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प्रफुल्ल पटेल के जाने से विदर्भ में ढीली हो सकती है शरद पवार की सियासी पकड़

प्रफुल्ल पटेल एनसीपी के कार्यकारी अध्यक्ष हैं. उनकी गिनती शरद पवार के भरोसेमंद नेताओं में होती रही है. ऐसे में प्रफुल्ल पटेल का अजित पवार के साथ राजभवन जाना, एनसीपी विधायकों के मंत्री पद की शपथ लेते समय मौजूद रहना और फिर इसके बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी मौजूद रहना चौंका गया.

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प्रफुल्ल पटेल
प्रफुल्ल पटेल

महाराष्ट्र में समीकरण बदल गए हैं. कल तक विपक्ष में रहे राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के कई विधायक अजित पवार के साथ सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल हैं. शरद पवार ने इसे पार्टी लाइन के विपरीत जाकर विधायकों का फैसला बताया और ऐसा करने वाले नेताओं पर एक्शन की बात कही है. एनसीपी में हुई इस बगावत के बाद जो दो नाम सबसे ज्यादा चर्चा में हैं, वो हैं- अजित पवार और प्रफुल्ल पटेल.

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अजित पवार महाराष्ट्र की शिंदे सरकार में डिप्टी सीएम बनने से पहले विधानसभा में विपक्ष के नेता थे तो वहीं, प्रफुल्ल पटेल एनसीपी के कार्यकारी अध्यक्ष. प्रफुल्ल पटेल की गिनती शरद पवार के भरोसेमंद नेताओं में होती रही है. ऐसे में प्रफुल्ल पटेल का अजित पवार के साथ राजभवन जाना, एनसीपी विधायकों के मंत्री पद की शपथ लेते समय मौजूद रहना और फिर इसके बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी मौजूद रहना चौंका गया.

शरद पवार ने अजित पवार और छगन भुजबल की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद पत्रकारों से बात की. पवार ने इस फैसले की पहले से जानकारी न होने की बात कही और कहा कि प्रफुल्ल पटेल पर कार्रवाई करनी होगी क्योंकि उन्हें हमने पार्टी में जिम्मेदारी दी थी. प्रफुल्ल पटेल विदर्भ क्षेत्र के गोंदिया से आते हैं. वे चार बार गोंदिया-भंडारा लोकसभा सीट से सांसद रह चुके है.

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आठ बार के सांसद हैं प्रफुल्ल

प्रफुल्ल पटेल आठवीं बार सांसद हैं. वे चार बार 1991, 1996, 1998 और 2009 में गोंदिया-भंडारा लोकसभा सीट का संसद में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. वहीं, प्रफुल्ल पटेल चौथी बार राज्यसभा सांसद हैं. 2022 में राज्यसभा के लिए निर्वाचित होने से पहले साल 2000, 2006 और 2016 में भी वे उच्च सदन के सदस्य रह चुके हैं.

मनमोहन सरकार के सबसे युवा मंत्री

प्रफुल्ल पटेल साल 2009 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री भी रह चुके हैं. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार में तब वे सबसे युवा मंत्री थे. प्रफुल्ल पटेल 1985 में पहली बार 33 साल की उम्र में गोंदिया नगर परिषद के अध्यक्ष चुने गए थे. अब प्रफुल्ल पटेल के अजित पवार के साथ बागी धड़े के साथ जाने से विदर्भ क्षेत्र में पार्टी के लिए बड़ा शून्य उत्पन्न हो गया है.

प्रफुल्ल के पिता भी रहे हैं विधायक

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में 17 फरवरी 1957 को जन्मे प्रफुल्ल पटेल के पिता भी राजनीति में थे. प्रफुल्ल पटेल के पिता मनोहरभाई पटेल गोंदिया सीट का विधानसभा में प्रतिनिधित्व किया था. हालांकि, प्रफुल्ल पटेल जब 13 साल के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया था. बॉम्बे विश्वविद्यालय से वाणिज्य स्नातक प्रफुल्ल पटेल ईडी की जांच का भी सामना कर रहे हैं. ईडी प्रफुल्ल पटेल से कई बार पूछताछ कर चुकी है.

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गोंदिया-भंडारा बनेगा पक्ष-विपक्ष का अखाड़ा?

प्रफुल्ल पटेल गोंदिया भंडारा लोकसभा सीट से चार बार के सांसद हैं तो वहीं महाविकास अघाड़ी में एनसीपी की गठबंधन सहयोगी कांग्रेस के महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले भी इसी लोकसभा सीट से आते हैं. नाना पटोले भंडारा की साकोली विधानसभा से विधायक हैं. साल 2021 में उन्हें महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था. 

नाना पटोले महाविकास आघाड़ी की सरकार के समय विनाधसभा के स्पीकर भी चुने गए थे. 2014 में नाना पटोले ने बीजेपी के टिकट पर गोंदिया-भंडारा लोकसभा का चुनाव लड़ा था. उन्होंने प्रफुल्ल पटेल को करीब 1 लाख 50 हजार वोटों से हराया था और वह पहली बार सांसद बने थे. वहीं, 1999-2014 तक लगातार तीन बार वह भंडारा जिले से विधायक रहे चुके हैं. नाना पटोले 1990 में भंडारा जिले की सांगड़ी जिला परिषद के सदस्य भी रह चुके हैं. ऐसे में ताजा घटनाक्रम के बाद क्या गोंदिया-भंडारा दो पुराने प्रतिद्वंदियों के बीच सियासी वर्चस्व की जंग का अखाड़ा बनेगा?

क्या है विदर्भ का सियासी महत्व? 

राजनीतिक लिहाज से देखें तो विदर्भ क्षेत्र में 11 जिले आते हैं. इन जिलों में लोकसभा की 10 और विधानसभा की 62 सीटें हैं. लोकसभा चुनाव की बात करें तो साल 2019 में बीजेपी को पांच, शिवसेना को तीन और एक सीट पर कांग्रेस को जीत मिली थी. महाराष्ट्र की 48 में से चार सीटें जीतने वाली एनसीपी विदर्भ में खाता भी नहीं खोल पाई थी. एनसीपी चीफ शरद पवार ने जब विदर्भ से आने वाले अपने करीबी प्रफुल्ल पटेल को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का ऐलान किया था, तब इस कदम को इस क्षेत्र में पार्टी की स्थिति सुधारने के लिए चले गए दांव के रूप में देखा गया लेकिन अब तस्वीर बदल गई है. ऐसे में सवाल ये है कि बदले हालात में विदर्भ की सियासत पर पवार की पकड़ मजबूत होगी या ढीली?

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(रिपोर्ट- अमित गोपलानी, इंटर्न)

 

 

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