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क्या 'मिशन 2019' पर भारी पड़ेगी पुणे की जातीय हिंसा?

2014 लोकसभा चुनाव की बात की जाए तो 48 में 23 सीटें बीजेपी ने जीती थीं. जबकि शिवसेना को 18, कांग्रेस को 2, एनसीपी को 4 और स्वाभिमान पक्ष के खाते में 1 सीट गई थी.

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राहुल गांधी और पीएम नरेंद्र मोदी
राहुल गांधी और पीएम नरेंद्र मोदी

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मुंबई के बाद महाराष्ट्र का दूसरे सबसे बड़ा शहर पुणे हिंसा की चपेट में है. मराठा साम्राज्य की राजधानी रहा पुणे 21वीं सदी में 200 साल पहली उस लड़ाई को लेकर जातीय हिंसा का शिकार हुआ है, जो भारत को गुलाम बनाने वाले अंग्रेजों से लड़ी गई थी. वो युद्ध ब्राह्मण पेशवा बाजीराव ने अपनी फौज के साथ अंग्रेजों के खिलाफ लड़ा था, लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी की टुकड़ी में दलित भी पेशवा के खिलाफ लड़ रहे थे. दावा है कि 1818 के उस युद्ध में दलितों ने पेशवा को परास्त किया था और उसी का 1 जनवरी को उसी का जश्न मनाया जा रहा था, जब दलित और मराठा फिर आमने-सामने आ गए.

महाराष्ट्र की दो बड़ी जातियों के बीच ये तनाव उस वक्त सामने आया है, जब 2019 के आम चुनाव का बिगुल बज चुका है. बीजेपी और कांग्रेस समेत सभी क्षेत्रीय दलों ने मिशन 2019 पर काम शुरू कर दिया है. ऐसे में इस जातीय हिंसा का आगामी लोकसभा चुनाव में भी असर नजर आ सकता है.

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सियासी समीकरण

सूबे में करीब 12 फीसदी दलित आबादी है. जबकि आदिवासी और दलितों की बात की जाए तो दोनों की करीब 19 फीसदी आबादी है. राज्य की कुल 48 लोकसभा सीटों में 18 पर दलित प्रभाव रखते हैं. 2014 लोकसभा चुनाव की बात की जाए तो 48 में 23 सीटें बीजेपी ने जीती थीं. जबकि शिवसेना को 18, कांग्रेस को 2, एनसीपी को 4 और स्वाभिमान पक्ष के खाते में 1 सीट गई थी.

जातीय समीकरण

महाराष्ट्र में मुख्य रूप से जातीय समीकरण पर नजर डाली जाए तो ब्राह्मण, ओबीसी, मराठा कुंबी, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा मुस्लिम वोटर्स हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2014 लोकसभा में बीजेपी को 23 सीटों के साथ करीब 27.6 प्रतिशत वोट मिला था. इनमें सबसे ज्यादा करीब 52 फीसदी उच्च जाति का वोट था. इसके साथ करीब 38 फीसदी ओबीसी, 33 फीसदी एसटी, 19 फीसदी एससी और मराठा 24 प्रतिशत वोट मिला था.

वहीं 18 सीटों के साथ 20.8 फीसदी वोट पाने वाली शिवसेना को सबसे ज्यादा मराठा वोट मिला था. जबकि कांग्रेस के खाते में सबसे ज्यादा मुस्लिम वोट और दलित वोट गया था. कांग्रेस को महज 2 सीटें मिली थीं और 18.3 फीसदी वोट उसके खाते में गया था. इसमें दलित वोट 40 फीसदी से ज्यादा रहा था. हालांकि, उसे मराठा वोट करीब 10 फीसदी मिलने का अनुमान लगाया गया. वहीं एनसीपी को 4 सीटों के साथ 16.1 फीसदी वोट मिला था. इसमें करीब पचास फीसदी वोट मराठा और दलितों का माना गया.

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2014 में बीजेपी को जहां उच्च जातियों के साथ ओबीसी वोट का बड़ा हिस्सा मिला. वहीं दलित वोटरों ने भी बड़ी तादाद में मोदी पर भरोसा जताया था.

इसके बाद उसी साल हुए विधानसभा चुनाव में जनता ने बीजेपी और शिवसेना गठबंधन पर भरोसा जताते हुए सत्ता के शिखर तक पहुंचाया. लेकिन सरकार बनने के बाद से आरक्षण को लेकर मराठा आंदोलन, किसानों का आंदोलन, शिवसेना की नाराजगी और दलितों के साथ उत्पीड़न की घटनाएं सामने आईं. जुलाई 2016 में भी पुणे में एक लड़की के साथ रेप की घटना को लेकर दलितों को टारगेट किए जाने की घटना सामने आई थी. वहीं आरक्षण के मुद्दे पर दोनों जातीय समुदायों के बीच खींचतान सामने आती रही है.

अब एक बार फिर पुणे जातीय हिंसा की आग में सुलग रहा है और इस पर राजनीति भी शुरू हो गई है. गुजरात में दलितों की लड़ाई लड़ने वाले जिग्नेश मेवाणी समेत कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, बसपा सुप्रीमो मायावती समेत तमाम बीजेपी विरोधी दल और खेमे इस लड़ाई को बड़ा रूप दे रहे हैं. राहुल ने बाकायदा ट्वीट कर बीजेपी पर दलितों के दमन का आरोप लगाया है. वहीं मायावती ने भी भीमा कोरेगांव की घटना पर बीजेपी को घेरा है. ऐसे में ये माना जा रहा है कि अगर राहुल और विपक्ष दलितों को साधने में कामयाब हो पाते हैं तो ये दांव 2019 में बीजेपी के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है. 

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