महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई के बांद्रा में स्थित लीलावती अस्पताल के पूर्व ट्रस्टियों पर 1250 करोड़ रुपये की धांधली के आरोप लगे हैं. इस घोटाले के कारण अस्पताल की साख पर गहरा असर पड़ रहा है. लीलावती अस्पताल कई विशेषताएं प्रदान करने वाला वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त चिकित्सा संस्थान है, एक बड़े वित्तीय घोटाले में उलझा हुआ है.
क्या है घोटाले की पृष्ठभूमि और आरोप?
लीलावती किर्ती लाल मेहता मेडिकल ट्रस्ट के संस्थापक किशोरी मेहता 2002 में बीमार चल रहे थे और इलाज के लिए विदेश चले गए थे. इस दौरान उनके भाई विजय मेहता ने ट्रस्ट को टेंपरेरी रूप से संभाला. आरोप है कि विजय मेहता ने दस्तावेजों की जालसाजी करके अपने बेटे और भतीजों को ट्रस्टी बना दिया और किशोरी मेहता को स्थायी ट्रस्टी से हटा दिया. यह मामला 2016 तक चला जब किशोरी मेहता ने अपनी स्थिति दोबारा प्राप्त की. 2024 में किशोरी मेहता की मृत्यु के बाद उनके बेटे प्रशांत मेहता स्थायी ट्रस्टी बने और उन्होंने वित्तीय अनियमितताओं का पता लगाया.
पहली प्राथमिकी में 11.52 करोड़ रुपये की जालसाजी और दुरुपयोग के लिए दर्ज की गई, जो मेफेयर रीयलटर्स और वेस्टा इंडिया में निवेश किए गए थे. दूसरी प्राथमिकी 44 करोड़ रुपये की कानूनी फीस के रूप में ठगी के लिए दर्ज की गई, जबकि कोई कानूनी कार्यवाही नहीं हुई थी. तीसरी प्राथमिकी में 1200 करोड़ रुपये से अधिक की अस्पताल सामग्री खरीद के नाम पर इंटरनल ऑडिट में गड़बड़ी पाई गई.
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अतिरिक्त जांच और कानूनी कार्रवाई
पूर्व ट्रस्टियों के खिलाफ आयकर विभाग द्वारा 500 करोड़ रुपये की कर मांग का दावा किया जा रहा है. गुजरात के एक वॉल्ट से 59 करोड़ रुपये मूल्य के आभूषण और कीमती वस्तुओं की चोरी का मामला भी जांच के दायरे में है.
लीलावती अस्पताल में यह घोटाला न केवल संगठन की साख को प्रभावित कर रहा है, बल्कि इसके संचालन पर भी गंभीर सवाल खड़े कर रहा है. तुलनात्मक रूप से, यह मामला व्यापक वित्तीय अनियमितताओं और नैतिकता की कमी का उदाहरण प्रस्तुत करता है.