पाकिस्तान से 2015 में लौटी दिव्यांग गीता को अभी भी अपने परिवार की तलाश है. इसके लिए कई कोशिशें की गई, लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिली है. अपने परिवार की तलाश में गीता मंगलवार को महाराष्ट्र के नांदेड़ में पहुंची. हालांकि, अभी गीता को उसका परिवार नांदेड़ में भी नहीं मिला है.
आपको बता दें कि 20 साल पहले पाकिस्तानी रेंजर्स को गीता 7 या 8 साल की उम्र में पाकिस्तान के लाहौर स्टेशन पर खड़ी समझौता एक्सप्रेस में मिली थी. उसे ईदी फाउंडेशन ने गोद ले लिया था. पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की पहल पर गीता 26 अक्टूबर, 2015 को वापस भारत आई थी. सुषमा स्वराज ने गीता को 'हिंदुस्तान की बेटी' नाम दिया था.
वतन वापसी के बाद ही सरकार ने गीता के परिवार को खोजने की कई बार कोशिश की. 30 वर्षीय गीता को अभी तक उसका परिवार नहीं मिला है. फिलहाल वो इंदौर के आनंद सेवा सोसायटी में रहती है. यह एनजीओ दिव्यांग लोगों के काम कर करता है. बीते कुछ सालों में कई लोगों ने गीता के परिजन होने का दावा किया, लेकिन यह दावा सिर्फ हवा-हवाई ही निकला.
मंगलवार को अपने परिवार की तलाश में गीता नांदेड़ पहुंची. उनके साथ मौजूद एनजीओ के सदस्य ज्ञानेंद्र पुरोहित ने बताया कि गीता का कहना है कि उसका घर स्टेशन के पास था, जहां हॉस्पिटल, मंदिर और नदी थी. इसी कारण हम नांदेड़ हैं, क्योंकि सचखंड एक्सप्रेस नांदेड़ से अमृतसर के बीच चलती है और समझौता एक्सप्रेस अमृतसर से पाकिस्तान जाती है.
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ज्ञानेंद्र पुरोहित ने कहा कि नांदेड़ से लगभग 100 किलोमीटर दूर स्थित तेलंगाना में बसर नामक एक कस्बे को गीता ने अपने बचपन का घर बताया था, इसलिए हम यहां आए. नांदेड़ के पुलिस निरीक्षक द्वारकादास चिखलकर ने बताया कि उनकी टीम गीता को हरसंभव मदद मुहैया करा रही थी.