शिवसेना के मुखपत्र सामना की संपादकीय में बुधवार को मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस के विदर्भ के मुद्दे पर दिए गए बयान को लेकर टीका टिप्पणी की गई है. सामना में कहा गया है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद नागपुर में उनका भव्य स्वागत हुआ लेकिन इसको उन्होंने अपने विवादास्पद बयान से खराब करके रख दिया.
विदर्भ मुद्दे को टाल सकते थे CM फड़नवीस
मुख्यमंत्री ने छाती चौड़ीकर कहा कि विदर्भ को उचित समय पर अलग किया जाएगा. क्या मुख्यमंत्री को ये शोभा देता है कि वो इस तरह के बयान दें. वो इस मुद्दे को टाल भी सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, अगर वो कहते कि विदर्भ के विकास के लिए किसी भी तरह की कमी नहीं रखी जाएगी तो शायद अच्छा होता लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं करके महाराष्ट्र के केसरयुक्त दूध में नमक डालने का काम किया.
सामना के संपादकीय में लिखा गया, मुगलों ने जब चारों तरफ आतंक मचा रखा था और पूरे राष्ट्र के कई शक्तिशाली लोगों ने अपने हथियार डाल दिए थे तब महाराष्ट्र में भवानी की तलवार उठी थी इसलिए राष्ट्र और महाराष्ट्र की तुलना के वक्त महाराष्ट्र की अपनी एक स्वतंत्र भूमिका हो सकती है.
सामना में फड़नवीस पर टीका करते हुए कहा गया है कि भाजपा को इस बार विदर्भ से भारी जनमत मिला है. उन्हें सबसे ज्यादा सीटें मिली हैं, लेकिन विदर्भ के इस जनादेश को गलत न समझा जाए, ये न सोचा जाए कि ये जनादेश विदर्भ को महाराष्ट्र से तोड़ने के लिए है. विदर्भ को महाराष्ट्र से अलग करना यानि बेटे को उसकी मां से तोड़ना है.
महाराष्ट्र का रखवाला ही घोटाले को तत्पर
सामना में कहा गया कि महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री को भी महाराष्ट्र को तोड़ने वाली इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए. उनके मुख से निकले ये शब्द ऐसा प्रतीत करवाते हैं, जैसे महाराष्ट्र का रखवाला ही घोटाले करने को तत्पर है. विदर्भ पिछड़ा है उसका पिछड़ापन दूर करना मुख्यमंत्री का कर्तव्य है. महाराष्ट्र की भागदौड़ विदर्भ के ही एक लाल के हाथ में है ऐसे में विदर्भ का विकास करना ही मुख्यमंत्री का प्रथम कर्तव्य है और अगर वो ऐसा नहीं करते है तो ये वैसा ही होगा जैसे ऑपरेशन थिएटर में मरीज की सर्जरी करने गया डाक्टर सर्जरी के औजारों को एकतरफ रखकर बाहर आ गया.
सामना में कड़े शब्दो में कहा गया है कि सुधीर मुनगंटीवार अब नए वित्तमंत्री हैं और फड़नवीस मुख्यमंत्री. ऐसे में महाराष्ट्र का जमादखान उनके हाथ में जनता ने सौंपा है ताकि सार्थक काम किया जाए लेकिन आप कहीं गलत निर्णय लेकर शुरुआत ही अपशगुन से मत करना.
विधानमंडल के नागपुर अधिवेशन पर फड़नवीस का समर्थन
सामना के संपादकीय में फड़नवीस को कुछ हद तक सहूलियत देते हुए आगे कहा गया है कि हम देवेंद्र की इस बात से सहमत हैं जिसमें उन्होंने कहा कि विधानमंडल का नागपुर अधिवेशन पूरे छह हफ्ते चलना चाहिए जिसमें सभी लंबित मुद्दों पर चर्चा कर उस पर आखिरी निष्कर्ष निकले. पिछले कई सालों से विधानमंडल के शीतकालीन अधिवेशन को लेकर कोताही बरती जा रही थी. ऐसे में नागपुर महाराष्ट्र की उप राजधानी है और वहां होने वाला अधिवेशन कर्मकांड की तरह पूरा नहीं किया जाना चाहिए और इस अधिवेशन में महाराष्ट्र के साथ-साथ विदर्भ की भी समस्या और उनके समाधान को लेकर निष्कर्ष निकाला जाना चाहिए, जिस पर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों सहमत हों.
सामना में दी गई फड़नवीस को चेतावनी
सामना के आखरी कॉलम में फड़नवीस को चेतावनी भी दी गई है कि झारखंड, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ की कतार में विदर्भ भी होगा, ऐसा कोई न सोचे. मुख्यमंत्री का कहना है कि कांग्रेस ने आंध्र के विभाजन में जो चूक की वो चूक विदर्भ के विभाजन में नहीं होगी, लेकिन महाराष्ट्र की निगाह में महाराष्ट्र की तुलना अखंड आंध्रप्रदेश से करना और विभाजन की बात करना किसी बड़े अपराध से कम नहीं और कोई ये न सोचे कि इसे बाकी राज्यों में जैसे सर्वसम्मति से बचा लिया गया, वैसे महाराष्ट्र में भी कर लिया जाएगा.