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'तीर-कमान के विवाद में नहीं पड़ूंगा', शिवसेना की जंग पर बोले NCP चीफ शरद पवार

शिवसेना का नाम और चुनाव चिन्ह शिंदे गुट के पास आने के मामले में शरद पवार ने कुछ भी कहने से मना कर दिया है. उन्होंने कहा है कि वे इस विवाद में नहीं पड़ने वाले हैं. उन्होंने कहा था कि धनुष और तीर के चुनाव चिन्ह खोने से उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

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शरद पवार (File Photo)
शरद पवार (File Photo)

शिवसेना का चुनाव चिन्ह तीर-कमान और पार्टी का नाम उद्धव गुट से छिन चुका है. शिंदे गुट इस पर कब्जा जमाने में कामयाब हो गया है. एक तरफ शिंदे गुट इसे लोकतंत्र की जीत बता रहा है तो वहीं उद्धव गुट ने इसे पहले से सुनियोजित फैसला करार दिया है. इस मसले पर NCP चीफ शरद पवार ने कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया है.

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रविवार को एनसीपी प्रमुख ने कहा कि वे शिंदे गुट को तीर-कमान का चुनाव चिन्ह मिलने के मुद्दे पर राज्य में चल रहे विवाद में नहीं पड़ेंगे. शरद पवार ने कहा,'मैंने इस पर अपनी भूमिका स्पष्ट कर दी है.' केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की यात्रा के बारे में बात करते हुए पवार ने कहा, 'वह सहकार परिषद के समारोह के लिए पुणे आए थे. मैंने सहकार परिषद का उद्घाटन किया. इसलिए हमारे बीच कोई विवाद नहीं है. नीतिगत मुद्दों पर हमारी विस्तार से चर्चा हुई है. उनके भाषण के बिंदु आज उपयुक्त लग रहे थे.'

इससे पहले शरद पवार ने कहा था कि धनुष और तीर के चुनाव चिन्ह खोने से उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि लोग उसके नए चुनाव चिन्ह को स्वीकार करेंगे. शरद पवार ने एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गुट को वास्तविक शिवसेना के रूप में मान्यता देने और उसे मूल 'धनुष और तीर' चिन्ह देने के चुनाव आयोग के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस का एक उदाहरण दिया था.

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शरद पवार ने यह भी याद दिलाया था कि इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस को 1978 में एक नया चुनाव चिन्ह चुनना था, लेकिन इसका पार्टी को कोई नुकसान नहीं पहुंचा था. NCP प्रमुख ने ठाकरे गुट को सलाह दी थी, 'एक बार फैसला हो जाने के बाद कोई चर्चा नहीं हो सकती है. इसे स्वीकार करें, एक नया चुनाव चिह्न लें. इसका (पुराने चुनाव चिह्न के नुकसान) कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है.' उन्होंने याद दिलाया था कि आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी को भी ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़ा था.

अपने 78 पेज के फैसले में निर्वाचन आयोग ने कहा था कि विधान मंडल के सदन से लेकर संगठन तक में बहुमत शिंदे गुट के ही पास है. आयोग के सामने दोनों पक्षों ने अपने-अपने दावे और उनकी पुष्टि के लिए दस्तावेज प्रस्तुत किए. एकनाथ शिंदे गुट के पास एकीकृत शिवसेना के टिकट पर जीत कर आए कुल 55 विजयी विधायकों में से 40 आमदार यानी विधायक हैं.

पार्टी में कुल 47,82,440 वोटों में से 76 फीसदी यानी 36,57,327 वोटों के दस्तावेज शिंदे गुट ने अपने पक्ष में पेश कर दिए. उद्धव ठाकरे गुट शिवसेना पर पारिवारिक विरासत के साथ ही राजनीतिक विरासत का दावा करते हुए 15 विधायकों और कुल 47,82,440 वोट में से सिर्फ 11,25,113 वोटों का ही दस्तावेजी सबूत पेश कर पाया. यानी कुल 23.5 फीसदी वोट ही ठाकरे गुट के पास थे. शिवसेना के कुल 55 आमदार यानी विधायकों में सिर्फ 15 का समर्थन ठाकरे गुट के पास था.

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