बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने 2006 के नांदेड़ बम विस्फोट मामले में गवाह बनने की अर्जी देने वाली एक याचिका खारिज कर दी है. याचिका यशवंत सहदेव शिंदे ने दायार की थी. कोर्ट ने कहा कि 16 साल बाद गवाह बनने का कोई औचित्य नहीं होता है. याचिकाकर्ता ने यह दावा किया था कि वह बम बनाने की साजिश में शामिल आरोपियों के साथ ट्रेनिंग हासिल कर रहा था और उसकी गवाही इंसाफ के लिए जरूरी है.
2023 में 17 जनवरी को नांदेड़ के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देते हुए शिंदे ने याचिका दायर की, जिसमें उन्हें गवाह के रूप में शामिल होने की इजाजत नहीं दी गई थी. हालांकि, अतिरिक्त सरकारी वकील अश्लेषा देशमुख ने बताया कि शिंदे की याचिका लंबित होने के दौरान ही 4 जनवरी 2025 को सत्र न्यायाधीश ने ट्रायल पूरा कर लिया और आरोपियों को बरी भी कर दिया गया है.
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16 साल बाद गवाह बनने की कोई लोकस नहीं!
जस्टिस वाईजी खोंबरेडे ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं और कहा, "जांच के दौरान, याचिकाकर्ता ने घटना की रिपोर्ट दर्ज होने से लेकर अपनी अर्जी दाखिल करने तक कोई कोशिश नहीं की." कोर्ट ने माना कि विस्फोट मामले में यह अर्जी घटना के 16 साल बाद दाखिल की गई थी. इसलिए, जस्टिस खोंबरेडे ने पाया कि याचिकाकर्ता की गवाह बनने की कोई लोकस नहीं होती है.
मरने वालों में शामिल था वीएचपी कार्यकर्ता!
इस मामले की जांच एंटी-टेररिज्म स्क्वाड (एटीएस) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने की थी, और 2009 में आरोप पत्र दाखिल किया गया था. विस्फोट में दो लोग मारे गए थे और चार घायल हो गए थे. बताया गया था कि मरने वालों में से एक विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) का कार्यकर्ता था.
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आरएसएस कार्यकर्ता के घर हुआ था विस्फोट!
ये विस्फोट 6 अप्रैल, 2006 को नांदेड़ में एक आरएसएस कार्यकर्ता के घर में विस्फोट हुआ था, जिसमें आरएसएस, विहिप या बजरंग दल के लोग शामिल थे. हालांकि, बाद में सबूत के अभाव में आरोपियों को बरी कर दिया गया था.