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मुंबई में बढ़ रहा महिला अपराधियों का ग्राफ

देश में महिलाएं एक ओर जहां विकास की नित नई-नई गाथाएं लिख रही हैं, वही दूसरी ओर अबला या कमजोर समझी जाने वाली ये औरतें एक से बढ़कर एक कई अपराधिक वारदातों में शामिल हो रही हैं.

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देश में महिलाएं एक ओर जहां विकास की नित नई-नई गाथाएं लिख रही हैं, वही दूसरी ओर अबला या कमजोर समझी जाने वाली ये औरतें एक से बढ़कर एक कई अपराधिक वारदातों में शामिल हो रही हैं. इसकी पुस्टी मुंबई पुलिस से मिली जानकारी से हो रही है.

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सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगी गई जानकारी से पता चला है कि मुंबई में हर रोज 7 से 8 महिलाएं किसी न किसी आरोप में गिरफ्तार हो रही हैं. इनमें से अधिकतर मामले घरेलू हिंसा और शारीरिक शोषण के हैं.

जानकारों की मानें, तो घरेलू हिंसा में दहेज हिंसा, महिलाओं को जलाना, मारना-पीटना, सास-बहु में हिंसक झगड़े होना जैसे मामले हैं. आरोपी महिलाएं मुंबई और आसपास के किसी न किसी जेल में बंद हैं, या जमानत पर बाहर हैं.

मुंबई पुलिस के प्रवक्ता महेश पाटिल कहते हैं, 'अधिकतर मामले सोसाइटी या स्लम में होने वाले आपसी झगड़े, मारपीट, दहेज या घरेलू हिंसा के होते हैं, जिसमें महिलाएं शामिल होती हैं. इनमें एक ही घटना में 5-7 महिलाएं घटना को अंजाम देती हैं. इसकी तुलना में मर्डर या जानलेवा हमले जैसे मामलों में महिलाएं काफी कम संख्या में शामिल होती हैं.'

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उधर, महिलाओं को शिक्षित करने या महिला सुरक्षा के लिए कानून बनाए जाने के बाद भी महिलाओं पर दिन-प्रतिदिन जुल्म हो रहे हैं. आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक, 2011 के मुकाबले 2013 में 11 फीसदी अधिक महिलाओं को विभिन्न अपराधिक मामलों में गिरफ्तार किया गया. 2011 में जहां 2599 महिलाओं को अपराध करने के मामले में गिरफ्तार किया गया था, वहीं 30 नवम्बर 2013 तक यह आंकड़ा 2797 पहुंच गया. अगर 2011, 2012 और 2013 को मिलाकर आकड़ों की बात करें तो कुल 7934 महिलाओं को गिरफ्तार किया जा चुका है. आकड़ों से साफ है कि महिलाओ के प्रति जहां अपराध बढ़ रहे हैं, वही महिलाएं भी अपराधिक घटनाओं में काफी तेजी से शामिल हो रही हैं.

आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गल्गाल्ली के मुताबिक, 'सरकार और पुलिस महकमा दोनों ही महिलाओं को सुरक्षा देने में असफल साबित हो रहे हैं. महिलाओं के मन में पुलिस और कानून का खौफ नहीं है और वे दिन-प्रतिदिन अपराधिक घटनाओं को अंजाम दे रही हैं.'

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