मुंबई में उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर एंटीलिया के करीब मिली विस्फोटकों से भरी कार की जांच में हो रहे खुलासे से उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली महाविकास आघाड़ी सरकार के गृहमंत्री अनिल देशमुख फंसते नजर आ रहे हैं. मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने आरोप लगाया कि गृहमंत्री अनिल देशमुख ने शीर्ष पुलिस अधिकारियों को हर महीने सौ करोड़ रुपए की उगाही का टारगेट दे रखा था. इस मामले को लेकर कल तक जांच की बात करने वाले एनसीपी प्रमुख शरद पवार अब गृहमंत्री अनिल देशमुख के समर्थन में खुलकर आ गए हैं और क्लीन चिट दे रहे हैं. पवार ने साफ तौर पर कहा कि देशमुख के इस्तीफे का सवाल ही नहीं बनता है, जो आरोप उन पर लगे हैं उनमें कोई दम नहीं है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्यों अनिल देशमुख के लिए शरद पवार ढाल बनकर सामने खड़े हैं?
शरद पवार की प्रेस कॉफ्रेंस से साफ हो गया है कि एनसीपी अपने नेता और महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख का इस्तीफा नहीं लेगी. एनसीपी यह बताने की कोशिश कर रही है कि परमबीर सिंह मुंबई पुलिस कमिश्नर के पद से हटाए जाने के चलते इस तरह से आरोप लगा रहे हैं और वो बीजेपी के साथ मिलकर साजिश रच रहे हैं. यही नहीं, पवार ने कहा कि जिस तारीख के बीच आरोप लगाए गए हैं, उस वक्त 5 से 15 फरवरी तक महाराष्ट्र के गृह मंत्री अस्पताल में भर्ती थे.
एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार से जब पूछा गया कि शिवसेना जब टिक टॉक स्टार पूजा चौहान की आत्महत्या मामले में आरोप लगने पर अपने नेता संजय राठौड़ का मंत्री पद से इस्तीफा ले सकती है तो ऐसे ही गृहमंत्री अनिल देशमुख के मामले में एनसीपी को क्यों नहीं करना चाहिए. इस सवाल को टालते हुए उन्होंने कहा कि जिस अफसर ने ये आरोप लगाए हैं वह खुद संदेह के घेरे में है. इससे साफ जाहिर होता है कि एनसीपी ने तय कर लिया है कि वह अनिल देशमुख का इस्तीफा नहीं लेगी. यही वजह है कि शरद पवार पूरे घटनाक्रम को राजनीतिक साजिश बताने की कोशिश करते दिखे और साथ ही कल तक जांच की बात करने वाले शरद पवार सोमवार को गृहमंत्री को क्लीन चिट देते नजर आ रहे हैं.
वहीं, कांग्रेस नेता महाराष्ट्र के प्रभारी एचके पाटिल ने महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले, कैबिनेट मंत्री अशोक चव्हाण और बालासाहेब थोरात के साथ बातचीत की है. उन्होंने बताया कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष, मंत्री बालासाहेब थोराट और सीएलपी लीडर अशोक चव्हाण मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मुलाकात कर मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर द्वारा मुख्यमंत्री को लिखे गए कथित पत्र के बारे में चर्चा करेंगे. इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि शरद पवार पहले कह चुके हैं कि हम इस्तीफे पर विचार कर रहे हैं, जो भी विकल्प होगा हम विचार करेंगे. अनिल देशमुख का इस्तीफा भी एक विकल्प है, जिस पर मुख्यमंत्री जल्द से जल्द अंतिम फैसला लेंगे. एनसीपी पर सहयोगी दलों का भी दबाव बढ़ रहा है, लेकिन पवार मजबूती के साथ देशमुख के साथ खड़े हैं.
देशमुख के इस्तीफे के साथ ही घिर जाएगी एनसीपी?
दरअसल, उद्धव ठाकरे सरकार में अनिल देशमुख का गृहमंत्री पद से इस्तीफा होते ही सारा मामले का ठीकरा एनसीपी पर फूट जाएगा. इतना ही नहीं, इससे यह भी साफ हो जाएगा कि पूरे घटनाक्रम में अनिल देशमुख का हाथ है. यही वजह है कि शरद पवार खुद आगे कर अनिल देशमुख का बचाव कर रहे हैं और साथ ही यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि पूरा मामला एक राजनीतिक साजिश है, जिसे बीजेपी परमबीर सिंह के साथ मिलकर कर रही है. इस तरह से पूरे घटनाक्रम को पवार ने दूसरी तरफ मोड़ने की कोशिश की है.
विदर्भ में एनसीपी का चेहरा माने जाते हैं देशमुख
गृहमंत्री अनिल देशमुख महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके से आते हैं. वो नागपुर जिले के वाडविहिरा गांव के हैं. उन्होंने साल 1995 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की थी. देवेंद्र फडणवीस सरकार के पांच साल के कार्यकाल छोड़कर बाकी सभी सरकार में लगातार मंत्री बनते आ रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषक की माने तो एनसीपी ने विदर्भ इलाके में पार्टी के विस्तार के मकसद से ही उन्हें गृह मंत्री जैसा भारी भरकम मंत्रालय सौंपा ताकि विदर्भ को राजनीतिक संदेश दिया जा सके. फड़णवीस से लेकर नितिन गडकरी जैसे बीजेपी के नेता इसी इलाके से आते हैं और यह बीजेपी का मजबूत गढ़ बन रहा था, जिसमें एनसीपी ने अपनी मजबूत उपस्थिति बनाने की रणनीति के तहत अनिल देशमुख को आगे बढ़ाया.
शरद पवार के आंख-नाक हैं देशमुख
अनिल देशमुख एनसीपी प्रमुख शरद पवार के साथ-साथ सुप्रिया सुले के भी करीबी नेता माने जाते हैं. पिछले साल अजित पवार ने जब देवेंद्र फड़णवीस से हाथ मिला लिया था तो उनके विकल्प के तौर पर एनसीपी ने अनिल देशमुख को ही आगे किया था. इतना ही नहीं, डिप्टी सीएम के तौर पर भी अनिल देशमुख के नाम की खूब चर्चा चली थी, लेकिन अजित पवार की वापसी के बाद यह पद उन्हें नहीं मिल सका था. लेकिन शरद पवार ने अनिल देशमुख को गृहमंत्री का विभाग उद्धव सरकार में दिलाकर उन्हें खड़ा करने की कोशिश की ताकि अजित पवार के सामने उनका कद कम न लगे. माना जाता है कि अनिल देशमुख शरद पवार से बिना पूछे कोई भी निर्णय नहीं लेते हैं. इसी के चलते गृह मंत्रालय पर शरद पवार का वर्चस्व बना रहा और अब इसीलिए उनके बचाव में वह खड़े नजर आ रहे हैं.
अनिल देशमुख ने बनाई ऐसे मजबूत पकड़
महाराष्ट्र के नागपुर में पले-बढ़े अनिल देशमुख ने 1970 के दशक में ही राजनीति में कदम रख दिया था. पहली बार 1992 में जिला परिषद के चुनाव से उन्होंने चुनावी राजनीति में कदम रखा और जीत दर्ज की. यहीं से उन्होंने महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी पहचान बनानी शुरू कर दी. उन्होंने अपनी बढ़ती लोकप्रियता के दम पर साल 1995 में कांग्रेस पार्टी से टिकट मांगा लेकिन जब पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो वो स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर लड़े और जीते भी. शिवसेना-बीजेपी की गठबंधन सरकार का समर्थन कर 1995 में बेसिक शिक्षा और सांस्कृतिक विभाग के मंत्री बने.
शरद पवार ने जब कांग्रेस छोड़कर एनसीपी का गठन किया तो महाराष्ट्र के कई बड़े नेताओं के साथ अनिल देशमुख भी पार्टी से जुड़ गए. 1999 में वो एनसीपी के टिकट पर फिर एक बार चुनाव जीते. साल 2004 में तीसरी बार काटोल से जीतकर उन्होंने जीत की हैट्रिक लगाई और लगातार जीत दर्ज कर रहे हैं. इस तरह से महाराष्ट्र की राजनीति में अनिल देशमुख ने अपनी जबरदस्त पकड़ बनाई और साथ ही पीडब्ल्यूडी, आबकारी विभाग और गृह मंत्रालय तक संभाले हैं. यही वजह है कि अनिल देशमुख को बचाने के लिए शरद पवार ने सारे घोड़े खोल रखे हैं.
वहीं, दूसरी ओर शिवसेना नेता अरविंद सावंत ने कहा कि बीजेपी को शर्म करनी चाहिए, जो इस तरह के नारे लगा रही है. महाराष्ट्र में शपथ ग्राहण से लेकर हाथरस में महिला को जलाने और उत्तर प्रदेश में साधु की हत्या पर बीजेपी शर्म करे. महाराष्ट्र में हुए हादसे की एनआईए जांच कर रही है तो बीजेपी को क्या दिक्कत है. सीबीआई के केस का क्या हुआ? सुशांत मामले में भी आपने सरकार को बदनाम करने की कोशिश की और क्या हुआ. सरकार को बदनाम करने का काम यह भारतीय जनता पार्टी के लोग करते हैं.