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किसानों की मौत के लिए बलि का बकरा ढूंढने की कोशिश में महाराष्ट्र सरकार

यवतमाल जिले के सवेरगा गांव में 52 वर्षीय गजानंद नामदेव का नाम भी जिले के उन 21 लोगों में शामिल है जिनकी मौत बीते 3 महीने में कीटनाशकों के अधिक प्रभाव में आने की वजह से हुई.

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किसानों की आत्महत्या के लिए कौन जिम्मेदार?
किसानों की आत्महत्या के लिए कौन जिम्मेदार?

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महाराष्ट्र में यवतमाल जिले समेत विदर्भ क्षेत्र में कीटनाशकों के संपर्क में ज्यादा देर तक रहने की वजह से कपास किसानों की मौत का सिलसिला जारी है. इस त्रासदी के बीच महाराष्ट्र सरकार की कोशिश है कि इन मौतों के लिए बलि का बकरा किसे बनाया जाए. किसी दिन मोटरचालित स्प्रे पम्पों को जिम्मेदार ठहराया जाता है. वहीं, दूसरे दिन कीटनाशक बेचने वालों के सिर ठीकरा फोड़ा जाता है.

इंडिया टुडे टीम ने यवतमाल जिले में ग्राउंड जीरो पर जाकर हकीकत तक पहुंचने की कोशिश की. इस जिले में कीटनाशकों के प्रभाव में आने से 21 किसानों या खेतीहर मजदूरों की मौत हो चुकी है. अगर पूरे विदर्भ क्षेत्र की बात की जाए तो अगस्त से अब तक 36 लोगों की मौत हो चुकी है. यवतमाल के गवर्मेंट मेडिकल कॉलेज में 24 लोग भर्ती हैं जिनमें से 9 की हालत नाजुक बताई गई है.  

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आखिर मौतों का ये सिलसिला थम क्यों नहीं रहा?

यवतमाल जिले के सवेरगा गांव में 52 वर्षीय गजानंद नामदेव का नाम भी जिले के उन 21 लोगों में शामिल है जिनकी मौत बीते 3 महीने में कीटनाशकों के अधिक प्रभाव में आने की वजह से हुई. गजानंद ने 1 अक्टूबर को यवतमाल मेडिकल कॉलेज में आखिरी सांस ली. इसके एक दिन पहले ही गजानंद ने अपने 3.5 एकड़ के खेत में कपास की फसल पर कीटनाशकों का छिड़काव किया था.   

गजानंद की मौत के बाद पुलिस ने कीटनाशकों के खाली पैकेटों और स्प्रे पम्प को जब्त किया. ये सब एक निजी कृषि केंद्र से खरीदा गया था जो  कीटनाशक बेचने के लिए राज्य सरकार से पंजीकृत है. पुलिस ने कहा कि अब इस कृषि केंद्र के मालिक के खिलाफ कार्रवाई होगी. पुलिस का कहना है कि गजानंद की मौत लापरवाही की वजह से हुई. मौत का मामला दर्ज कर लिया गया है. लेकिन हकीकत यही है कि पुलिस को भी मौतों की असली वजह के बारे में कुछ खास पता नहीं है.

यवतमाल मेडिकल कॉलेज के कार्यकारी डीन डॉ मनीष श्रीग्रीवर का कहना है कि किसानों की मौतें जहरीले रसायनों के घातक मिश्रण की वजह से हो रही है. कीटनाशक विभिन्न यौगिकों के बने होते हैं. हमारे पास कुछ के लिए एंटीडॉट्स (प्रतिरोधक दवाएं) हैं लेकिन कुछ का इलाज लक्षणों के आधार पर ही होता है. समस्या तब होती है जब किसानों के शरीर के अंदर सांस के जरिए जहरीले रसायनों का मिश्रण पहुंच जाता है. हम किसानों को सलाह दे रहे हैं कि मिश्रण की जगह सिर्फ एक ही तरह के कीटनाशक का इस्तेमाल करें, वो भी सावधानी के सभी उपायों के साथ.  

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 स्वास्थ्य विभाग आवश्यक दिशानिर्देश जारी कर रहा है लेकिन किसान अपनी फसल को कीटों के प्रकोप से बचाने के लिए किसी भी हद तक जाने को हताश हैं. 12 एकड़ के खेत में कपास उगाने वाले किसान आनंद राव का कहना है कि फसल को जिस तरह के कीटों का सामना करना पड़ रहा है, ऐसा बीते 15 वर्ष में कभी नहीं देखा. इसीलिए किसान अपनी फसल को बचाने के लिए तरह-तरह के कीटनाशकों का इस्तेमाल कर रहे हैं.

सिर्फ नई तरह के कीट ही नहीं बल्कि कपास फसल का आकार भी किसानों के लिए समस्या बना हुआ है. फसल की ऊंचाई 6 फीट से भी अधिक जा रही है. इस वजह से कीटनाशकों का भी अधिक मात्रा में इस्तेमाल करना पड़ रहा है. किसान हर्ष राव का कहना है कि पम्पों से ज्यादा दोषी फसल की ऊंचाई है, जो कि पहली बार देखी जा रही है.

महाराष्ट्र कॉटन सहकारी संघ के निदेशक सुरेश चिंकोलकर ऐसे हालात के लिए पड़ोसी राज्यों से लाए गए बीजों की गुणवत्ता को भी दोषी ठहराते हैं. चिंकोलकर कहते हैं कि जिस तरह का कीट इस बार फसल पर हमला कर रहा है, वो पहली बार देखा जा रहा है.

बहरहाल, ये निश्चित है कि कीटनाशकों के प्रभाव में अधिक देर तक रहने की वजह से विदर्भ में किसानों की मौतें हुई हैं. लेकिन यहां ये बड़ा सवाल है कि कीटनाशकों के अधिक प्रभाव का मुद्दा पहली बार ही क्यों उठा. किसानों के लिए ऐसे विकट हालात के लिए कारण अनेक हो सकते हैं लेकिन असली जड़ ये है कि विदर्भ में उगाई जा रही जेनेटिकली मॉडिफाइड बीटी कॉटन पहली बार 90 दिन के अंदर ही हानिकारक कीटों की चपेट में आ गई.

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