
महाराष्ट्र में सियासत ने ऐसी करवट ली कि सरकार के साथ ही विधानसभा की भी तस्वीर बदल गई. सुबह जो अजित पवार महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता थे, शाम होते-होते महाराष्ट्र सरकार के डिप्टी सीएम बन चुके थे. सियासत की बिसात पर अपनी चाल, रणनीति से चौंकाते रहे मराठा छत्रप शरद पवार खुद चौंक गए. पवार के सामने अब उसी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नाम और निशान को बचाने की चुनौती आ खड़ी हुई है जिसकी नींव खुद उन्होंने ही रखी थी.
महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार पूर्ण बहुमत में है. ऐसे में बीजेपी का अजित पवार को साथ लेना, नौ मंत्री पद देना सबको चौंका गया. अजित पवार की बगावत के बाद सवाल ये भी है कि आखिर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को महाराष्ट्र में 'पवार पॉलिटिक्स' की जरूरत क्यों पड़ी?
राजनीति के जानकार इसके पीछे चार प्रमुख कारण बताते हैं. पहला- शिवसेना शिंदे गुट के 16 विधायक यदि अयोग्य ठहराए जाते हैं तो सरकार अल्पमत में न आए, दूसरा- विपक्षी एकजुटता की कवायद को पंक्चर करने का प्लान, तीसरा- महाराष्ट्र चुनाव पर नजर और चौथा- एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद उद्धव ठाकरे को मिल रही सहानुभूति के कारण नुकसान की भरपाई के लिए कुनबा बढ़ाने की कोशिश.
विधायक अयोग्य हों तो भी सुरक्षित रहे सरकार
एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना विधायकों ने बगावत कर दी थी जिसके बाद उद्धव सरकार को शिवसेना में बगावत के बाद इस्तीफा देना पड़ा था. शिवसेना की ओर से 16 विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग करते हुए स्पीकर से शिकायत भी की थी. सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में स्पीकर से विधायकों की अयोग्यता पर फैसला लेने के लिए कहा था. ऐसे में ताजा घटनाक्रम को स्पीकर के फैसला लेने, विधायकों को अयोग्य करार दिए जाने की स्थिति में सरकार सुरक्षित करने की कवायद से भी जोड़कर देखा जा रहा है.
विपक्षी एकजुटता को पंक्चर करने का प्लान
देश में अगले साल लोकसभा चुनाव होने हैं और इन चुनावों को लेकर विपक्षी दलों को एकजुट करने की कवायद चल रही है. पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी और शिवसेना एक साथ चुनाव मैदान में उतरे थे. तब एनडीए को 41 सीटों पर जीत मिली थी. बीजेपी ने 23 और शिवसेना ने 18 सीटों पर जीत हासिल की थी. कांग्रेस को एक और एनसीपी को चार सीटों पर जीत मिली थी. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम एक और एक सीट पर निर्दलीय को जीत मिली थी.
विपक्षी एकजुटता की कवायद में भी जिन राज्यों पर विपक्ष का मुख्य फोकस था, उनमें यूपी, बिहार और बंगाल के साथ ही महाराष्ट्र भी था. लोकसभा सीटों के लिहाज से महाराष्ट्र, यूपी के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य भी है. ऐसे में बीजेपी के सामने शिवसेना यूबीटी, एनसीपी और कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ने से मिलकर मुश्किलें खड़ी न कर दें, इस खतरे को काम करने की कोशिश से भी अजित पवार की बगावत को जोड़कर देखा जा रहा है.
नीतीश के साथ लीड रोल में थे पवार
नीतीश कुमार की अगुवाई में चल रही कवायद के तहत पटना में एक बैठक हो चुकी है और दूसरी बैठक 13-14 जुलाई को कर्नाटक के बेंगलुरु में होनी थी. शरद पवार इस कवायद में सक्रिय भूमिका निभा रहे थे. पटना की बैठक में जब आम आदमी पार्टी और कांग्रेस, अरविंद केजरीवाल और उमर अब्दुल्ला के बीच तीखी बहस हुई तब भी पवार ही थे जिन्होंने अपने और उद्धव के साथ आने का उदाहरण देते हुए सबको शांत कराया. पवार ने ही शिमला में 12 जुलाई को तय बैठक की तारीख और जगह बदलने का ऐलान भी किया था.
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बेंगलुरु में 13-14 जुलाई को होने वाली इस बैठक में न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर चर्चा होनी थी लेकिन पहले यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर शिवसेना यूबीटी, आम आदमी पार्टी जैसे दलों की अलग राह और अब एनसीपी में बगावत. ताजा घटनाक्रम के बाद ये बैठक टल गई है. जेडीयू की ओर से कहा गया है कि ये बैठक अब संसद के मॉनसून सत्र के बाद होगी. बैठक के टलने के पीछे भी महाराष्ट्र के ताजा सियासी घटनाक्रम को प्रमुख वजह माना जा रहा है.
बीजेपी की नजर महाराष्ट्र चुनाव, बीएमसी पर
एनसीपी में टूट और अजित पवार के एनडीए के साथ चले जाने को बीजेपी के मिशन महाराष्ट्र से जोड़कर देखा जा रहा है. महाराष्ट्र के ताजा सियासी घटनाक्रम को लेकर वरिष्ठ पत्रकार अशोक कहते हैं कि शिवसेना में टूट के बाद एमवीए और मजबूत होकर उभर रहा था. शिंदे सरकार के गठन के बाद उपचुनाव में एनडीए का प्रदर्शन ठीक नहीं रहा. अंधेरी उपचुनाव में एनडीए ने उम्मीदवार भी नहीं उतारा जबकि पुणे की जिस कस्बापेठ विधानसभा सीट को बीजेपी का गढ़ कहा जाता था, वहां उपचुनाव में कांग्रेस ने सत्ताधारी गठबंधन को शिकस्त दे दी. शिवसेना टूटने के बाद उद्धव के पक्ष में संवेदना नजर आई है और इसको देखते हुए महाराष्ट्र चुनाव में जीत के लिए बीजेपी को एक बफर वोट बैंक की जरूरत महसूस हो रही थी. बीजेपी को इसके लिए अजित पवार के रूप में विकल्प नजर आया.
बीजेपी को अजित पवार के साथ से बीएमसी की सत्ता का रास्ता भी नजर आ रहा है. बीएमसी में शिवसेना के पास बहुमत था. माना जा रहा है कि बीएमसी के चुनाव लोकसभा चुनाव के पहले भी हो सकते हैं. बीएमसी चुनाव में बीजेपी केवल शिवसेना शिंदे गुट के भरोसे नहीं जाना चाहती. सत्ताधारी गठबंधन की नजर बीएमसी की सत्ता पर है और एक वजह ये भी है कि बीएमसी चुनाव में अगर सत्ताधारी गठबंधन हारता है तो पूरे महाराष्ट्र में अलग संदेश जाएगा. बीजेपी नहीं चाहती कि इस तरह की परिस्थितियां बनें. अजित पवार की मुंबई एनसीपी पर मजबूत पकड़ मानी जाती है ऐसे में बीजेपी को लगता है कि अगर उनके आने से वोट में मामूली इजाफा भी हुआ तो एनडीए बीएमसी की सत्ता पर भी काबिज हो सकता है.
उद्धव के नुकसान की भरपाई का माइक्रो प्लान
बीजेपी ने उद्धव के जाने से हुए नुकसान की भरपाई के लिए माइक्रो लेवल पर प्लान बनाया. शिवसेना के दो फाड़ होने के बाद एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले धड़े को अपने साथ जोड़ लिया और महाराष्ट्र में कुनबे के विस्तार पर फोकस किया. महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ शिवसेना शिंदे गुट के अलावा प्रोफेसर जोगिंदर कवाड़े की पीपुल्स रिपब्लिकन पार्टी, विनायक मेटे की शिव संग्राम पार्टी, सुलेखा कुंभारे की बहुजन रिपब्लिकन एकता मंच, सदाभाऊ खोत की रैयत क्रांति संगठन, महादेव जानकर की राष्ट्रीय समाज पार्टी और रामदास अठावले की आरपीआई हैं. अब अजित पवार के साथ आ जाने से महाराष्ट्र में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए का कुनबा नौ दलों तक पहुंच गया है.
सियासी चक्रव्यूह में फंस गए शरद पवार?
शरद पवार ने कुछ ही दिन पहले 2019 में तीन दिन की फडणवीस-अजित सरकार को लेकर बयान दिया था. उन्होंने पहली बार ये स्वीकार किया था कि जो रातोरात सरकार गठन का जो घटनाक्रम हुआ था, उसकी जानकारी उन्हें थी. पवार ने कहा था कि इसे आप मेरा जाल समझें या जो भी. अब ताजा हालात में पवार खुद सियासी जाल में उलझे नजर आ रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से भोपाल में चुनाव अभियान का आगाज करते हुए भ्रष्टाचार को लेकर एनसीपी पर हमला बोला था और कार्रवाई की गारंटी दी थी, अजित पवार का बीजेपी के साथ सरकार में शामिल होना पवार का डबल गेम तो नहीं? ये बहस भी छिड़ गई है.
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ऐसा इसलिए, क्योंकि शरद पवार जब अजित पवार की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद मीडिया के सामने आए, अपनी बात ही शुरू की पीएम मोदी के बयान से. पवार मुस्कराते भी नजर आए और ये भी कहा कि जो कुछ भी हुआ है उससे तनिक भी चिंतित नहीं हूं. उन्होंने पार्टी को नए सिरे से खड़ा करने की बात कही और ये भी कहा कि कुछ लोग बोल रहे हैं एनसीपी हमारी है. हम नाम और निशान के लिए लड़ाई नहीं करेंगे. जनता जानती है कि एनसीपी किसकी है. पवार की इन बातों में भी सियासत के जानकारों को डबल गेम नजर आ रहा है और यहीं एनसीपी प्रमुख सियासी चक्रव्यूह में फंसते नजर आ रहे हैं.
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एनसीपी ने महाराष्ट्र में विपक्ष का नया नेता भी बना दिया है. जितेंद्र अव्हाड़ को महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष का नेता बनाने को लेकर एनसीपी ने स्पीकर को पत्र भेज दिया है. ऐसी स्थिति में पार्टी पर कब्जे की जंग का शुरू होना तय माना जा रहा है. अजित पवार और उनके समर्थक विधायकों पर अयोग्यता की तलवार लटकेगी. ऐसी स्थिति में वे ये साबित करने की कोशिश करेंगे कि हम ही असली एनसीपी हैं.
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ऐसे में शरद पवार के सामने पार्टी का नाम और निशान के साथ ही नेता-कार्यकर्ता बचाए रखने की भी चुनौती होगी. ऐसी स्थिति में जब प्रफुल्ल पटेल और छगन भुजबल जैसे नेता अजित के साथ हो लिए हैं, पवार सियासी चक्रव्यूह में फंसे नजर आ रहे हैं. देखना होगा कि वे किस तरह से इस चुनौती से पार पाते हैं.