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महाराष्ट्र: पहली बार ठाकरे फैमिली किंगमेकर नहीं किंग, उद्धव के सिर सजेगा ताज

महाराष्ट्र में शिवसेना ने आदित्य ठाकरे को आगे कर चुनाव लड़ा था, लेकिन अब स्थिति बदल गई है. शिवसेना अब कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने जा रही है. ऐसे में ठाकरे परिवार किंगमेकर बनने की बजाय किंग बनने का फैसला कर सकता है.

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शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे

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  • महाराष्ट्र में शिवसेना-NCP-कांग्रेस गठबंधन सरकार
  • ठाकरे परिवार के सिर सजेगा मुख्यमंत्री पद का ताज

महाराष्ट्र में शिवसेना के नेतृत्व वाली सरकार बनने का रास्ता साफ हो गया है. शिवसेना ने आदित्य ठाकरे को आगे कर चुनाव लड़ा था, लेकिन अब स्थिति बदल गई है. बीजेपी से रिश्ता खत्म होने के बाद शिवसेना अब अपने धुर विरोधी राजनीतिक दलों- कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बना रही है. इस तरह से अब ठाकरे परिवार महाराष्ट्र की राजनीति में किंगमेकर नहीं बल्कि किंग बनने जा रहा है. शरद पवार जैसे राजनेता के साथ समंजस्य बैठाकर सरकार चलाना और बीजेपी जैसे मजबूत विपक्ष को साधने के मद्देनजर उद्धव ठाकरे के सिर पर ताज कांटों से कम नहीं होगा!

शिवसेना-NCP-कांग्रेस की सरकार

एनसीपी प्रमुख शरद पवार और कांग्रेस के दिग्गज व अनुभवी नेताओं के साथ गठबंधन सरकार चलाना उद्धव ठाकरे के लिए आसान नहीं है. वो भी तब जब बीजेपी जैसा मजबूत विपक्ष सामने है. इतना ही नहीं, कांग्रेस और एनसीपी आखिर तक आदित्य को सीएम बनाने के नाम पर सहमत नहीं हुए. यही वजह है कि शिवसेना ने आदित्य के बजाय उद्धव ठाकरे को सीएम बनाने का दांव चला है.

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पढ़ें..LIVE-महाराष्ट्र में सियासी हलचल तेज, CM के नाम पर मंथन...

उद्धव ठाकरे सहयोगी दलों के साथ बेहतर ढंग से सरकार चला सकते हैं, वे बीजेपी जैसे मजबूत विपक्ष से भी निबटना जानते हैं. हालांकि यह पहली बार होगा कि जब ठाकरे परिवार किंगमेकर की भूमिका छोड़कर सीधे सत्ता पर काबिज होगा. ऐसे में ठाकरे परिवार पर विपक्ष सीधा हमला करेगा, इससे ठाकरे परिवार और मातोश्री के उस रुतबे में कमी आ सकती है, जिसके दम पर शिवसेना की राजनीति चलती है. ठाकरे परिवार के सत्ता में रहने से अब विपक्षी दलों के लिए उनको निशाना बनाना आसान होगा.

ठाकरे के सर सजेगा CM का ताज

दरअसल महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे परिवार का अलग रुतबा और पहचान है और राज्य में उनकी बराबरी में कोई अन्य परिवार खड़ा नहीं हो सका. इसकी अहम वजह यह मानी जाती रही है कि भले ही सत्ता इस परिवार के आसपास ही रही, लेकिन यह परिवार सत्ता से हमेशा दूर रहा. अब पहली बार होगा कि जब सत्ता की कमान ठाकरे परिवार के हाथ में ही होगी. ऐसे में देखना होगा कि उद्धव ठाकरे सीएम के साथ-साथ शिवसेना के मुखिया रहते हैं या फिर आदित्य को पार्टी की कमान सौंपते हैं.

उद्धव ठाकरे का सियासी सफर

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शिवसेना की नींव 1966 में उद्धव के पिता बाला साहेब ठाकरे ने रखी थी. जब तक बाला साहेब ठाकरे राजनीति में सक्रिय रहे तो उद्धव राजनीतिक परिदृश्य से लगभग दूर ही रहे या फिर उनके पीछे ही खड़े दिखे. हालांकि उद्धव पार्टी की कमान संभालने से पहले शिवसेना के अखबार सामना का काम देखते थे और उसके संपादक भी रहे. हालांकि बाद में बाल ठाकरे की बढ़ती उम्र और खराब सेहत के कारण उन्होंने 2000 के बाद पार्टी के कामकाज को देखना शुरू कर दिया था.

2002 की जीत से बढ़ा कद

साल 2002 में बृहन्मुंबई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन (बीएमसी) के चुनावों में शिवसेना को जोरदार सफलता मिली और इसका श्रेय उद्धव ठाकरे को दिया गया. इसके बाद बाल ठाकरे ने अपनी राजनीतिक विरासत उद्धव को सौंपी. जनवरी 2003 में उद्धव को शिवसेना का कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया. कम बोलने वाले उद्धव ठाकरे को जब बाल ठाकरे ने शिवसेना के उत्तराधिकारी के रूप में चुना तो कई लोगों को आश्चर्य हुआ था, क्योंकि पार्टी के बाहर लोग उनका नाम तक नहीं जानते थे और राज ठाकरे संभावित उत्तराधिकारी के रूप में जाने जाते थे. पर बाल ठाकरे के अपने बेटे उद्धव को उत्तराधिकारी चुने से आहत राज ठाकरे ने 2006 में पार्टी छोड़ दी और नई पार्टी- महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन किया.

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उद्धव का परिवार

27 जुलाई, 1960 को मुंबई में जन्मे उद्धव ठाकरे के परिवार में पत्नी रश्मि ठाकरे के अलावा 2 बेटे आदित्य और तेजस हैं. उनका बड़ा बेटा आदित्य दादा और पिता की तरह राजनीति में सक्रिय है और शिवसेना की युवा संगठन युवा सेना का राष्ट्रीय अध्यक्ष है. आदित्य ठाकरे को शिवसेना ने आगे कर चुनाव लड़ा था, लेकिन नतीजे के बाद सियासी माहौल ऐसे बने कि खुद उद्धव ठाकरे को किंगमेकर से किंग बनने के लिए आगे आना पड़ रहा है.

महाराष्ट्र में 2014 में नरेंद्र मोदी के केंद्र में आने से पहले शिवसेना महाराष्ट्र में एनडीए में बड़े भाई की भूमिका में रहती थी, लेकिन इसके बाद बीजेपी वहां बड़े भाई की भूमिका में आ गई. 2014 में विधानसभा में गठबंधन की जीत के बाद शिवसेना अपना मुख्यमंत्री नहीं बना सकी. 2019 के लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव शिवसेना ने बीजेपी के साथ मिलकर लड़ा, लेकिन सीएम पद पर दावेदारी के बाद दोनों की 25 साल पुरानी दोस्ती टूट गई. इसके बाद शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने का फैसला किया है.

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