नोटबंदी के 18वें दिन बाद भी हालात में सुधार नहीं हुआ है. कैश को लेकर आम लोग परेशान हैं. बाहर रहकर पढ़ने या हॉस्टल में रहने वाले छात्रों की मुश्किलें भी बढ़ रही हैं. पुणे के कई छात्रों ने बताया कि नोटबंदी से रोजमर्रा के खर्चे चलाने में उन्हें दिक्कत आ रही है.
पुणे को पूरब का ऑक्सफोर्ड कहा जाता है. 'आजतक' की टीम ने यहां के छात्रों से नोटबंदी पर बात की और उनकी परेशानियों को जाना. अधिकतर छात्रों ने बताया कि बड़े नोट बंद होने उनके पास कैश की कमी हो गई है. कई बार जरूरत के वक्त पैसे नहीं होते. मजबूरन उधार लेकर काम चलाना पड़ रहा है. वहीं, विदेशी छात्रों ने भी यही बात कही के कठिनाइयां तो बहुत हैं, लेकिन जैसे-तैसे काम चला रहे हैं.
एक छात्रा समीक्षा ने बताया, 'पहले जितने पैसे रहते थे, जेब में उतने अब नहीं हैं. पहले 5 हजार तक कैश रहता था, अब पूरी 500-600 पर आ गया है. ऐसे में जरूरी चीजों की शॉपिंग में दिक्कत आती है. ज्यादातर जगहों में कार्ड पेमेंट होता नहीं है.' हालांकि, समीक्षा ने कालेधन को लेकर देशहित में नोटबंदी का समर्थन किया है. उनका मानना है कि इससे भ्रष्टाचार में कमी आएगी.
एक और छात्र ने बताया, 'मेरे पास अब सिर्फ 500 का नया नोट है. जब मैं मुंबई में फिल्म का टिकट खरीदने गया, तो नहीं मिला. सिनेमाघर में बोर्ड लगाकर रखा गया है कि 100, 500 और 2000 का चेंज नहीं है. ये जो बदलाव है, वो अच्छा है लेकिन छोटी-छोटी चीजें जब खरीदने जाओ, तो छुट्टा ही मांगते है या पेटीएम से पेमेंट करने को कहते हैं. एटीएम से पैसे निकालने के लिए कई-कई घंटे लाइन में लगे रहना पड़ता है.'
आईएमडीआर कॉलेज की एक छात्र ने बताया, 'मुझे कैश को लेकर कोई खास परेशानी नहीं हो रही है. देशहित में पीएम ने ये फैसला लिया है, मैं इसका सपोर्ट करती हूं. अभी मेरी जेब में 200 रुपये हैं. इतने ही पैसे मेरे पास रोज होते हैं, नोटबंदी से मेरी लाइफ में कोई बदलाव नहीं हुआ.'
वहीं, अश्विनी नाम की छात्रा का कहना है कि नोटबंदी से सेविंग हुई है. पहले मेरे खर्चे ज्यादा थे, अब कैश कम होने से खर्चा भी कम होता है. इससे सेविंग करने की सीख मिली है.
सिम्बॉयोसिस कॉलेज की छात्राओं का कहना है कि नोटबंदी से कैश में कमी तो आई है. फर्क पड़ा है. खाने-पीने में कटौती करनी पड़ रही है. आने-जाने के लिए छुट्टे पैसे बचाकर रखने होते हैं.