ने मांगों पर चर्चा करने के लिए अधिकारियों के साथ बैठकें कीं और बाद में कार्यकर्ता से मिलने के लिए एक प्रतिनिधिमंडल मसौदा अध्यादेश के साथ भेजा. जरांगे हजारों समर्थकों के साथ पड़ोस के नवी मुंबई में डेरा डाले हुए हैं. जरांगे ने घोषणा की थी कि अगर सरकार ने उनकी मांगें पूरी नहीं की तो वो मुंबई की ओर कूच शुरू करेंगे और भूख हड़ताल पर बैठेंगे.
'मसौदे को रद्द करने की मांग'
इस फैसले का अब सरकार के अंदर ही विरोध होने लगा है. एनसीपी नेता और मंत्री भगन भुजबल ने कहा, 26 जनवरी को मुख्यमंत्री द्वारा एक ड्राफ्ट प्रकाशित किया गया है. इसमें मराठा आरक्षण की मांग उठाने वाले एक्टिविस्ट मनोज जरांगे की मांगों को स्वीकार किया गया है. हमने अपनी बैठक में इस मसौदे को रद्द करने के लिए प्रस्ताव पारित किया है.
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'तहसीलदारों के आवास भी घेरेगा ओबीसी समुदाय'
उन्होंने कहा, हम राज्य सरकार के मौजूदा फैसले के खिलाफ विरोध करने के लिए विधायकों, सांसदों और तहसीलदारों के आवासों के बाहर इकट्ठा होंगे और विरोध किया जाएगा. मराठा समुदाय को आरक्षण लाभ देने के लिए अवैध तरीके अपनाए जा रहे हैं. हम ऐसे फैसलों के खिलाफ ओबीसी को एकजुट करने के लिए मराठवाड़ा से एक एल्गार रैली भी आयोजित करेंगे. बैठक में बीजेपी एमएलसी राम शिंदे और गोपीचंद पडलकर भी मौजूद थे. उन्होंने भुजबल की मांगों और प्रस्तावों को अपना समर्थन दिया.
आजतक से बातचीत में छगन भुजबल ने कहा, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मराठों को आरक्षण देते समय आश्वासन दिया था कि ओबीसी आरक्षण प्रभावित नहीं होगा. उसके बाद कैबिनेट की बैठकों में कोई चर्चा नहीं हुई. सरकार आरक्षण के लिए आंदोलन कर रहे लोगों की बात सुन रही है और उनकी मांगें मान रही है. मैं मराठा आरक्षण के खिलाफ नहीं हूं, लेकिन ओबीसी को प्रभावित करने के खिलाफ नहीं हूं.
उन्होंने कहा, बीजेपी को 60% ओबीसी वोट मिलते हैं, उन्हें इस मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए. आरक्षण सामाजिक रूप से पिछड़ों के लिए है. आर्थिक पृष्ठभूमि के लिए नहीं। आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए EWS कैटेगरी है. चार ओबीसी कमेटी और SC ने भी कहा है कि मराठा आरक्षण के लायक नहीं हैं.
'एक दिन पहले जरांग ने खत्म किया अनशन'
यह घोषणा ऐसे समय की गई है, जब सरकार द्वारा मराठा आरक्षण की मांगें स्वीकार किए जाने के बाद जरांगे ने एक दिन पहले ही अपना अनिश्चितकालीन अनशन समाप्त किया है. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने घोषणा की थी कि जब तक मराठों को आरक्षण नहीं मिल जाता, तब तक उन्हें ओबीसी को मिलने वाले सभी लाभ दिए जाएंगे.
सरकार द्वारा एक मसौदा अधिसूचना जारी किया गया था, जिसमें मराठा समुदाय के सदस्यों के सभी ब्लड रिलेशन को कुनबी के रूप में मान्यता दी गई है. जिनके पास कुनबी जाति के रिकॉर्ड पाए गए हैं. जिससे वे कुनबी (ओबीसी) प्रमाण पत्र का दावा करने के पात्र बन गए हैं.
'ओबीसी को मूर्ख बनाने के लिए कदम उठाए जा रहे'
भुजबल ने कहा, प्रदेश में ओबीसी को मूर्ख बनाने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं. जब कानून में रिश्तेदारों की स्पष्ट परिभाषा बताई गई है तो अवैध तरीके से बदलाव क्यों किए गए? मराठों को ओबीसी में शामिल करने से मौजूदा पिछड़ा वर्ग बाहर हो जाएगा और वे आरक्षण के लाभ से वंचित हो जाएंगे.
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भुजबल, अजीत पवार के नेतृत्व वाले एनसीपी गुट के नेता हैं. वे पिछले जुलाई में सरकार में शामिल हुए थे और मराठा कोटा मुद्दे से निपटने के लिए शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार की आलोचना करते रहे हैं.
'संदीप शिंदे कमेटी पर भी आपत्ति जताई'
भुजबल ने कहा, आज हुई बैठक में 26 जनवरी को मुख्यमंत्री द्वारा प्रकाशित मसौदे को रद्द करने का प्रस्ताव पारित किया गया. दूसरी मांग न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) संदीप शिंदे कमेटी (मराठों के कुनबी रिकॉर्ड को देखते हुए) को बंद करने की है, क्योंकि यह एक असंवैधानिक निकाय है.
उन्होंने आरोप लगाया कि महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (MSCBC) के प्रमुख सुनील शुक्रे 'मराठा आरक्षण आंदोलन में सक्रिय' हैं. भुजबल ने कहा, यह हितों का टकराव है क्योंकि ऐसे आयोग के प्रमुख के मन में (मराठों के लिए) कोई नरम रुख नहीं रहेगा. उन्होंने दावा किया कि शुक्रे पहले से ही मराठा समुदाय को आरक्षण देने के पक्ष में हैं, जो उनके पद के सिद्धांतों के खिलाफ है.
उन्होंने कहा, राज्य सरकार ने शुक्रे (सुनील) को MSCBC का अध्यक्ष नियुक्त किया है. इंद्रा साहनी बनाम केंद्र सरकार मामले से पता चलता है कि ऐसे पिछड़े आयोगों के प्रमुखों को निष्पक्ष माना जाता है. लेकिन शुक्रे ने जरांगे से मुलाकात की थी जो मराठों के लिए आरक्षण के लिए विरोध कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, शुक्रे सुधारात्मक याचिका (मराठा कोटा खत्म करने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर) में राज्य की मदद करने वाली एक अन्य समिति के भी सदस्य हैं. भुजबल ने कहा कि MSCBC के प्रमुख निष्पक्ष हुआ करते थे. उन्होंने आरोप लगाया, लेकिन अब, पिछले सदस्य विभिन्न कारणों से बाहर चले गए हैं और यह मराठा आयोग बन गया है.
भुजबल ने आरोप लगाया कि कई जीआर (सरकारी संकल्प) केवल मराठों की मांगों को पूरा करने के लिए जारी किए गए थे. हमें (ओबीसी) बताया गया था कि ओबीसी के लिए आरक्षण को नहीं छुआ जाएगा, लेकिन राज्य (सरकार) अब मराठों को कुनबी जाति प्रमाण पत्र जारी करके उन्हें पिछले दरवाजे से प्रवेश देने की कोशिश कर रही है. इस कदम से 300 से ज्यादा ओबीसी जातियों से आरक्षण का लाभ छीन लिया जाएगा और इसे केवल मराठा ही लेंगे.