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बीजेपी-शिंदे के लिए उद्धव ठाकरे ही काफी! क्या है एनसीपी-कांग्रेस की महाराष्ट्र रणनीति?

महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी के सबसे बड़े चेहरे के रूप में उद्धव ठाकरे सामने आ रहे हैं. ऐसे प्रोजेक्ट किया जा रहा है कि बीजेपी और एकनाथ शिंदे से मुकाबला तो उद्धव ठाकरे ही करेंगे. अभी तक कोई ऐलान तो नहीं हुआ है., लेकिन सियासत में संकेत भी काफी रहते हैं.

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उद्धव ठाकरे
उद्धव ठाकरे

महाराष्ट्र की राजनीति में उद्धव ठाकरे की सिसायत को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने करारी चोट दी है. ऐसी बगावत की गई कि शिवसेना भी हाथ से छिनी और सत्ता से भी दूर होना पड़ गया. इस समय आंकड़े तो सारे उद्धव के खिलाफ जाते हैं, उनके पास ना पार्टी है, ना शिवसेना वाला चुनाव चिन्ह. लेकिन फिर भी महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी के सबसे बड़े चेहरे के रूप में उद्धव ठाकरे सामने आ रहे हैं. ऐसे प्रोजेक्ट किया जा रहा है कि बीजेपी और एकनाथ शिंदे से मुकाबला तो उद्धव ठाकरे ही करेंगे. अभी तक कोई ऐलान तो नहीं हुआ है., लेकिन सियासत में संकेत भी काफी रहते हैं.

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कुर्सी अलग, तवज्जो ज्यादा, उद्धव को ज्यादा महत्व

रविवार को महा विकास अघाड़ी की एक रैली हुई थी. मंच पर कई बड़े नेता बैठे थे, कई ने लाखों की भीड़ के सामने अपने विचार भी रखे, लेकिन सभी की नजर गई एक कुर्सी पर. वो कुर्सी जिस पर उद्धव ठाकरे विराजमान हुए. असल में रैली के दौरान हर नेता अपने स्थान पर बैठा था, लेकिन उद्धव अलग ही बड़ी कुर्सी पर विराजमान दिखे. एक नजर में ऐसा लगा कि उन्हें ही जानबूझकर हाइलाइट किया जा रहा है. ये अलग बात है कि अजीत पवार ने उद्धव की अलग कुर्सी को उनके पीठ दर्द से जोड़ दिया. अब कारण जो भी हो, जनता के बीच संदेश ये गया कि महाराष्ट्र में बीजेपी और शिंदे का मुकाबला करने के लिए उद्धव ठाकरे को आगे किया जा रहा है. 

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अब शिवसेना की जैसी राजनीति रही है, जिस तरह से एक ही परिवार का दबदबा रहा, उसे देखते हुए MVA की रणनीति पर सवाल नहीं उठाया जा सकता. असल में बाला साहेब ठाकरे ने समय के साथ शिवसेना और उसकी विचारधारा में कई बदलाव किए थे. इन बदलाव में मराठा अस्मिता से लेकर हिंदुत्व तक का सफर तय किया गया था. शुरुआती समय में तो शिवसेना की सिर्फ एक विचारधारा रही-मराठी भाषी लोगों को महाराष्ट्र में हक मिले क्योंकि वे धरती पुत्र हैं.

बदलती विचारधारा, शिवसेना की ताकत

लेकिन फिर 90 के दशक में बालासाहेब को इस बात का अहसास हो गया कि अगर बड़ी पार्टी बनना है तो सिर्फ मराठी अस्मिता तक खुद को सीमित नहीं रखा जा सकता. अगर मुंबई के बाहर विस्तार करना है तो हिंदुत्व की पिच पर भी खेलना पड़ेगा. अब ऐसा किया भी गया और तब शिवसेना को इसका फायदा भी हुआ. अब इसी तर्ज पर इस समय उद्धव ठाकरे भी खेलते दिख रहे हैं. उन्होंने हिंदुत्व को पीछे नहीं छोड़ा है, मराठी अस्मिता वाली बात भी नहीं भूले हैं, लेकिन अपनी राजनीति का विस्तार जरूर कर लिया है. अब उनकी रैली में मुस्लिम भी शिरकत करने लगे हैं. हाल ही में जब मालेगांव में जब रैली हुई थी, तब उद्धव को सुनने के लिए अच्छी तादाद में मुस्लिम आए थे. ये ट्रेंड बीजेपी की चिंता जरूर बढ़ा सकता है.

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वैसे उद्धव ठाकरे पर भरोसा करने की एक वजह ये भी है कि 2014 में जब मोदी लहर में पूरा विपक्ष ध्वस्त हो रहा था, उस समय महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने 63 सीटें जीत ली थीं, वो बीजेपी के पास दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी. तब भी उद्धव का नेतृत्व था, उनका चेहरा था और उन्हीं की रणनीति. ऐसे में अब महा विकास अघाड़ी उन्हीं के चेहरे को आगे कर महाराष्ट्र की सियासी पिच पर उतरना चाहती है.

रविकिरण देशमुख की रिपोर्ट
 

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