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शिवसेना का सामना में सवाल- किसानों के हाथ में हल, ट्रैक्टर, डंडे नहीं होंगे तो और क्या होगा?

गणतंत्र दिवस के मौके पर दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान हुए घटनाक्रम को शिवसेना ने ‘देशहित’ के खिलाफ बताया है. हालांकि उसने केंद्र की भाजपा सरकार पर निशाना साधते हुए किसानों के आंदोलन को बदनाम करने की साजिश रचने का भी आरोप लगाया है. शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में ऐसे कई सवाल उठाए हैं.

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शिवसेना का सवाल किसानों के हाथ में हल, ट्रैक्टर, डंडे नहीं होंगे तो क्या होगा (फाइल फोटो)
शिवसेना का सवाल किसानों के हाथ में हल, ट्रैक्टर, डंडे नहीं होंगे तो क्या होगा (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • किसानों की परेड से हिल गया देश
  • सरकार की पंजाब को अशांत करने की कोशिश
  • दीप सिद्धू का भाजपा से संबंध

शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में गणतंत्र दिवस के मौके पर राजधानी दिल्ली की घटना को देशहित के खिलाफ बताया. लेकिन साथ ही लाल किले पर हुई हिंसा में दीप सिद्धू का नाम आने और उसके भाजपा के साथ संबंध पर सवाल भी खड़े किए हैं.

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किसानों की परेड से हिल गया देश

26 जनवरी को दिल्ली के राजपथ पर सुबह गणतंत्र दिवस की `परेड’ हुई और दोपहर को किसानों की `परेड’ से पूरा देश हिल गया. कानून-व्यवस्था की धज्जियां उड़ गईं. गणतंत्र दिवस पर ऐसी घटना होने की पीड़ा सभी को है.

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दीप सिद्धू का भाजपा से संबंध

शिवसेना ने सवाल उठाया कि लाल किले में घुसकर जिस भीड़ ने हड़कंप मचाया, उस भीड़ का नेतृत्व कोई दीप सिद्धू नामक युवक कर रहा था. ऐसा सामने आया है कि यह सिद्धू प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह के खेमे का है. भाजपा के पंजाब के सांसद सनी देओल के इस सिद्धू से करीबी संबंध हैं. किसान नेताओं का कहना है कि ये महाशय पिछले दो महीनों से किसानों की भीड़ में घुसकर बगावत और अलगाववाद की बात कर रहे थे.

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60 दिन से शांतिपूर्ण है आंदोलन

सामना में कहा गया है कि पिछले 60 दिनों से किसानों का आंदोलन शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा है. तीन नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग लेकर किसान दिल्ली की सीमा पर जमे हुए हैं. इसके बावजूद किसान आंदोलन में किसी भी प्रकार की फूट नहीं पड़ी और किसानों का धैर्य भी नहीं टूटा. किसानों के आंदोलन खालिस्तानी भी कहा गया, लेकिन वे फिर भी किसान शांत रहे.

सरकार की आंदोलन भड़काने की मंशा

शिवसेना ने कहा कि सरकार की इच्छा थी कि किसानों को भड़काकर हिंसाचार करवाकर इस आंदोलन को बदनाम किया जाए. किसानों ने कानून अपने हाथ में ले लिया, ऐसा कहना आसान है. लेकिन कृषि कानून को रद्द करो, ऐसा आक्रोश 60 दिनों से चल रहा है. उस कानून को लेकर इतना लचर रवैया क्यों? किसान खुद की रोटी-सब्जी बनाकर दिल्ली की सीमा पर खा रहा है. पंजाब के किसानों का यही स्वाभिमानी तेवर सरकार को बेचैन कर रहा है.

पंजाब का अशांत होना देशहित में नहीं

पंजाब के किसान खालिस्तानी आतंकवादी और देशद्रोही हैं, ऐसे आरोप लगाकर सरकार पंजाब को फिर एक बार अशांत कर रही है. लेकिन पंजाब फिर से अशांत हुआ तो यह देश के लिए अच्छा नहीं होगा. राजेश टिकैत को किसानों से हाथ में लाठी लेने का आह्वान करते ही देशद्रोही ठहरा दिया गया। लेकिन `गोली मारो’ और `खत्म करो’ जैसे भड़काऊ भाषण देने वाले संत आज मोदी मंत्रिमंडल में हैं. पश्चिम बंगाल में भाजपा नेताओं की भाषा रक्त-पात और हिंसाचार वाली है. लेकिन टिकैत के हाथ में डंडा लेकर मोर्चे में शामिल होने की बात कहते ही सरकार बिफर पड़ी. किसानों के हाथ में हल, ट्रैक्टर और डंडे आदि नहीं होंगे तो और क्या होगा? 

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