मुंबई की एक सत्र अदालत ने उस व्यक्ति को अग्रिम जमानत दे दी, जिस पर अपने 10 साल के ऑटिज्म (मानसिक विकास से जु़ड़ी एक बीमारी) से ग्रसित बच्चे को उसके जन्मदिन पर मुंबई के एक महंगे रेस्टोरेंट में शैंपेन पिलाने का आरोप था. शख्स पर ये आरोप उससे अलग रह रही उसकी पत्नी ने लगाए थे. शख्स और उसकी पत्नी ने डाइवोर्स फाइल किया है, जिसकी प्रक्रिया अभी जारी है और दोनों अपने नाबालिग बच्चे की कस्टडी के लिए कानूनी लड़ाई भी लड़ रहे हैं.
शख्स ने आरोप लगाया कि मेडिकल पेशे से जुड़ी उसकी पत्नी ने महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में स्थित उसके पैतृक घर में अस्पताल खोल दिया. शख्स के मुताबिक उसकी पत्नी ने इतना हंगामा मचाया कि माता-पिता को अपना घर छोड़कर किराए के मकान में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा. दूसरी ओर, महिला ने भी अपने पति और उसके परिजनों पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं. इस साल की शुरुआत में, शख्स की मां (महिला की सास) ने बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
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उसने आरोप लगाया था कि उसके पति (शख्स के पिता और महिला के ससुर) अपने अंतिम समय में हैं और अपने कुल देवता की पूजा करने के लिए रायगढ़ स्थित अपने पैतृक घर जाना चाहते हैं. लेकिन उसकी बहू उन्हें घर में घुसने नहीं दे रही है. इस मामले में कई दौर की सुनवाई के बाद बॉम्बे हाई कोर्ट ने शख्स और उसकी मां को वर्चुअल मोड के जरिये अपने पैतृक घर में पूजा-पाठ करने की अनुमति दे दी. वर्चुअल मोड में पूजा-पाठ करने के कुछ ही घंटों के भीतर, शख्स के पिता का 4 जून, 2024 को निधन हो गया.
शख्स के पिता के निधन के तुरंत बाद, उसकी पत्नी ने मुंबई पुलिस में मामला दर्ज कराया और आरोप लगाया कि जून 2022 में उसने अपने ऑटिज्म से ग्रसित बच्चे का जन्मदिन मनाते समय, उसे शैम्पेन पिलाया था. गिरफ्तारी के डर से, उस शख्स ने अपने वकील स्वप्न कोडे के माध्यम से अग्रिम जमानत के लिए मुंबई सत्र अदालत का दरवाजा खटखटाया. महिला के वकील ने कोर्ट में दलील दी कि बोतल को बरामद करने और नाबालिग बच्चे को शैम्पेन पिलाने के पीछे के इरादे का पता लगाने के लिए वे चाहते हैं शख्स को पुलिस हिरासत में भेजा जाए.
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शख्स का पक्ष रख रहे वकील स्वप्न कोडे ने हिरासत की मांग का विरोध करते हुए कहा कि बच्चे को शैंपेन नहीं पिलाया गया था, बल्कि फ्रूट ड्रिंग दिया गया था. साथ ही, कोडे ने कहा कि उनके मुवक्किल के खिलाफ यह मामला सिर्फ बदले की भावना से दर्ज कराया गया, क्योंकि उसकी मां ने उसके पिता की अंतिम इच्छा के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. कोडे ने कोर्ट के सामने यह तथ्य भी रखा कि महिला ने पहले भी इसी मुद्दे को उठाते हुए रायगढ़ में बाल कल्याण समिति (CWC) से संपर्क किया था.
लेकिन सीडब्ल्यूडब्ल्यू ने इस तरह से लड़ने के लिए माता-पिता (महिला और उसके पति) दोनों को फटकार लगाई थी, जिसके बाद महिला ने शिकायत वापस ले ली थी. दोनों पक्षों को सुनने के बाद, न्यायाधीश सुनील पाटिल ने पाया कि शख्स के खिलाफ एफआईआर काफी देर से दर्ज कराई गई थी, और बच्चे ने सीडब्ल्यूसी को बताया था कि तरल पदार्थ पीने के बाद उसे कोई दुष्प्रभाव नहीं हुआ था. एक पक्ष उसे शरबत बता रहा है और दूसरा पक्ष शैंपेन. मामले में बदले की भावना से एफआईआर दर्ज कराने की संभावना से इनकार नहीं करते हुए कोर्ट ने शख्स को अग्रिम जमानत दे दी.