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मिसाल: महाराष्ट्र में चना-मूंगफली बेचने वाले के बेटे ने पास की NEET परीक्षा, पिता का सपना करेगा पूरा

रामप्रसाद को दाखिला तो मिल गया लेकिन अब उसके सामने बड़ी समस्या थी कि पुणे जैसे बड़े शहर में रहने-खाने का खर्च कहां से आएगा. कॉलेज की हॉस्टल और मेस फीस ही 80,000 रुपए सालाना बैठती. रहने का खर्च बचाने के लिए रामप्रसाद ने बहन के पास शिकरापुर में ही रहने का फैसला किया और वो डेढ़ महीने तक पब्लिक ट्रांसपोर्ट की बस से ही आता जाता रहा.

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परिजनों के साथ रामप्रसाद जुनागरे.
परिजनों के साथ रामप्रसाद जुनागरे.
स्टोरी हाइलाइट्स
  • NEET परीक्षा में 720 में से 625 अंक ले कर लिया एडमिशन  
  • आर्थिक अभाव और मुश्किल के बावजूद हासिल की सफलता

महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले में किनवट नाम से छोटा कस्बा है. आज इस कस्बे में हर किसी की जुबान पर 18 साल के किशोर रामप्रसाद जुनागरे का नाम है. शिक्षा की ललक की वजह से रामप्रसाद ने तमाम आर्थिक अभावों के बावजूद जो कर दिखाया, वो बेमिसाल है. रामप्रसाद ने NEET परीक्षा में 720 अंकों में से 625 अंक हासिल कर पुणे के प्रतिष्ठित बीजे मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस में दाखिला ले कर दिखाया है.

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घुमंतू समुदाय के बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले रामप्रसाद ने डॉक्टर बनने का सपना पूरा करने के लिए पहला पड़ाव तो पार कर लिया लेकिन अभी भी उसकी मुश्किलें खत्म नहीं हुई हैं. एमबीबीएस की पढ़ाई में पहले वर्ष की फीस के लिए ‘लिफ्ट फॉर अपलिफ्टमेंट’ संस्था ने 50,000 रुपए की मदद की है. इसी संस्था ने रामप्रसाद को NEET परीक्षा क्रैक करने में अहम भूमिका निभाई. डॉक्टरी की पढ़ाई के बाकी खर्च के लिए उसके कस्बे के लोग सामने आ रहे हैं.  

रामप्रसाद के पिता फकीरराव जुनागरे कस्बे के शिवाजी चौक पर चना-मूंगफली बेच कर परिवार का गुजारा करते हैं. राम प्रसाद ने दसवीं तक पढ़ाई कस्बे में ही की. पढ़ाई में हमेशा ध्यान लगाने वाले रामप्रसाद को जो भी खाली वक्त मिलता वो दोस्तों के साथ खेलने की जगह पिता के काम में जाकर हाथ बंटाता. पिता की हर दिन करीब 200 रुपए की बिक्री होती है जिसमें से 100 रुपए का फिर सामान खरीदना होता है. ऐसे में परिवार के खर्च के लिए महज 100 रुपए ही बचते. रामप्रसाद की एक बड़ी बहन अंबिका और एक छोटा भाई शैलेश है. बहन अंबिका पुणे के पास शिकरापुर में पति के साथ रहती है.  

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रामप्रसाद की मेहनत रंग लाई और उसने दसवीं की परीक्षा 94% अंकों के साथ पास की. लेकिन दसवीं में इतने अच्छे अंक प्राप्त करने के बाद भी किनवट और आगे की पढ़ाई के लिए बेहतर स्कूल नहीं था. दो साल पहले गर्मी की छुट्टियों में बहन अंबिका ने रामप्रसाद को अपने पास शिकरापुर बुलाया. वहां जाकर भी रामप्रसाद एक मेडिकल स्टोर में काम करने लगा. वहीं उसे किसी ने बताया कि दसवीं के नंबरों के आधार पर उसे पुणे के प्रतिष्ठित फर्ग्युसन कॉलेज में 11वीं में दाखिला मिल सकता है.  

रामप्रसाद को दाखिला तो मिल गया लेकिन अब उसके सामने बड़ी समस्या थी कि पुणे जैसे बड़े शहर में रहने-खाने का खर्च कहां से आएगा. कॉलेज की हॉस्टल और मेस फीस ही 80,000 रुपए सालाना बैठती. रहने का खर्च बचाने के लिए रामप्रसाद ने बहन के पास शिकरापुर में ही रहने का फैसला किया और वो डेढ़ महीने तक पब्लिक ट्रांसपोर्ट की बस से ही आता जाता रहा. लेकिन कहते हैं न जहां चाह, वहां राह.

रामप्रसाद को जल्दी ही पुणे के डॉ आंबेडकर स्टूडेंट्स हॉस्टल में रहने का ठिकाना मिल गया. साथ ही उसे पुणे महानगर पालिका की ओर से जरूरतमंद और मेधावी छात्रों को हर महीने खाने के मेस के लिए दी जाने वाली 2100 रुपए प्रति महीने की आर्थिक मदद भी मिलने लगी. इसी पैसे से वो फर्ग्युसन कॉलेज की मेस में दोपहर को और रात को डॉ आंबेडकर स्टूडेंट्स हॉस्टल में खाना खाता.  

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फर्ग्युसन कॉलेज में ही रामप्रसाद को किरण बोबडे नाम के एक सीनियर छात्र ने पुणे स्थित बीजे मेडिकल कॉलेज के रेजीडेंट डॉक्टर्स की ओर से ‘लिफ्ट फॉर अपलिफ्टमेंट’ योजना की जानकारी दी. इसके तहत इन डॉक्टर्स की ओर से आर्थिक दृष्टि से कमजोर परिवारों से आने वाले होनहार छात्रों के लिए CEET कोचिंग क्लासेज संचालित की जाती हैं. इसमें छात्रों को मेडिकल कॉलेज में दाखिले के लिए होने वाली NEET परीक्षा की तैयारी कराई जाती है.

रामप्रसाद ने इस संस्था से संपर्क किया तो वहां डॉक्टरों ने उसका बहुत उत्साहवर्धन किया. 2017 से शुरू हुई ‘लिफ्ट फॉर अपलिफ्टमेंट’ के कार्यकारी अध्यक्ष डॉक्टर किरण टोपे ने आजतक को बताया कोचिंग पाने वाले छात्रों के एक वक्त के खाने का इंतजाम भी बीजे मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल मेस में किया जाता है. कोचिंग में छात्रों को प्रवेश देते वक्त ये ध्यान रखा जाता है कि वे वाकई आर्थिक दृष्टि से कमजोर परिवारों से ही नाता रखते हैं. रामप्रसाद को कोचिंग में प्रवेश देने से पहले उसके कस्बे में जाकर परिवार के बारे में सारी जानकारी जुटाई गईं. संस्था से जुड़े डॉ अतुल ढाकने ने रामप्रसाद का मेंटर के तौर पर हर कदम पर मार्गदर्शन किया. 

रामप्रसाद ने आजतक को बताया के 2018 और 2019 में उसने सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित किया. 2020 मार्च महीने में लॉकडाउन के बाद रामप्रसाद को पुणे से अपने गांव किनवट लौटना पड़ा. आर्थिक संकट बढ़ जाने के बावजूद रामप्रसाद के माता-पिता ने उसे अपना सारा ध्यान NEET परीक्षा की तैयारी पर फोकस करने के लिए कहा. रामप्रसाद मन लगाकर पढ़ाई करता रहा. सितंबर महीने में  रामप्रसाद ने पुणे आकर NEET परीक्षा दी. रिजल्ट आया तो रामप्रसाद को कुल 720 में से 625 अंक मिले.

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बीजे मेडिकल कॉलेज में ओपन कैटेगरी में एडमिशन पाने के लिए 580 अंक की जरूरत थी. यहां गौर करने लायक है कि रामप्रसाद नोमेडिक ट्राइब (NT) यानि घुमंतू समुदाय से होने का होने की वजह से आरक्षण का हकदार है और उसे 496 नंबर पर ही दाखिला मिल जाता. लेकिन उसने अपनी काबलियत के दम पर ओपन कैटेगरी से एडमिशन के लिए जरूरी 580 से भी 45 अंक ज्यादा लेकर दिखाए. 

किनवत में रहते हुए रामप्रसाद को एक बात की कमी हमेशा खलती थी. और वो थी कस्बे में अच्छी मेडिकल सुविधाओं की कमी. कोई गंभीर रूप से बीमार पड़ता तो किसी बड़े शहर में ही उसे इलाज के लिए ले जाना पड़ता. ऐसे में रामप्रसाद के मन में बचपन से ही एक दबी इच्छा पलने लगी. और वो इच्छा थी बड़े होकर डॉक्टर बनने की. एमबीबीएस में दाखिला ले कर रामप्रसाद ने उसी दिशा में कदम बढ़ा दिया है. रामप्रसाद का कहना है कि वो डॉक्टर बनने के बाद किसी बड़े शहर की जगह किनवट में ही प्रैक्टिस करेगा.  

आज रामप्रसाद के पिता फकीरराव और मां सूर्याकांता बेटे की कामयाबी से बहुत खुश हैं. लेकिन वो साथ ही इस बात से चिंतित भी हैं कि डॉक्टरी की पढ़ाई पर होने वाला खर्च कहां से आएगा. इसके लिए उन्होंने लोगों से मदद के लिए आगे आने की अपील भी की है. किनवत के लोग भी रामप्रसाद की मदद के लिए खुलेदिल से आगे आ रहे हैं. 

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