महाराष्ट्र में सरकार के गठन को लेकर अनिश्चितता बरकरार है और कयासों का दौर लगातार जारी है, इस बीच शिवसेना के मुखपत्र सामना पर सभी की नजर रहती है, लेकिन आज बुधवार को अपने संपादकीय में राजनीति की जगह किसानों के मुद्दे को उठाते हुए केंद्र पर निशाना साधते हुए कहा कि किसानों की हाय मत लो और जल्द से जल्द उन्हें सहायता देकर उनकी जान बचाओ.
सामना के संपादकीय में कहा गया कि पहले अकाल, फिर अतिवृष्टि के संकट ने महाराष्ट्र के किसानों का जीना मुहाल कर दिया. विशेषकर मराठवाड़ा से किसानों की आत्महत्यावाली खबरें मन को खिन्न करने वाली हैं. मराठवाड़ा के हर जिले में आत्महत्या का दौर शुरू हो गया है.
मराठवाड़ा में 68 किसानों ने की खुदकुशी
संपादकीय में आगे लिखा गया कि 14 अक्टूबर से 11 नवंबर के बीच मराठवाड़ा के 68 किसानों ने अपनी इहलीला समाप्त कर ली. बीड जिले में महीनेभर में 16 किसानों ने आत्महत्या की है, नांदेड जिले में 12, परभणी जिले में 11. संभाजीनगर जिले में 9, लातूर जिले में 7, जालौन जिले में 6, हिंगोली जिले में 4 और धाराशिव जिले में 3 किसानों ने आत्महत्या की है.
किसानों की खुदकुशी को लेकर लिखे गए संपादकीय में कहा गया कि विदर्भ की भी स्थिति इससे अलग नहीं है. बेमौसम बरसात के चलते पहले 20 दिनों में विदर्भ के 29 किसानों ने आत्महत्या की. बुलढाणा और यवतमाल जिले में यह संख्या अधिक है. जनवरी के शुरू में आंकड़ों को देखें तो गत 11 महीनों में मराठवाड़ा में 746 और 877 यानी कुल 1,623 किसानों की आत्महत्या की खबर है.
केंद्र की ओर देख रहा किसान
सामना ने आगे लिखा कि कभी अकाल, कभी ओलावृष्टि और कभी अतिवृष्टि जैसे प्राकृतिक संकट किसानों पर आते रहते हैं. परिस्थिति का सामना न करते हुए किसान मौत को गले क्यों लगाते हैं, किसानों की वित्तीय स्थिति और परिस्थितियों को ठीक से समझ लेना चाहिए. उन्हें कई तरह से वित्तीय संकट का सामना करना पड़ता है.
गत एक महीने में ही मराठवाड़ा के 68 किसानों ने आत्महत्या की है. विदर्भ के किसानों की आत्महत्या वाले आंकड़े भी चिंताजनक हैं. निराश किसान केंद्र सरकार की ओर बड़ी आशा के साथ देख रहा है. हमारा सरकार से इतना ही कहना है कि आत्महत्या कर रहे किसानों की हाय मत लो और जल्द-जल्द उन्हें सहायता देकर उनकी जान बचाओ.