शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के संपादकीय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मंगोलिया को एक अरब डॉलर की आर्थिक मदद देने पर सवाल उठाया है. शिवसेना ने कहा है कि महाराष्ट्र अपने किसानों के लिए आर्थिक मदद चाहता है, जो बेमौसम बारिश और ओले की मार से फसल खराब होने के बाद आत्महत्या कर रहे हैं.
संपादकीय में कहा गया है कि मंगोलिया को एक अरब डॉलर की मदद कोई छोटा आंकड़ा नहीं है. इस आंकड़े का रूपांतरण अगर रुपये में किया जाए तो उस आंकड़े को देखकर महाराष्ट्र में आत्महत्या कर चुके हजारों की किसानों की आत्मा भी भ्रमित हो उठेगी. इससे स्पष्ट है कि महाराष्ट्र की तुलना में मंगोलिया की जनता भाग्यवान है.
एनडीए सरकार की सहयोगी पार्टी शिवसेना ने सवाल किया है कि मंगोलिया को एक अरब डॉलर की खुराक किसलिए? ऐसी साहूकारी दिखाने की जरूरत क्या है? केंद्र सरकार से ऐसा तीखा सवाल पूछा जा सकता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कटाक्ष करते हुए संपादकीय में कहा गया है, 'घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने वाली भूमिका कई बार देशों को निभानी पड़ती है. दुनिया जिस प्रकार लेन-देन की होती है. उसी प्रकार विदेश नीति भी लेन-देन की होती है. पड़ोसी राष्ट्र को बीच-बीच में 'पॉकेटमनी' देनी पड़ती है.'
लेख के मुताबिक पर यदि उदारता या सहृदयता हमारे प्रधानमंत्री ने महाराष्ट्र के किसानों के मामले में या जैतापुर न्यूक्लियर प्रोजेक्ट से पिस रही कोंकण की जनता के मामले में दिखाई होती, तो अच्छा होता. केंद्र और महाराष्ट्र के किसी कृषि मंत्री किसानों की आत्महत्या का समाधान ढूंढ़े.. यही हाथ जोड़कर प्रार्थना है.