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राज ठाकरे 2.0: पहली बार फेल हुए, इस बार क्या करेंगे कमाल?

शिवसेना से नाता तोड़कर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना पार्टी का गठन किए हुए 14 साल हो गए हैं, लेकिन राज ठाकरे सियासत में कोई खास करिश्मा नहीं दिखा सके हैं. ऐसे में राज ठाकरे ने अपनी पार्टी के चाल-चरित्र को बदलकर अपने चाचा बाल ठाकरे के हिंदुत्व की राह पर चलने का फैसला किया है. इस राह में उनके सामने कड़ी चुनौती है.

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एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे  (फाइल क्रेडिट-Getty Images)
एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे (फाइल क्रेडिट-Getty Images)

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  • राज ठाकरे ने 2006 में ही किया था MNS का गठन
  • अख्तियार किया हिंदुत्व की राह, झंडा हुआ भगवा

शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे की छत्र-छाया में पले बढ़े और उनकी उंगली पकड़कर सियासत की एबीसीडी सीखने वाले राज ठाकरे महाराष्ट्र में अपने राजनीतिक वजूद को बचाए रखने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. बाल ठाकरे ने अपनी विरासत बेटे उद्धव ठाकरे को सौंपने का फैसला किया तो भतीजे राज ठाकरे ने शिवसेना से नाता तोड़कर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) बनाई. राज ठाकरे 'मराठी अस्मिता' के दम पर राजनीतिक बुलंदी को छूने में सफल नहीं हो सके जबकि शिवसेना की कमान संभालने वाले उद्धव ठाकरे आज सत्ता के सिंहासन पर खुद विराजमान हैं.

महाराष्ट्र की सियासत में जगह बनाने के लिए राज ठाकरे ने अपनी पार्टी एमएनएस के चाल और चरित्र को बदलकर अपने चाचा बाला ठाकरे की 'कट्टर हिंदुत्‍व' की परंपरा को आगे बढ़ाने का संकेत दिया है. मुंबई के उपनगर गोरेगांव में आयोजित रैली में राज ठाकरे ने पार्टी के झंडे के रंग को भगवा कर दिया है और उस पर शिवाजी की मुहर को बनाया है, जिस पर संस्कृति में श्लोक लिखा है.

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बाला साहेब ठाकरे की जयंती पर आयोजित रैली में राज ठाकरे ने कहा कि घुसपैठियों को देश से बाहर निकालने में केंद्र सरकार की मदद करेंगे. पाकिस्तान और बांग्लादेश के अवैध घुसपैठियों को भारत से बाहर निकालने के लिए राज ठाकरे 9 फरवरी को रैली निकालेंगे. उन्‍होंने अपने चचेरे भाई और महाराष्‍ट्र के मुख्‍यमंत्री उद्धव ठाकरे पर तंज कसते हुए कहा कि मैं सरकार के साथ अपनी पार्टी का रंग नहीं बदलता हूं.

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बता दें कि शिवसेना में राज ठाकरे अपने चाचा बाल ठाकरे की तर्ज पर राजनीति किया करते थे. वहीं, उद्धव ठाकरे राजनीति से खिंचे-खिंचे रहते थे, उनका फोटोग्राफी में मन लगता जबकि राज ठाकरे दबंग और मुखर नेता के तौर पर अपनी पहचान बना चुके थे. राज ठाकरे में लोगों को चाचा बाल ठाकरे की छवि नजर आती थी, जिसके चलते शिवसैनिकों के बीच लोकप्रिय होते जा रहे थे. ऐसे में राज ठाकरे को बाल ठाकरे के राजनीतिक वारिस के तौर पर देख जाने लगा था.

साल 2002 में बीएमसी के चुनावों में शिवसेना को कामयाबी मिली तो बाला ठाकरे ने भतीजे राज ठाकरे के बजाय बेटे उद्धव ठाकरे को अपनी राजनीतिक विरासत सौंपने का फैसला किया. उद्धव को 2003 में शिवसेना का कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया. 2004 में उद्धव को बाकायदा शिवसेना का अध्यक्ष घोषित किया गया, जिसके बाद राज ठाकरे ने शिवसेना से नाता तोड़कर अलग हो गए.

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2006 में राज ठाकरे ने अलग महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना नाम से अलग पार्टी बना ली. इसके बाद उन्होंने तीन विधानसभा और तीन लोकसभा चुनाव लड़े हैं. एमएनएस ने पहली बार 2009 के लोकसभा चुनाव में किस्मत आजमाई पर कोई सफलता नहीं मिली. इसके बाद 2009 के विधानसभा चुनाव में एमएनएस  5.71 फीसदी मतों के साथ 13 सीटें जीतने में कामयाब रही है. 2014 के विधानसभा चुनाव में एमएनएस ने 220 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, लेकिन सिर्फ1 सीट ही जीत सकी. इसके बाद 2019 एमएनएस ने 2.25 फीसदी वोट के साथ महज 1 सीट जीत सकी.

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महाराष्ट्र में एमएनएस के चुनाव दर चुनाव गिरते ग्राफ को देखर राज ठाकरे ने अब दूसरी इनिंग का आगाज किया है. उन्होंने अपनी पार्टी के बहुरंगी झंडे का रंग बदल कर भगवा किया, जिसके जरिए हिंदुत्व का रंग गाढ़ा करने का संकेत दे दिया है. साथ ही राज ठाकरे ने अपने पुत्र अमित ठाकरे को भी सियासत में उतारा है. ऐसे कदम उन्होंने ऐसे समय बढ़ाया है जब शिवसेना ने सरकार बनाने के लिए बीजेपी से नाता तोड़कर कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिलाकर सत्ता में है.

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महाराष्ट्र के बदले हुए सियासी समीकरण में भले ही राज ठाकरे अपने चाचा बाल ठाकरे की कट्टर हिंदुत्व की विरासत पर आगे बढ़ने का फैसला किया हो, लेकिन इस राह में भी काफी चुनौती हैं. कट्टर हिंदुत्व और मस्लिम विरोधी विचारधारा को शिवसेना लेकर चली थी, बीजेपी उससे ज्यादा उग्र तेवर अपनाकर और नरेंद्र मोदी और अमित शाह जैसे नेताओं को आगे करके महाराष्ट्र में काफी बड़ी लकीर खींच चुकी है.

शिवसेना अल्पसंख्यकों को जिस तरह कंट्रोल करने और दबाकर रखने का सपना समर्थकों को दिखाती थी, बीजेपी उससे बहुत आगे बढ़ चुकी है. बीजेपी हिंदुत्व के समर्थकों को न केवल सपना दिखाया है, बल्कि उस पर अमल करके भी दिखाया है. शिवसेना भले ही कांग्रेस-एनसीपी के साथ मिलकर सरकार चला रही हो, लेकिन राम मंदिर और सावरकर को लेकर अभी भी अपने स्टैंड पर कायम है. ऐसे में राज ठाकरे के लिए हिंदुत्व की राह पर चलकर सियासत में जगह बनाना बड़ी चुनौती है.

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