महाराष्ट्र में सियासी घमासान मचा हुआ है. शिवसेना से बगावत कर महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी सरकार को संकट में डालने वाले 40 से ज्यादा विधायक गुवाहाटी पहुंच गए हैं. इनकी अगुवाई मंत्री एकनाथ शिंदे कर रहे हैं. हालांकि उद्धव सरकार के नेताओं की ओर से शिंदे को मनाने की कोशिशें जारी हैं, लेकिन पिक्चर अभी साफ नहीं हो पाई है कि शिवसेना का क्या होगा? उद्धव की कुर्सी कब तक बचेगी?
इन तमाम अटकलों और सियासी ड्रामे के बीच शिवसेना के मुख्यपत्र ''सामना'' ने अपने संपादकीय के जरिए बीजेपी को घेरा है. इस पूरे घटनाक्रम को लेकर कहा गया है कि गुजरात में ये मंडली जरूर डांडिया खेले, लेकिन महाराष्ट्र में तलवार से तलवार भिड़ेगी ये निश्चित है...
महाराष्ट्र की सरकार को गिराने के लिए एक भी मौका भाजपा वाले छोड़ते नहीं हैं. ढाई वर्ष पहले अजीत पवार प्रकरण सुबह हुआ था. उसमें सफलता नहीं मिली. अब वही बेचैन आत्माएं एकनाथ शिंदे की गर्दन पर बैठकर ‘ऑपरेशन कमल’ कर रही हैं. कुछ भी करके राज्य की सरकार गिराना है, इस ईर्ष्या से वो लोग ग्रसित हैं. राज्यसभा चुनाव में छठीं जगह भाजपा किसके छिपे कारनामों की वजह से जीती, इसका खुलासा हो रहा है. विधान परिषद में भाजपा को 10वीं सीट जीतने में जिसने मदद की उसने ही राज्यसभा में भाजपा के धनवान उम्मीदवार को विजयी बनाया और शिवसैनिक संजय पवार की हार में भूमिका निभाई. सोमवार को विधान परिषद की 10वीं सीट जीतते ही शिवसेना के दस एक विधायकों को ‘उठाकर’ गुजरात ले जाया गया. उनके अगल-बगल कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई थी. इसमें से दो-चार विधायकों ने वहां से निकलने और भाग जाने का कोशिश की तब उनके साथ मारपीट की गई. अकोला के विधायक नितीन देशमुख को इतना मारा गया कि उनको हार्टअटैक आ गया और उनको अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा.
क्या लोकशाही की इज्जत रहेगी?
विधायक कैलाश पाटील घेराबंदी तोड़कर वहां से निकल लिए और भारी बारिश के बीच चलते हुए किसी तरह सड़क पर पहुंचकर मुंबई आए. इस तरह चार-पांच विधायकों ने वहां से भागने का प्रयत्न किया तब गुजरात पुलिस ने उन्हें पकड़कर ‘ऑपरेशन कमल’ वालों के हवाले कर दिया. ये कैसा तरीका है? ऐसे में क्या लोकशाही की इज्जत रहेगी?
विधान परिषद की 10वीं सीट पर विजय भाजपा ने हासिल की तो शिवसेना के तथाकथित निष्ठावान वगैरह कहलाने वाले लोगों से बेईमानी कराकर. इस चुनाव में कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार चंद्रकांत हंडोरे को हराकर भाजपा ने ये जीत हासिल की. हंडोरे मुंबई के दलित समाज के नेता हैं. ऐसे चेहेर को हराकर भाजपा ने बेईमानों के मतों पर विजयोत्सव मनाया. उन्हीं बेईमानों को तुरंत गुजरात की भूमि पर ले जाकर जोरदार तैयारी शुरू हो गई. शिवसेना के दो उम्मीदवार सचिन अहिर और आमशा पाडवी विजयी हुए, लेकिन उनके अधिकृत मतों में भी कमी दिखाई दे रही है. राष्ट्रवादी के दो उम्मीदवार जीते लेकिन मतों की जोड़-तोड़ करके भाजपा ने जो 5वीं जगह जीती वो कपट नीति है और यही भाजपा का असली चेहरा है.
महाराष्ट्र में सत्ता की मस्ती नहीं चलेगी
शिवसेना के वर्धापन दिवस पर उद्धव ठाकरे ने एक जोरदार वक्तव्य दिया. महाराष्ट्र में सत्ता की मस्ती नहीं चलेगी. केंद्रीय सत्ता की मस्ती दिखाकर महाराष्ट्र में तोड़-फोड़ की राजनीति शुरू है. मां का दूध बेचने वाली औलाद शिवसेना में नहीं, ऐसा शिवसेना प्रमुख हमेशा कहते थे. ऐसे लोग शिवसेना में पैदा हों, ये महाराष्ट्र की मिट्टी से बेईमानी है. शिवसेना ये मां है, उसकी कसमें खाकर राजनीति करने वालों ने मां के दूध का बाजार शुरू कर दिया. उस बाजार के लिए सूरत का चुनाव किया गया. क्या इसे एक संयोग ही समझा जाए?
छत्रपति शिवाजी महाराज ने सूरत लूटा था और उसी सूरत में आज महाराष्ट्र की अस्मिता पर घाव करने का प्रयास शुरू है. भारतीय जनता पार्टी की आंख में महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार चुभ रही है. उससे भी ज्यादा शिवसेना चुभ रही है. इसलिए पहले शिवसेना पर वार करो और फिर महाराष्ट्र पर घाव करो. ऐसा राजनीति में स्पष्ट दिखाई दे रहा है. मध्य प्रदेश और राजस्थान में जिस तरह से तोड़-फोड़ की राजनीति करके सरकार गिराई गई, वही ‘पैटर्न’ महाराष्ट्र में प्रयोग करना और खुद को ‘किंगमेकर’ कहकर अपनी आरती उतारने का तीन अंकी नाटक शुरू है. ‘विधान परिषद चुनाव के निमित्त हुए मतदान और मतों की तोड़-फोड़ यह तो शुरुआत है. अब हम मुंबई जीतेंगे. मुंबई पर कब्जा करेंगे’, ऐसी भाषा मंगलप्रभात लोढ़ा ने बोली. इसमें ही सब कुछ आ गया.
शिवराय उनको माफ नहीं करेंगे...
मुंबई पर कब्जा करना है तो शिवसेना को अस्थिर करो यही महाराष्ट्र द्रोहियों की नीति है. खुद को मावला कहलाने वाले उन महाराष्ट्र द्रोहियों के छल-कपट में भागीदार होने वाले होंगे तो शिवराय उनको माफ नहीं करेंगे. महाराष्ट्र सयानों का राज्य है. सयानेपन में महाराष्ट्र अन्य राज्यों से दो कदम आगे होगा. दूसरे राज्यों में डेढ़ सयाने होंगे तो महाराष्ट्र में तीन सयाने रहते हैं. दूसरा ऐसा कि महाराष्ट्र में जोर और जोश के साथ दौड़ने वाले ‘सात’ वीरों का इतिहास है, लेकिन वो सात वीर जोश और जोर से दौड़े तो स्वराज्य के लिए, खुद के राजनीतिक स्वार्थ के लिए नहीं. इसलिए उन वीरों को आज भी मानवंदना दी जाती है. राजनीति गलत नहीं है, लेकिन सत्ता की अति महत्वाकांक्षा ये जालिम विष साबित होता है. शिवसेना ने ‘मां-बाप’ बनकर असंख्य गरीब लोगों को जो दिया वो दूसरे पक्षों में बड़े-बड़े रसूखदारों को नहीं मिला. शिवसेना के लिए जो भी मावला सीना तानकर खड़ा रहा, उसी के त्याग के कारण भगवा झंडा शान से लहराता रहा. इसलिए विधान परिषद के चुनाव में जिसने मिट्टी खाई उसको महाराष्ट्र की माटी व शिवसैनिक माफ नहीं करेंगे.
महाराष्ट्र में तलवार से तलवार भिड़ेगी ये निश्चित है...
सामना में लिखा गया कि भारतीय जनता पार्टी ने सत्ता की राजनीति के लिए शर्मो-हया छोड़ दी है. एकाध राज्य में सत्ता नहीं मिली तो वो राज्य अस्थिर करना यही उनकी नीति है. लोगों को तोड़ना और उनमें फितूर का बीज बोना, इस फितूर की फसल को पत्थर पर भी उगाने में ये लोग माहिर हैं. लेकिन देश के बेरोजगार ‘अग्निवीर’ सड़क पर उतरे हैं, कश्मीर में हिंदुओं की हत्या हो रही है. लद्दाख में चीनी सेना घुस आई है. उनको बाहर निकालने के लिए किसी तरह की योजना और धमक इनमें नहीं दिखाई देती. फितूर निर्माण करना और उसके जोर पर राज्य लाना यही उनकी ‘किंगमेकर्स’ कंपनी. ब्रिटिशों की ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी उस समय यही किया था. ये ईस्ट इंडिया कंपनी अंत में बोरिया-बिस्तर बांध के चली गई. विधान परिषद परिणाम में उसी ईस्ट इंडिया कंपनी की आत्मा महाराष्ट्र में फड़फड़ाती हुई दिखाई दी. अच्छा हुआ, इस कारण महाराष्ट्र जाग उठा.
महाराष्ट्र जागता है तो जल उठता है, यह इतिहास ईस्ट इंडिया कंपनी के फितूर मंडल को ध्यान में रखना चाहिए. महाराष्ट्र की सरकार का क्या और वैसे होगा, यह सवाल नहीं है. महाराष्ट्र पर वार करने वाले, महाराष्ट्र से बेईमानी करने वालों का क्या होगा? फितूर का बीज बोने वालों का क्या होगा? धर्म के मुखौटे के नीचे अधर्म का साथ देने वालों को जनता माफ करेगी क्या? ये ज्वलंत सवाल हैं. संकट और तूफानों से सामना करने की शिवसेना की आदत है. गुजरात की भूमि पर फड़फड़ाने वाले ये इतिहास एक बार फिर समझ लो! गुजरात में ये मंडली जरूर डांडिया खेले लेकिन महाराष्ट्र में तलवार से तलवार भिड़ेगी ये निश्चित है...