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क्या ममता जैसी हिम्मत दिखा पाएंगे उद्धव, ठीक 5 साल पहले का दोहराना होगा इतिहास

राज्यसभा सांसद संजय राउत ने यहां तक कहा कि केंद्र सरकार में हम बने रहेंगे या नहीं, इसका फैसला जल्द ही पार्टी बैठक में लिया जाएगा.

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शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और ममता बनर्जी
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और ममता बनर्जी

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पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों को लेकर शिवसेना ने अपने तेवर कड़े कर लिए हैं. पार्टी मोदी सरकार पर हमला तो कई बार कर चुकी है लेकिन इस बार वो एनडीए से अलग होने तक की धमकी दे रही है. सवाल उठ रहे हैं कि क्या उद्धव ठाकरे यूपीए-2 में ममता बनर्जी वाला इतिहास दोहरा पाएंगे?

गौरतलब है कि गैस सिलेंडर की लिमिट और पेट्रोल-डीजल की कीमतों को लेकर ही ममता बनर्जी ने मनमोहन सरकार से समर्थन वापस लिया था. वैसे ये भी इत्तेफाक ही है कि ममता बनर्जी ने भी ठीक पांच साल पहले 18 सितंबर 2012 को ही मनमोहन सरकार से समर्थन वापस लिया था.

संजय राउत ने किया ऐलान

सोमवार को शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राउत ने महंगाई और किसानों के मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा और कहा, 'बेतहाशा बढ़ती महंगाई और किसानों के मुद्दे अब तक सुलझे नहीं हैं. हम इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं और यह दाग नहीं झेलना चाहते.'

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राज्यसभा सांसद संजय राउत ने यहां तक कहा कि केंद्र सरकार में हम बने रहेंगे या नहीं, इसका फैसला जल्द ही पार्टी बैठक में लिया जाएगा.

पहले भी दिखे शिवसेना के तल्ख तेवर

वैसे ये पहली बार नहीं है जब शिवसेना ने मोदी सरकार के खिलाफ तल्ख तेवर दिखाए हों. दोनों के बीच रिश्तों में खटास तभी देखी गई जब 18 सांसदों वाली शिवसेना को मोदी सरकार में महज एक बर्थ मिली . शिवसेना के जले पर नमक तब छिड़का जब पीएम मोदी ने शिवसेना नेता सुरेश प्रभु को बिना उद्धव की सहमति के न सिर्फ कैबिनेट में शामिल किया बल्कि उन्हें रेल मंत्रालय जैसा अहम विभाग भी थमा दिया.

मोदी की नीतियों का विरोध

मोदी की बुलेट ट्रेन हो या नोटबंदी, पाक नीति हो या किसानों की कर्जमाफी शिवसेना लगातार मोदी सरकार पर निशाना साधती रही है. दूसरी ओर बीजेपी ने भी शिवसेना के तीखे तेवरों को कभी भाव नहीं दिया. मोदी मंत्रिमंडल में तीन बार विस्तार कर चुके हैं लेकिन शिवसेना की अनदेखी ही हुई. पार्टी खुलकर इसे लेकर अपनी नाराजगी जता चुकी है लेकिन न तो पीएम मोदी और न ही बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह उसकी मांग के सामने झुकने को तैयार हैं.

गठबंधन में नहीं लड़ा BMC चुनाव

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शिवसेना और बीजेपी के बीच की तल्खी सबसे ज्यादा तब देखी गई जब दोनों पार्टियों ने अपने दशकों से चले आ रहे गठबंधन को तोड़ते हुए महाराष्ट्र में अलग-अलग विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया. यहां भी शिवसेना को मुंह की खानी पड़ी. नतीजे बीजेपी के पक्ष में गए और शिवसेना के पास फडणवीस सरकार का हिस्सा बनने के सिवा कोई चारा नहीं रहा. यहां तक कि इसी साल बीएमसी चुनाव भी दोनों पार्टियों ने अलग-अलग लड़ा.

शिवसेना ने बीजेपी के साथ गठबंधन को लेकर अंतिम फैसले की घोषणा भले ही कर दी हो लेकिन उसके लिए अलग होने का फैसला करना आसान नहीं होगा. पार्टी को एनडीए से अलग होने की कीमत केंद्र व राज्य की सत्ता से बाहर होकर चुकानी पड़ेगी. जबकि उसके अलग होने से केंद्र सरकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा और महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार के पास भी एनसीपी से मिलकर सरकार बचाने का विकल्प खुला रहेगा. ऐसे में क्या उद्धव ठाकरे इतना साहस दिखा पाएंगे, कि जनता के मुद्दों को लेकर एनडीए से अलग हो जाएं और बीजेपी के खिलाफ सड़कों पर उतरकर अपना जनाधार बढ़ाएं. सितंबर 2012 में ममता बनर्जी ने यही किया था.

गौरतलब है कि रिटेल में एफडीआई और डीजल के मूल्य में की गई वृद्धि से गुस्से में आईं तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने यूपीए-2 में मनमोहन सरकार से बाहर होने का फैसला लिया था. ममता बनर्जी ने इसके लिए 72 घंटे का अल्टीमेटम दिया और उसके बाद 18 सितंबर 2012 को अपना अल्टीमेटम खत्म होने पर केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लिया. ममता के भी 19 सांसद थे. ममता को अपने इन बागी तेवरों का फायदा भी मिला. 2014 के चुनाव में जहां कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया और पार्टी महज 44 सांसदों पर सिमट गई वहीं ममता बनर्जी की सीटें 19 से बढ़कर 34 हो गईं और अब टीएमसी लोकसभा में चौथी सबसे बड़ी पार्टी है. सवाल है कि क्या उद्धव ममता बनने की हिम्मत दिखा पाएंगे?

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