मुंबई मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (MMRC) ने साफ कर दिया है कि उसका मेट्रो कार शेड 3 लोकेशन को आरे से बदल कर कंजुरमार्ग ले जाने का कोई इरादा नहीं है. कॉरपोरेशन का ये भी कहना है कि प्रोजेक्ट से जुड़ा पर्यावरण आंकलन बहुत पहले किया गया था और उसने किसी रेग्युलेटरी ज़रूरत को नहीं लांघा है.
MMRC के मैनेजिंग डायरेक्टर अश्विनी भिडे ने कहा, ‘आज कार डिपो को आरे से कंजुरमार्ग ले जाना संभव नहीं है. इसलिए अगर वो (कार शेड निर्माण) नहीं होता तो मेट्रो 3 नहीं दौड़ेगी, ऑपरेशनल नहीं होगी.’
मेट्रो की शीर्ष अधिकारी ने सोमवार को चर्चगेट में एसएनडीटी महिला यूनिवर्सिटी में विद्यार्थियों, शिक्षकों और ग्रीन एक्टिविस्ट्स (पर्यावरण प्रेमी) को संबोधित करते हुए ये बात कही. हालांकि एक्टिविस्ट्स ने इसे ब्लैकमेल का हथकंडा बताया. कार्यक्रम में बीएमसी के म्युनिसिपल कमिश्नर प्रवीण परदेशी ने भी हिस्सा लिया.
आरे जंगल क्षेत्र में प्रस्तावित कार शेड (मेट्रो 3) के निर्माण को लेकर पर्यावरण प्रेमी विरोध जता रहे हैं क्योंकि इसके लिए 2,000 से ज़्यादा पेड़ों को काटना पड़ेगा. उनका कहना है कि ऐसा करने से ना सिर्फ पर्यावरण बल्कि जंगल और वन्यजीव प्राणियों पर भी बुरा असर पड़ेगा.
अश्विनी भिडे से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘जब पेड़ कटते हैं इकोलॉजी (पारिस्थितिकी-तंत्र) को नुकसान पहुंचता है लेकिन क्या इससे (मेट्रो कार शेड) वाकई कीमत चुकानी पड़ रही है?’ अधिकारी ने कहा कि एक्टिविस्ट्स का गुस्सा तब जायज़ होता अगर यहां कोई रीयल एस्टेट प्रोजेक्ट बन रहा होता. ये प्रोजेक्ट पब्लिक ट्रांसपोर्ट से जुड़ा है और इसे ग्रीन प्रोजेक्ट के तौर पर पर्यावरण और वन मंत्रालय से हरी झंडी हासिल है.
एक्टिविस्ट्स प्रस्तावित साइट को कंजुरमार्ग ले जाने की मांग कर रहे हैं. इस पर मुंबई मेट्रो की एमडी ने कहा कि ‘संबंधित जम़ीन का टुकड़ा मुकदमेबाज़ी में फंसा है. अगर ये 10 साल बाद मिलता है तो क्या हम मेट्रो का काम तब तक रोक दें.’
आरे में मेट्रो कार शेड बनाने पर जोर देते हुए अश्विनी भिडे ने कहा, “पारंपरिक उपनगरीय ट्रेन सिस्टम और मेट्रो सिस्टम में बहुत बड़ा अंतर होता है. मेट्रो में बहुत सारे इलेक्ट्रॉनिक और कम्युनिकेशन सिस्टम इस्तेमाल करने पड़ते हैं. ये आटोमेशन ग्रेड लेवल 4 है, जहां ड्राइवर रहित ट्रेन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है. ये ट्रेन्स के निर्बाध संचालन के लिए ज़रूरी है. कम्युनिकेशन आधारित सिगनलिंग सिस्टम आधुनिक सिस्टम है और इसमें डिपो का ऐसे उचित स्थान पर होना ज़रूरी है.
यही डिपो मेट्रो ऑपरेशन्स का नर्व सेंटर होगा. सारी गतिविधियां डिपो से संचालित होंगी. हम 8 कोच वाली 31 ट्रेन्स के साथ शुरुआत करेंगे. लेकिन बाद में इसे 8 कोच वाली 50 ट्रेन्स तक बढ़ाया जाएगा. इसकी निगरानी और देखरेख की हर वक्त ज़रूरत पड़ेगी. इसलिए डिपो का कॉरिडोर के किसी एक तरफ होना ज़रूरी है, जिससे प्रभावी रखरखाव किया जा सके. आप डिपो को और कहीं नहीं बना सकते.”
अश्विनी भिडे ने कहा, ‘आज लोकल ट्रेन कुछ मिनट के लिए भी लेट हो जाएं तो हम हताश हो जाते हैं. जब ये सिस्टम (मेट्रो) तैयार हो जाएगा तो शुरू में रोजाना 14 लाख यात्री सफर करेंगे जो बढ़कर प्रतिदिन 17 लाख हो जाएगा. इसलिए 2 या 3 मिनट की फ्रीक्वेंसी हासिल करने के लिए डिपो की लोकेशन निर्णायक है वरना हम शुरू से ही हताशा और अक्षमता दिखाना शुरू कर देंगे.
ये तकनीकी फैसला है जो तकनीकी लोगों की ओर से लिया गया. कुछ और मुद्दे हो सकते हैं जिन पर बात हो सकती है लेकिन आपकी किसी कल्पना के आधार पर ये तय नहीं किया जा सकता कि डिपो कहां होना चाहिए.’
हालांकि कार्यक्रम में उपस्थित एक्टिविस्ट्स मेट्रो अधिकारी की दलीलों से प्रभावित नहीं दिखे. वनशक्ति एनजीओ के स्टालिन डी ने इंडिया टुडे से कहा, ‘ये आरे जंगल को हड़पने का बड़ा खेल है. ये सीधे सीधे ब्लैकमेल हथकंडा है. यहां तक कि म्युनिसिपल कमिश्नर तक लोगों को गुमराह कर रहे हैं.
हमने जो भी कहा है हमारे पास उसे साबित करने के लिए दस्तावेज हैं. लेकिन उनकी अनदेखी की जा रही है और तरह तरह के बहाने बनाए जा रहे हैं. फिलहाल तो ये कार शेड लेकिन फिर धीरे धीरे पूरा जंगल ख़त्म हो जाएगा.