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पहले इंदिरा, फिर सोनिया गांधी... जब सत्ता के लिए बागी हुए शरद पवार, ऐसे पड़ी थी NCP की नींव

एनसीपी चीफ शरद पवार इस समय चर्चा में हैं. वजह भी खास है. पवार के भतीजे अजित ने एनसीपी को तोड़ दिया है. वो पार्टी के दिग्गज नेताओं के साथ बीजेपी गठबंधन में शामिल हो गए हैं. इससे पहले शरद पवार के पॉलिटिकल करियर में भी तोड़फोड़ और बगावत का रिकॉर्ड दर्ज है. उन्होंने 1978 में मुख्यमंत्री बनने के लिए कांग्रेस (U) से बगावत की थी. तब जनता पार्टी के समर्थन से पवार 38 साल की उम्र में मुख्यमंत्री बन गए थे.

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शरद पवार ने कांग्रेस से निकाले जाने के बाद एनसीपी का गठन किया था. (फाइल फोटो)
शरद पवार ने कांग्रेस से निकाले जाने के बाद एनसीपी का गठन किया था. (फाइल फोटो)

2024 के लोकसभा चुनाव से पहले एनसीपी चीफ शरद पवार को अपने ही घर से बड़ा झटका लगा है. उनके भतीजे अजित पवार ने एनसीपी से बगावत कर दी है और बीजेपी-शिंदे सरकार में शामिल हो गए हैं. अजित डिप्टी सीएम बन गए हैं. उनके साथ 8 अन्य एनसीपी नेताओं को मंत्री बनाया गया है. अजित गुट का दावा है कि उनके समर्थन में 40 विधायक हैं. अजित के विद्रोह से शरद पवार की मुश्किलें बढ़ गई हैं और वो वेट एंड वॉच की पॉजिशन में आ गए हैं. 

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82 साल के पवार 50 साल से ज्यादा समय से राजनीति में सक्रिय हैं. उन्होंने राजनीति में कई उतार और चढ़ाव देखे हैं. साल 1967 में वे 27 साल की उम्र में पहली बार विधायक बने. 32 साल की उम्र में पहली बार सीएम बन गए. 45 साल पहले शरद ने भी सत्ता के लिए बगावत कर मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली थी. उन्होंने अपने पॉलिटिकल करियर की शुरुआत कांग्रेस से की, लेकिन दो बार उसके ही खिलाफ गए और सत्ता में आए. पहली बार 1978 में और दूसरी बार 1999 में. आइए जानते हैं वो दोनों घटनाक्रम...

शरद के पवार गेम की 1978 की कहानी...

साल 1977 में आम चुनाव के बाद कांग्रेस दो धड़ों में बंट गई थी. नाम रखा गया कांग्रेस (I) और कांग्रेस (U). शरद पवार भी बगावत का हिस्सा बने. वे कांग्रेस  (U) में शामिल हुए. साल 1978 में महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव आया और दोनों धड़े एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में उतरे. इस बीच, जनता पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी और 99 सीटों पर जीत हासिल की. जबकि कांग्रेस (I) ने 62 और कांग्रेस (U) ने 69 सीटें जीतीं. किसी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला. राज्य में जनता पार्टी ने सरकार बनाने के लिए संभावनाएं तलाशीं. लेकिन, जनता पार्टी को रोकने के लिए I और U ने गठबंधन कर लिया और सरकार बना ली. यह सरकार डेढ़ साल से ज्यादा चली. बाद में जनता पार्टी में फूट पड़ गई और महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया. 

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राजीव गांधी के करीब आए और फिर बने सीएम

हालांकि, कुछ महीने बाद शरद पवार ने कांग्रेस (यू) से भी बगावत की और जनता पार्टी से हाथ मिला लिया. जनता पार्टी के समर्थन से शरद पवार 38 साल की सबसे कम उम्र में मुख्यमंत्री बने. तब देश की राजनीति में इंदिरा गांधी सक्रिय थीं. 1977 की इमरजेंसी के बाद कांग्रेस बुरे दौर से गुजर रही थी. हालांकि, साल 1980 में इंदिरा गांधी सरकार की वापसी हुई तो पवार की सरकार बर्खास्त कर दी गई. बाद में 1986 में पवार कांग्रेस में शामिल हो गए. तब कांग्रेस की कमान राजीव गांधी के हाथों में थी और वो देश के प्रधानमंत्री थे. कुछ ही दिनों में पवार फिर गांधी परिवार के करीब आ गए और 26 जून 1988 में शंकर राव चव्हाण की जगह सीएम की कुर्सी मिल गई. पवार 26 जून 1988 से लेकर 25 जून 1991 के बीच दो बार मुख्यमंत्री बने.

क्या हुआ था 1978 में...

जुलाई 1978. एक उमस भरी दोपहरी में शरद पवार महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री वसंत दादा पाटील के घर पर खाने पर गए थे. बुलावा खुद पाटील ने ही भेजा था. वे अपने इस युवा उद्योग मंत्री (शरद पवार) से कुछ चर्चा करना चाहते थे. कहते हैं कि शरद पवार गए, खाना खाया, बातचीत की और चलते हुए. उन्होंने दादा पाटील के आगे हाथ जोड़े, कहा- दादा, मैं चलता हूं, भूल-चूक माफ करना... सीएम वसंत दादा तब कुछ समझे नहीं, लेकिन शाम को एक खबर ने महाराष्ट्र समेत दिल्ली की राजनीति को भी हिला दिया था. 

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जब शरद ने वसंत दादा का तोड़ा भरोसा

सीएम रहे वसंत दादा पाटील को अब माफी की वजह समझ में आ गई थी, क्योंकि शरद पवार ने उसी शाम 38 विधायकों को अपने पाले में किया और उनके नीचे से सीएम कुर्सी ही खींच ली थी. इस तरह शरद पवार ने महाराष्ट्र के सबसे युवा सीएम होने का रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया था. 

1987 में शरद पवार दोबारा कांग्रेस में लौट आए और 1988 में दोबारा मुख्यमंत्री बने. 1990 के विधानसभा चुनाव में पवार तीसरी बार और 1993 में चौथी बार मुख्यमंत्री बने. 32 साल में पवार राज्य मंत्री बन गए थे. 

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कैसे सोनिया गांधी के विरोध से अस्तित्व में आई NCP

साल था 1999. तारीख 15 मई. कांग्रेस की CWC की बैठक थी. शाम को हुई इस बैठक में अचानक ही शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर की तरफ से विरोध के सुर सुनाई दिए. संगमा ने कहा, सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा बीजेपी लगातार उठा रही है. ये सुनना सोनिया के लिए उतना हैरानी भरा नहीं था, जितना वह अगले व्यक्ति की आवाज सुनकर हुईं. यह कोई और नहीं, शरद पवार थे, जिन्होंने तुरंत ही संगमा की बात का समर्थन किया और अपनी हल्की-मुस्कुराती आवाज में पहले तो संगठन में एकता लाने के लिए सोनिया गांधी की तारीफ की और फिर तुरंत ही अगली लाइन में प्रश्नवाचक चिह्न उछाल दिया.

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कांग्रेस ने निकाला तो किया एनसीपी का गठन

शरद पवार ने कहा, 'कांग्रेस आपके विदेशी मूल के बारे में बीजेपी को जवाब नहीं दे सकी है. इस पर गंभीरता से विचार की जरूरत है. इस तरह, साल 1999 में शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने का विरोध किया और उसके बाद तीनों नेताओं को पार्टी से निकाल दिया गया. महज 10 दिन बाद ही तीनों ने मिलकर 25 मई 1999 को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) का गठन किया. 

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उसी साल एनसीपी ने पहला विधानसभा चुनाव लड़ा. पार्टी ने राज्य की 288 सीटों में से 223 पर उम्मीदवार खड़े किए. इस चुनाव में एनसीपी ने 58 सीटें जीतीं. किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला. 75 सीटें जीतकर कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी. शरद ने एक बार फिर पलटी मारी और साल 1999 में कांग्रेस से गठबंधन किया और राज्य में सरकार बना ली. कांग्रेस के विलासराव देशमुख मुख्यमंत्री बने. एनसीपी के छगन भुजबल डिप्टी सीएम बने. लगातार 15 साल तक महाराष्ट्र में एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन की सरकार रही. वहीं, पवार साल 2004 से 2014 तक लगातार केंद्र की यूपीए सरकार में मंत्री रहे.

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24 साल से एनसीपी के अध्यक्ष

1999 में शरद पवार ने जब एनसीपी का गठन किया था, तब उनकी उम्र 58 साल थी. तब से ही शरद पवार इसकी कमान संभाल रहे हैं. 1 मई 1960 से पॉलिटिकल करियर शुरू हुआ और पिछले 63 साल से सक्रिय हैं. शरद पवार का जन्म 12 दिसंबर 1940 को महाराष्ट्र के बारामती जिले (तब कस्बा) के कटेवाड़ी गांव में हुआ था. पढ़ाई के दौरान ही वो छात्र राजनीति में सक्रिय हो गए थे. 1958 में कांग्रेस से जुड़े. 1962 में पुणे जिला युवा कांग्रेस अध्यक्ष बने. 1967 में कांग्रेस के टिकट पर बारामती विधानसभा से चुनाव लड़ा और 27 साल की उम्र में पहली बार विधायक बने. 

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अपने छह दशकों के राजनीतिक करियर में शरद पवार 6 बार विधायक, 6 बार सांसद और केंद्रीय मंत्री रहे. महाराष्ट्र की सियासत के साथ-साथ केंद्र की राजनीति में भी उनका अच्छा-खासा दखल है. 

संगठन में बड़ी जिम्मेदारी ना मिलने से नाराज थे अजित

शरद पवार को राजनीति में आशावादी और माहिर खिलाड़ी के तौर पर देखा जाता रहा है. भतीजे अजित पवार के साढ़े तीन साल में दूसरी बार बगावत करने से उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं. पवार ने अजित को एमवीए गठबंधन में नेता प्रतिपक्ष बनाकर साधने की कोशिश की थी. हाल ही में अजित को लेकर फिर नाराज होने की खबरें तब आईं, जब शरद पवार ने इस्तीफे का ऐलान किया और बाद में अपना फैसला वापस ले लिया. उसके बाद पार्टी में दो नए कार्यकारी अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल और अपनी बेटी सुप्रिया सुले को बनाकर चौंका दिया. कहा जा रहा था कि अजित को संगठन में बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी गई है, इससे वो नाखुश हैं. महाराष्ट्र का प्रभारी भी सुप्रिया सुले को बनाया गया था. 

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अजित ने दूसरी बार परिवार और पार्टी तोड़ी

माना जा रहा था कि शरद पवार अब अजित की जगह अपनी बेटी सुप्रिया सुले को ज्यादा तरजीह दे रहे थे. वो सुप्रिया को अपनी राजनीतिक विरासत सौंपना चाहते थे, अजित पवार भी यह बात बाखूबी जानते थे, इसलिए उन्होंने अपना राजनीतिक भविष्य सुरक्षित करना ज्यादा बेहतर समझा और एनसीपी को तोड़कर बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने का फैसला किया. अजित पवार को ऐसा लगने लगा कि उन्हें अब कम तरजीह मिल रही है. यही वजह है कि उन्होंने साढ़े तीन साल के अंदर दूसरी बार घर, परिवार और एनसीपी को तोड़कर बीजेपी से हाथ मिलाने का फैसला किया.

तो शरद पवार के हाथ से निकल जाएगी पार्टी और सिंबल

अजित की बगावत के बाद शरद पवार के सामने पार्टी को बचाने का भी संकट खड़ा हो गया है. अगर दो तिहाई विधायक अजित के साथ चले आते हैं तो पार्टी पर शिवसेना की तरफ संकट आ सकता है. महाराष्ट्र में एनसीपी के 53 विधायक हैं. ऐसे में दो तिहाई बहुमत के लिए 36 विधायकों की जरूरत होगी. वहीं, अजित गुट ने फिलहाल अभी 40 विधायकों का समर्थन देने का दावा किया है. अगर अजित जादुई आंकड़ा पार कर लेते हैं तो शरद पवार के हाथ से पार्टी और चुनाव चिह्न दोनों छिनने का खतरा बढ़ जाएगा.

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