महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ विवादास्पद टिप्पणी के आरोप में गिरफ्तार किए गए केंद्रीय मंत्री नारायण राणे को मंगलवार रात रायगढ़ जिले में महाड की एक अदालत ने जमानत दे दी. लेकिन, महाराष्ट्र के सियासत में बीजेपी और शिवसेना के बीच यह टकराव अभी खत्म नहीं हुआ है बल्कि सियासी तौर पर और भी बढ़ता दिखाई देगा. महाराष्ट्र में अगले छह महीने के बाद निकाय चुनाव होने हैं, जिसके लिए बीजेपी-शिवसेना में शह-मात का खेल शुरू हो गया है.
राणे ने शिवसेना से सीखा आक्रमक तेवर
बता दें कि केंद्रीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्री नारायण राणे भले ही अभी बीजेपी में हों, पर उनकी सियासी पैदाइश और परवरिश दोनों शिवसेना में हुई. शिवसेना प्रमुख बालासाहब ठाकरे के नजदीक रहते हुए राणे ने उन्हीं की आक्रामक शैली में राजनीति करने के हुनर सीखे. नारायण राणे ने शिवसेना में एक 'शाखा प्रमुख' के रूप में अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया और 1999 में पहली शिवसेना-बीजेपी सरकार में आठ महीने के लिए मुख्यमंत्री रहे. हालांकि, उद्धव ठाकरे से सियासी टकराव के चलते उन्हें शिवसेना से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया, जिसके बाद वो कांग्रेस से होते हुए बीजेपी में शामिल हो गए.
उद्धव के इर्द-गिर्द आक्रमक नेताओं की फौज
वहीं, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भले सौम्य दिखते हों, लेकिन उनके इर्द-गिर्द नारायण राणे जैसी ही आक्रामकता वाले शिवसैनिकों नेताओं की भरमार है. शिवसेना अपने विपक्षी नेताओं पर आक्रमक तरीके से निशाना साधने से पीछे नहीं रहती. महाराष्ट्र की सियासत में शिवसेना की आक्रमक शैली से निपटने के लिए बीजेपी नारायण राणे को सिर्फ पार्टी में ही नहीं लाई है, बल्कि उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाकर कद को बढ़ा दिया है.
नारायण राणे को शिवसेना पर, खासकर ठाकरे परिवार पर तीखे हमले करने के लिए जाना जाता है. राणे ने भले ही शिवसेना के संरक्षक बालासाहेब ठाकरे की कभी आलोचना नहीं की, लेकिन उद्धव ठाकरे पर जमकर निशाना साधा है. इतने सालों में वहा उद्धव की पत्नी रश्मि और बेटे आदित्य ठाकरे पर भी कटाक्ष करने से पीछे नहीं रहे. यही वजह है कि राणे को किसी भी तरह का सम्मान देना शिवसेना को कतई पसंद नहीं आता है. देवेंद्र फडणवीस अपनी सरकार में राणे को शामिल करना चाहते थे, लेकिन शिवसेना के दबाव के कारण वह ऐसा नहीं कर सके.
बीजेपी और शिवसेना के नाता टूटने के करीब पौने दो साल के बाद और छह महीने के बाद होने वाले निकाय चुनाव से पहले मोदी सरकार में अब उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाकर महाराष्ट्र की सियासत में एक ट्रंप कार्ड के तौर पर चला है. शिवसेना-बीजेपी गठबंधन के दौर में समूचा कोकण शिवसेना के ही हिस्से में था. इसलिए बीजेपी वहां अपना जनाधार कभी बढ़ा ही नहीं पाई. कोकण में शिवसेना की मजबूती का बड़ा कारण नारायण राणे को माना जाता है.
कोकण इलाके में पड़ेगा सियासी असर
कोकण मूल के लोगों की बड़ी आबादी मुंबई में बसती है. इसीलिए मुंबई महानगरपालिका पर भी शिवसेना की इस मजबूती का असर दिखता है, लेकिन अब बीजेपी नारायण राणे को महत्त्व देकर कोकण और मुंबई के इसी जनाधार में अपने पाले में लाने की कवायद शुरू की है. राणे जन-आशिर्वाद यात्रा के जरिए बीजेपी का माहौल बनाने में जुटे थे, ऐसे में सियासी टकराव होना लाजमी था.
महाराष्ट्र में अगले छह महीने के बाद मुंबई महानगरपालिका सहित तमाम शहरों में निकाय के चुनाव होने हैं. कोकण और मुंबई में अपनी मजबूती के कारण ही शिवसेना 32 साल से मुंबई महानगरपालिका पर राज करती आ रही है. मुंबई निकाय चुनाव में बीजेपी और शिवसेना अलग-अलग लड़ी थी, जिसका बीजेपी को बड़ा फायदा हुआ था और शिवसेना से महज दो सीटें पीछे रह गई थी. बीजेपी इस बार नारायण राणे के सहारे थोड़ा और लंबी छलांग लगाकर शिवसेना के वर्चस्व को तोड़ने की कवायद में हैं.
राणे शिवसेना को दे रहे चुनौती
मुंबई, ठाणे और नवी मुंबई के नगर निकायों सहित एक दर्जन से अधिक नगर निगमों में चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में उद्धव ठाकरे के एक धुर विरोधी राणे ने मुंबई में शिवाजी पार्क में बाल ठाकरे स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित करके अपनी जन आशीर्वाद यात्रा शुरू करके शिवसेना पर निशाना साधा था. उन्होंने कहा था कि भाजपा अगले साल की शुरुआत में होने वाले मुंबई निकाय चुनाव में जीत हासिल करेगी. उन्होंने कहा कि बीजेपी सत्ता में वापसी करेगी. हम बीएमसी में शिवसेना के तीन दशक के शासन का अंत करेंगे.
हालांकि, शिवसेना और ठाकरे परिवार पर नारायण राणे के हमले से बीजेपी को फायदे और नुकसान दोनों हैं. माना जा रहा है कि कोंकण क्षेत्र से बड़ी आबादी वाले इलाकों में अगले साल की शुरुआत में बीएमसी चुनावों में भाजपा को शिवसेना का मुकाबला करने में मदद करेगा. वहीं, राणे के बयान के बाद शिवसेना नेता और कार्यकर्ता जिस तरह से सड़क पर उतरे और आक्रमक तरीके हमला बोला है .ऐसे में नारायण राणे की गिरफ्तारी ने शिवसैनिकों का मनोबल भी बढ़ा दिया है. इस घटना ने उन्हें राज्य में अपनी सरकार होने का अहसास कराया है.