सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में 'बीफ' पर पूरी तरह से प्रतिबंध के खिलाफ दायर 4 और याचिकाओं पर महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. कोर्ट ने इन याचिकाओं को पहले से ही दायर दूसरी याचिकाओं के साथ संलग्न कर दिया है. अब सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई होगी.
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने जमिअतुल कुरेश माइनॉरिटी एसोसिएशन और अन्य, अन्ना बाबुराव एवं अन्य, स्वतिजा परांजपे व अन्य के अलावा अखिल भारत कृषि गौ सेवा संघ की याचिका पर सुनवाई करते हुए महाराष्ट्र सरकार से जवाब मांगा है. इससे पहले अखिल भारतीय कृषि गौसेवा समिति की तरफ से दायर की गई याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किया था. इस याचिका में मांग की गई है कि किसी दूसरे राज्य से महाराष्ट्र में बीफ लाकर इस्तेमाल करना भी अपराध होना चाहिए, जिसकी फिलहाल इजाजत है.
क्या कहा था हाई कोर्ट ने अपने फैसले में
बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था, 'राज्य में बीफ पर पाबंदी जारी रहेगी. लेकिन बाहर के राज्यों से (जिन राज्यों में इसकी इजाजत है) महाराष्ट्र में बीफ लाया जा सकता है और लोग बीफ खा भी सकते हैं. बीफ रखने वालों को सारे सबूत हमेशा रखने होंगे, जिससे कभी कोई शिकायत आए तो वो खुद को निर्दोष साबित कर सकें. ऐसे में उस व्यक्ति पर कानूनी कारवाई नहीं हो सकती है.'
कसाई का काम करने वाले संगठन की याचिका
कसाई का काम करने वाले कुरैश संघटनों ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में कहा है कि वो भी गाय और गाय के बछड़े का सम्मान करते हैं. सरकार को इसमें पूरी तरह सहयोग करना चाहते हैं. लेकिन वो बैल जो 16 साल की उम्र पार कर चुका है, उसे काटने की इजाजत होनी चाहिए. 16 साल की उम्र के बाद बैल किसान के किसी काम का नहीं रहता. नकारा हो जाता है. किसान के लिए ऐसा जानवर ATM कार्ड की तरह होता है, जिसे बेचकर किसान को कैश रकम मिल जाती है. 18 लाख लोग इस प्रतिबंध से प्रभावित हो रहे हैं, इसलिए 16 साल से ऊपर के बैल के वध की इजाजत होनी चाहिए.
याचिकाओं में कहा गया है कि गौ हत्या रोकने के नाम पर सिर्फ राजनीति हो रही है. दरअसल, सरकार इसके नाम पर वोट बैंक की राजनीती करना चाहती है.