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महाराष्ट्र चुनाव में हार से खतरे में MNS का वजूद! मान्यता और चुनाव चिह्न दोनों गंवा सकती है पार्टी

महाराष्ट्र में राज ठाकरे की पार्टी MNS ने इस चुनाव में 125 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. हालांकि, कोई भी प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सका. राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे ने भी पहली बार माहिम सीट से चुनाव लड़ा और वो हार गए.

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विधानसभा चुनाव में राज ठाकरे की पार्टी MNS एक भी सीट नहीं जीत सकी. (फाइल फोटो)
विधानसभा चुनाव में राज ठाकरे की पार्टी MNS एक भी सीट नहीं जीत सकी. (फाइल फोटो)

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों ने राज ठाकरे की पार्टी MNS के वजूद को संकट में डाल दिया है. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) को अपने निराशाजनक प्रदर्शन के कारण मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल और अपने 'रेल इंजन' वाले चुनाव चिह्न खोने का खतरा मंडरा रहा है. MNS इस चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत पाई है.

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MNS ने इस चुनाव में 125 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. हालांकि, कोई भी प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सका. राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे ने भी पहली बार माहिम सीट से चुनाव लड़ा और वो हार गए.

MNS पर संकट क्यों?

महाराष्ट्र विधानसभा के पूर्व सचिव अनंत कलसे ने चुनाव आयोग के नियमों के बारे में जानकारी दी है. उन्होंने बताया कि किसी राजनीतिक दल के लिए अपनी मान्यता और आरक्षित चुनाव चिह्न बनाए रखने के लिए मानदंड तय किए गए हैं.

उन्होंने कहा, मान्यता बरकरार रखने के लिए किसी पार्टी को या तो कम से कम एक सीट जीतनी होती है और कुल वोट शेयर का 8 प्रतिशत हासिल करना होता है या 6 प्रतिशत वोटों के साथ दो सीटें जीतनी होती हैं या 3 प्रतिशत वोटों के साथ तीन सीटें जीतना होती हैं. यदि इनमें से कोई भी एक शर्त पूरी नहीं होती है तो चुनाव आयोग उस पार्टी की मान्यता रद्द कर सकता है.

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दरअसल, इस चुनाव में MNS कोई भी सीट नहीं जीत सकी है. पार्टी को सिर्फ 1.8 प्रतिशत वोट मिले हैं. यानी MNS चुनाव में कोई भी जरूरी मानकों को पूरा नहीं कर पाई है.

उन्होंने कहा, चुनाव आयोग एक स्वतंत्र संस्था है और वो इस मामले पर फैसला ले सकता है. वो MNS को नोटिस भेज सकता है और उसकी मान्यता भी रद्द कर सकता है.

क्या निर्णय ले सकता है चुनाव आयोग?

कलसे ने कहा, यदि पार्टी की मान्यता रद्द कर दी जाती है तो MNS 'रेलवे इंजन' के अपने आरक्षित चुनाव चिह्न का हकदार नहीं रह जाएगा. इसके बजाय उसे अगले चुनाव के लिए अनरिजर्व सिंबल का चुनना होगा. यानी अगले चुनाव में जो चुनाव चिह्न फ्री होंगे, उनमें से किसी एक को चुनना होगा. हालांकि, पार्टी का नाम परिवर्तित नहीं होगा. यानी नाम MNS ही बना रहेगा.

उद्धव ठाकरे के साथ मतभेद और चुनाव में टिकट वितरण जैसे प्रमुख निर्णयों में दरकिनार किए जाने से नाराज होकर राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़ दी थी. उसके बाद उन्होंने मार्च 2006 में MNS की स्थापना की. MNS के उम्मीदवार 2009 में पहली बार चुनावी लड़ाई में उतरे. तब से यह पहली बार है, जब MNS विधानसभा में एक भी सीट नहीं जीत पाई है. 2009 में पहली बार MNS ने 13 सीटें जीती थीं. 2014 और 2019 के विधानसभा चुनावों में पार्टी के पास एक-एक विधायक था.

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पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद राज ठाकरे ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया और नतीजों को अविश्वसनीय बताया था.

फिलहाल, एमएनएस के भविष्य पर संकट के बादल हैं. अगर पार्टी की मान्यता और उसका चुनाव चिह्न रद्द होता है तो यह राज ठाकरे के लिए बड़ा झटका होगा. MNS के सामने यह चुनौती खड़ी जाएगी कि वो वोटर्स के बीच नए चिह्न को कैसे पहुंचाए.

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