Maharashtra Political Crisis: महाराष्ट्र का सियासी संकट अब उलझता जा रहा है. शिवसेना से बगावत के बाद एकनाथ शिंदे अपने समर्थक विधायकों के साथ हफ्तेभर से असम के गुवाहाटी में एक होटल में ठहरे हुए हैं. उनकी मुंबई वापसी का रास्ता अब तक नजर नहीं आ रहा है. इस बीच शिवसेना ने भी 16 विधायकों को अयोग्य करार देने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. भले ही शिंदे गुट शिवसेना के इस कदम को तकनीकी रूप से गलत बता रही हो, लेकिन बागी विधायकों के लिए आगे का रास्ता उतना आसान नहीं रह गया है, जितना नजर आ रहा था.
शिंदे गुट में अभी शिवसेना के 39 विधायक होने का दावा किया जा रहा है. इनके अलावा 2 विधायक प्रहार जनशक्ति पार्टी और 7 निर्दलीय विधायक भी हैं. कुल मिलाकर 48 विधायक होते हैं. महाराष्ट्र में ये सियासी संकट तब शुरू हुआ था, जब 21 जून की रात एकनाथ शिंदे कुछ विधायकों के साथ सूरत पहुंच गए थे. उसके बाद यहां से सारे बागी विधायक गुवाहाटी के रेडिसन ब्लू होटल में ठहरे हुए हैं.
इसी बीच मीटिंग में मौजूद नहीं रहने पर शिवसेना ने 16 बागी विधायकों की सदस्यता रद्द करने की मांग डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल से की है. इसे लेकर अब शिंदे गुट सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है.
शिंदे गुट का कहना है कि डिप्टी स्पीकर की ओर से अयोग्यता का नोटिस जारी करना 'गैर-कानूनी और असंवैधानिक' है. दरअसल, महाराष्ट्र विधानसभा सचिवालय ने शनिवार को शिंदे समेत 16 विधायकों को नोटिस जारी किया है, जिसमें उनसे अयोग्यता को लेकर 27 जून की शाम तक जवाब मांगा है.
इसी के साथ अब ये सियासी संकट अब संवैधानिक संकट में भी बदलता जा रहा है. शिंदे गुट के 16 विधायक भले ही अयोग्यता की कार्रवाई को गलत ठहराएं, लेकिन अब उनके सामने मुश्किल खड़ी होती नजर आ रही है. शिंदे गुट के पास अब सबसे आसान रास्ता है कि वो खुद किसी दूसरी पार्टी से मिल जाए.
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शिंदे के पास विलय का ही है रास्ता?
- महाराष्ट्र विधानसभा में शिवसेना के 55 विधायक हैं. शिंदे गुट के पास शिवसेना के 39 विधायक हैं. ऐसे में शिंदे के पास दो-तिहाई विधायक हो गए हैं. तर्क दिया जा रहा था कि चूंकि उनके पास दो-तिहाई विधायक हैं, इसलिए उनके खिलाफ दल-बदल कानून के तहत कोई कार्रवाई नहीं हो सकती.
- हालांकि, शिवसेना के वकील देवदत्त कामत ने न्यूज एजेंसी को बताया कि 16 बागी विधायकों को संविधान की 10वीं अनुसूची के पैरा 2.1.A के तहत नोटिस जारी किया गया है. उन्होंने बताया कि अगर कोई राजनीतिक मूल पार्टी से मिलकर बनती है, तो बहुमत होने का कोई मतलब नहीं होता.
- कामत ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में कहा है कि सदन के बाहर विधायकों के खिलाफ कार्रवाई पार्टी विरोधी गतिविधियों के तहत आती है और ऐसा करने पर अयोग्य करार दिया जा सकता है. उन्होंने बताया कि बागी विधायकों पर अयोग्यता की कार्रवाई तब तक हो सकती है, जब तक वो किसी दूसरी पार्टी से विलय नहीं कर लेते.
फिर किस पार्टी से विलय कर सकते हैं शिंदे?
- एकनाथ शिंदे के पास अपनी और बागी विधायकों की सदस्यता बचाने का अभी एकमात्र रास्ता विलय ही दिख रहा है. हालांकि, बागी विधायक दीपक केसरकर ने शनिवार को कहा कि उनके पास दो तिहाई विधायक हैं और वो सदन में अपना बहुमत साबित करेंगे. उन्होंने किसी भी पार्टी में विलय की बात नकार दी है.
- अगर मान लिया जाए कि विलय ही एकमात्र रास्ता है तो शिंदे गुट के पास तीन ऑप्शन हैं. पहला तो ये कि वो बीजेपी में शामिल हो जाएं, दूसरा ये कि प्रहार जनशक्ति पार्टी में चले जाएं या फिर राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना में मिल जाएं.
सीएम उद्धव ठाकरे के पुत्र और महाराष्ट्र सरकार में मंत्री आदित्य ठाकरे ने भी खुले मंच से कह दिया है कि बागी विधायकों के पास अब बस दो विकल्प हैं. पहला- ये कि वो बीजेपी ज्वाइन कर लें या फिर प्रहार पार्टी में चले जाएं.
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लेकिन विलय ही क्यों?
- विधायकों और सांसदों के पाला बदलने पर लगाम लगाने के लिए 1985 में राजीव गांधी की सरकार दल-बदल कानून लेकर आई. इसके लिए संविधान में 10वीं अनुसूची जोड़ी गई. इसमें बताया गया कि दल-बदल कानून के तहत किसकी सदस्यता जा सकती है.
- इसके मुताबिक, अगर कोई सांसद या विधायक खुद ही पार्टी से अपनी सदस्यता छोड़ देता है या वो पार्टी लाइन के खिलाफ जाता है या पार्टी व्हिप के बावजूद वोट नहीं करता है या फिर पार्टी के निर्देशों का उल्लंघन करता है, तो उसकी सदस्यता जा सकती है.
- 2003 में इस कानून में संशोधन किया गया. इसमें प्रावधान किया गया कि अगर दो तिहाई सदस्य मूल पार्टी से अलग होकर दूसरी पार्टी में मिल जाते हैं, तो उनकी सदस्यता नहीं जाएगी. ऐसी स्थिति में न तो दूसरी पार्टी में विलय करने वाले सदस्य और मूल पार्टी में रहने वाले सदस्य अयोग्य ठहराए जा सकते हैं.