महाराष्ट्र में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं और चुनावों से पहले मराठा आरक्षण का मुद्दा सियासी दलों के लिए गले की फांस बन गया है. कुनबी प्रमाण पत्र जारी करने और फूलप्रूफ मराठा आरक्षण की मांग को लेकर मनोज जरांगे ने आंदोलन छेड़ रखा है. वहीं, मराठा आरक्षण समर्थक अब नेताओं के काफिले और उनकी रैलियों को भी टार्गेट करने लगे हैं. दो दिन पहले ही सोलापुर में मराठा आरक्षण समर्थकों ने मराठा क्षत्रप शरद पवार का काफिला रोक इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करने की मांग की थी. पवार ने आरक्षण की मांग के समर्थन की बात कही और तब जाकर उनका काफिला आगे बढ़ सका लेकिन रैली में भी उन्हें काले झंडे दिखाए गए और मनोज जरांगे के समर्थन में नारे लगाए गए.
इन सब घटनाक्रमों के एक दिन बाद ही इसे लेकर शरद पवार का बड़ा बयान आया है. शरद पवार ने आरक्षण को लेकर 50 फीसदी की लिमिट हटाने की मांग करते हुए कहा कि केंद्र सरकार इसे लेकर बिल लाती है तो महाराष्ट्र की सभी पार्टियां इसका समर्थन करेंगी. शरद पवार ने ये भी कहा कि मोदी सरकार अगर मराठा आरक्षण का प्रावधान करती है तो हम इसका भी समर्थन करेंगे. उन्होंने शिंदे सरकार से इस मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग करते हुए यह सलाह भी दे डाली कि मनोज जरांगे और छगन भुजबल जैसे मराठा और ओबीसी नेताओं को साथ बैठाकर भी सरकार को हल तलाशना चाहिए. पवार ने ये भी जोड़ा कि जब आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से अधिक हो जाती है तो सुप्रीम कोर्ट की 50 फीसदी वाली लिमिट लागू हो जाती है. इस मामले में केंद्र सरकार ही कुछ कर सकती है.
बयान में क्या है पवार का दांव
शरद पवार ने इस बयान के जरिये गेंद केंद्र यानि अप्रत्यक्ष रूप से बीजेपी के पाले में डाल दी है. सियासत के जानकार इसे पवार का 'सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे' वाला दांव बता रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि मराठा आरक्षण के मुद्दे पर हर दल के लिए दोनों तरफ खाई जैसी स्थिति है. हर दल चाह रहा है कि ओबीसी या मराठा, किसी को भी नाराज किए बगैर बीच के रास्ते निकल जाएं. मनोज जरांगे की मांगें पूरी करने पर ओबीसी की नाराजगी का खतरा और ना पूरा करो तो मराठा के छिटकने का डर. पवार ने अप्रत्यक्ष रूप से ओबीसी कोटे से अलग मराठा आरक्षण की मांग कर दी है. सुप्रीम कोर्ट की लिमिट का जिक्र कर मनोज जरांगे की चिंता का भी ध्यान रखा है. मनोज जरांगे अलग आरक्षण का विरोध कर ओबीसी कोटे के भीतर ही कोटा मांग रहे हैं तो उसके पीछे यही लिमिट वाली चिंता ही है.
अलग आरक्षण पर क्या है जरांगे की चिंता
महाराष्ट्र की शिंदे सरकार ने इसी साल विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान मराठा समाज के लिए 10 फीसदी आरक्षण के प्रावधान वाला विधेयक विधानसभा से पारित कराया था. मनोज जरांगे ने इस पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा था कि सरकार ने वह दे दिया जो मांग ही नहीं रहे थे. हम ओबीसी के अंदर ही आरक्षण मांग रहे हैं लेकिन उन्होंने हमें अलग से कोटा दे दिया. आरक्षण 10 फीसदी है या 20 फीसदी, इससे फर्क नहीं पड़ता. यह ओबीसी के अंदर ही मिलना चाहिए. उन्होंने कानूनी पहलुओं का जिक्र करते हुए कहा था कि अलग से कोटा देने के प्रावधान से आरक्षण सीमा 50 फीसदी से ज्यादा हो गई है जिसे कानूनी चुनौती मिल सकती है.
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शरद पवार ने अपने इस बयान में मनोज जरांगे की इसी चिंता का ध्यान रखते हुए 50 फीसदी की लिमिट ही समाप्त करने की मांग कर दी है. ओबीसी और मराठा, दोनों ही वर्ग पिछले कुछ चुनावों से बीजेपी गठबंधन के पक्ष में अधिक वोट करते आए हैं. ऐसे में पवार का ये दांव किसी को भी नाराज किए बगैर मराठा समुदाय की बीजेपी से नाराजगी को वोटों में कैश कराने की रणनीति से जोड़कर भी देखा जा रहा है. दरअसल, मनोज जरांगे ने हाल ही में शिंदे सरकार में डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस पर हमला बोलते हुए कहा है कि वे मराठा समुदाय में दरार डालने का सपना देख रहे हैं जो कभी पूरा नहीं होगा.
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मराठा समाज की ताकत और वोटिंग पैटर्न
महाराष्ट्र की कुल आबादी में मराठा समाज की भागीदारी करीब-करीब 28 फीसदी बताई जाती है. महाराष्ट्र विधानसभा की कुल 288 में से करीब 90 सीटों पर मराठा वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं. मराठा समाज की सियासी ताकत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि अब तक सूबे के 20 में से 12 मुख्यमंत्री मराठा समुदाय से ही रहे हैं. वोटिंग पैटर्न की बात करें तो मराठा समाज कभी कांग्रेस का कोर वोटर हुआ करता था. बाद में समाज का एक बड़ा धड़ा एनसीपी के साथ चला गया. शिवसेना ने भी मराठा समाज के बीच आधार मजबूत किया और इसका लाभ पिछले विधानसभा चुनाव तक बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए को वोट के रूप में मिला भी.
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सीएसडीएस के मुताबिक हाल के लोकसभा चुनाव में मराठा समाज ने 39 फीसदी इंडिया ब्लॉक को वोट किया था और बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए को 46 फीसदी मराठा वोट मिले. 2019 के आम चुनाव की बात करें तो एक्सिस माई इंडिया के मुताबिक इंडिया ब्लॉक को 31 फीसदी मराठा वोट मिले थे जबकि 59 फीसदी मराठा वोटर एनडीए के साथ गए थे. वोटिंग पैटर्न से संबंधित ये आंकड़े बताते हैं कि इस बार जहां मराठा वोटर्स के बीच इंडिया ब्लॉक का समर्थन बढ़ा है वहीं एनडीए की पैठ थोड़ी कमजोर हुई है.