महाराष्ट्र विधान परिषद की 11 सीटों के लिए आज यानि 12 जुलाई को वोटिंग हो रही है. मुंबई में जारी भारी बारिश के बीच हो रहे विधान परिषद चुनाव में सियासी पारा हाई है. रिजॉर्ट पॉलिटिक्स से लेकर डिनर डिप्लोमेसी तक, विधायकों को एकजुट रखने के लिए सत्ताधारी महायुति से लेकर विपक्षी महा विकास अघाड़ी तक, दोनों ही खेमे हर संभव कवायद में जुटे नजर आए. विधान परिषद की 11 रिक्त सीटों के लिए 12 उम्मीदवार मैदान में हैं.
रिजॉर्ट पॉलिटिक्स के पीछे एक सीट और चार वोट की खींचतान को वजह बताया जा रहा है. लेकिन क्या बात बस इतनी सी ही है या चुनावी साल में राजनीतिक दल दो साल पुराने सियासी घटनाक्रम से सबक लेकर अतिरिक्त सतर्कता बरत रहे हैं?
क्या है दो साल पुराना सियासी घटनाक्रम?
दो साल पहले 2022 में महाराष्ट्र विधान परिषद की 10 सीटों के चुनाव में 11 उम्मीदवार मैदान में थे. 20 जून को वोटिंग थी. उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली तत्कालीन एमवीए सरकार में शामिल शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी(एनसीपी) और कांग्रेस, तीनों ही पार्टियों ने दो-दो उम्मीदवार उतारे थे. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने पांच उम्मीदवार उतारे थे. एक सीट की लड़ाई थी और तब एक उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करने के लिए 287 सदस्यों की स्ट्रेंथ वाली महाराष्ट्र विधानसभा के 26 सदस्यों का वोट चाहिए था.
तब एमवीए की स्ट्र्रेंथ 151 विधायकों की थी. शिवसेना के 55, कांग्रेस के 44 और एनसीपी के 52 विधायक थे. छठे उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करने के लिए गठबंधन को पांच विधायकों के समर्थन की जरूरत थी. वहीं, बीजेपी की स्ट्रेंथ 106 विधायकों की थी. सभी पांच उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने के लिए 130 वोट की जरूरत थी और पार्टी के पास चार उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने के बाद पांचवे उम्मीदवार के लिए दो ही वोट बच रहे थे. बीजेपी के पांचो उम्मीदवार जीत गए और पार्टी उम्मीदवारों के पक्ष में कुल मिलाकर 134 वोट मिले थे.
एमएलसी चुनाव से ही शिंदे ने बदला था पाला
20 जून की तारीख थी. एमएलसी चुनने के लिए हुए मतदान के बाद से ही तत्कालीन सीएम उद्धव ठाकरे के करीबी मंत्री एकनाथ शिंदे शिवसेना नेताओं के लिए 'आउट ऑफ रीच' हो गए. देर शाम चुनाव नतीजे आए और उसी के आसपास खबर आई कि सीएम के भरोसेमंद मंत्री शिंदे 11 विधायकों के साथ पड़ोसी राज्य गुजरात के सूरत पहुंच चुके हैं. उद्धव ठाकरे से लेकर शिवसेना और एमवीए के नेता एक्टिव मोड में आ गए. शिंदे की मान-मनौव्वल शुरू हो गई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. एक-एक कर विधायक शिंदे के पास पहुंचते चले गए और फिर वह विधायकों को लेकर गुजरात के सूरत से असम के गुवाहाटी चले गए. शिंदे कैंप में विधायकों की संख्या भी बढ़ती चली गई और अंत में उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी.
उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली सरकार की विदाई के बाद एकनाथ शिंदे ने बीजेपी के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई और वह नई सरकार में मुख्यमंत्री बने. शिवसेना के 55 में से 40 विधायक शिंदे के साथ हो लिए थे. चुनाव आयोग तक चली नाम-निशान की लड़ाई में भी बाजी शिंदे के ही हाथ आई और उद्धव ठाकरे को अपनी ही पार्टी से निकलना पड़ा, नया दल बनाना पड़ा. 10 सीटों के इस एमएलसी चुनाव ने महाराष्ट्र की सरकार और विधानसभा का सीटिंग अरेंजमेंट ही नहीं, भविष्य का सियासी सीन भी बदलकर रख दिया था.
इस बार 11 सीट पर हैं 12 उम्मीदवार
ठीक दो साल फिर महाराष्ट्र में विधान परिषद की 11 सीटों के लिए चुनाव हैं. 11 सीटों के लिए 12 उम्मीदवार मैदान में हैं. सत्ताधारी महायुति की ओर से नौ और विपक्षी एमवीए की ओर से तीन उम्मीदवार मैदान में हैं. एनडीए की बात करें तो बीजेपी ने पांच, शिवसेना (शिंदे) ने दो, एनसीपी ने दो उम्मीदवार उतारे हैं. विपक्षी एमवीए की बात करें तो शिवसेना (यूबीटी) और कांग्रेस ने एक-एक उम्मीदवार उतारे हैं. शरद पवार की अगुवाई वाली शिवसेना ने भारतीय शेतकारी कामगार पार्टी के उम्मीदवार जयंत पाटिल को समर्थन दिया है.
एमएलसी चुनाव में क्या है नंबरगेम?
महाराष्ट्र विधानसभा की स्ट्रेंथ इस समय 274 विधायकों की है. 11 सीटों के लिए हो रहे चुनाव में एक उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करने के लिए 23 विधायकों के वोट की जरूरत होगी. नौ उम्मीदवार उतारने वाले सत्ताधारी गठबंधन की बात करें तो बीजेपी के 103, एनसीपी (अजित पवार) के 40 और शिवसेना (शिंदे) के 38 विधायक हैं. निर्दलीय और अन्य छोटी पार्टियों को भी मिला लें तो गठबंधन के पास 203 विधायकों का समर्थन है जो सभी उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने के लिए जरूरी 207 से चार कम है.
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वहीं, विपक्षी एमवीए की बात करें तो उसे तीन उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने के लिए 69 विधायकों की जरूरत है. कांग्रेस के 37, शिवसेना (यूबीटी) के 16 और शरद पवार की एनसीपी के 12 विधायक हैं. सपा के दो, सीपीएम के एक और एक विधायक पीडब्ल्यूपीआई के हैं. एमवीए का संख्याबल 69 पहुंचता है और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के दो विधायकों को मिला लें तो महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष की स्ट्रेंथ 71 पहुंचती है.
नंबर जुटाने-सहेजने को एक्टिव रहे दल
सत्ताधारी और विपक्षी, दोनों ही गठबंधनों के बीच एक सीट की लड़ाई है. महायुति को अपने नौवें उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करने के लिए अपना कुनबा एकजुट रखने के साथ ही चार और विधायकों का समर्थन जुटाना होगा. विपक्षी गठबंधन को तीन प्रमुख घटक दलों को एकजुट रखना होगा. यही नंबर जुटाने और अपने विधायकों को एकजुट रखने की जद्दोजहद में सभी दल जुटे नजर आए. एमएलसी चुनाव से पहले बीजेपी, शिवसेना (शिंदे), शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (अजित पवार) ने अपने सभी विधायकों को होटल में शिफ्ट कर दिया तो वहीं कांग्रेस ने भी अपने विधायकों की बैठक बुलाई थी.
कांग्रेस की बैठक से तीन विधायक रहे नदारद
कांग्रेस की बैठक में तीन विधायक- जीशान सिद्दीकी, जितेश अंतापुर औरप संजय जगताप नहीं पहुंचे. जीशान लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़ एनसीपी (अजित पवार) में शामिल हुए बाबा सिद्दीकी के बेटे हैं तो वहीं अंतापुर की गिनती पूर्व सीएम अशोक चव्हाण के करीबियों में होती है. संजय जगताप को लेकर कांग्रेस ने कहा है कि उन्होंने इसे लेकर पहले ही सूचना दे दी थी. जगताप एक धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए पंढरपुर में हैं.
कांग्रेस विधायक सुलभा खोडके और हीरामन खोसकर बैठक में पहुंचे थे. सुलभा के पति अजित पवार के करीबी सहयोगी हैं तो वहीं हीरामन को लेकर भी ये कयास लगते रहे हैं कि वह एनसीपी के संपर्क में हैं. दूसरी तरफ, एनसीपी (अजित पवार) के नेता छगन भुजबल भी अजित पवार की पत्नी को राज्यसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाए जाने को लेकर नाराज चल रहे हैं. दोनों ही गठबंधनों के सामने अपना कुनबा बचाए रखने की चुनौती है.