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महाराष्ट्र: 'खुद के खिलाफ अर्जी पर जज कैसे बन गए डिप्टी स्पीकर', सुप्रीम कोर्ट ने दो हफ्ते में मांगा जवाब

बागी विधायकों के वकील ने नबाम रेबिया बनाम डिप्टी स्पीकर, अरुणाचल प्रदेश विधानसभा मामले में 2016 के SC के फैसले का जिक्र किया, जिसमें सदन को बुलाने की शक्ति और राज्यपाल के अधिकार के बारे में बात की गई थी. वहीं महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश ने 1992 के SC के किहोतो होलोहन बनाम ज़ाचिल्हू और अन्य के फैसले का जिक्र किया, जिसमें 10वीं अनुसूची के तहत अध्यक्ष के व्यापक विवेक को बरकरार रखा था.

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सुप्रीम कोर्ट ने 11 जुलाई तक डिप्टी स्पीकर के फैसले पर लगा दी है रोक (फाइल फोटो)
सुप्रीम कोर्ट ने 11 जुलाई तक डिप्टी स्पीकर के फैसले पर लगा दी है रोक (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • SC में MLA को अयोग्य ठहराने वाले नोटिस पर हुई सुनवाई
  • बेंच ने महाराष्ट्र में यथा स्थिति बनाए रखने का दिया आदेश

Maharashtra Political Crisis:सुप्रीम कोर्ट से शिंदे गुट को सोमवार को बड़ी राहत मिली. अवकाशकालीन पीठ में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच में बागी विधायकों को जारी डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल के नोटिस के मामले पर करीब दो घंटे तक सुनवाई हुई.

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इसके बाद कोर्ट ने डिप्टी स्पीकर के नोटिस पर 11 जुलाई तक रोक लगाते हुए राज्य में यथा स्थिति बनाए रखने का आदेश दे दिया है. साथ ही कोर्ट ने इस मामले में डिप्टी स्पीकर को नोटिस जारी करते हुए दो हफ्ते में जवाब देने के लिए कहा है. यानी गुवाहाटी में बैठे शिवसेना के बागी विधायकों को अब 11 जुलाई तक भाग दौड़ करने की जरूरत नहीं है. 

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सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद डिप्टी स्पीकर की भूमिका को लेकर आदेश पारित किया कि डिप्टी स्पीकर हलफनामा दाखिल करेंगे कि आखिर किन-किन विधायकों ने डिप्टी स्पीकर को हटाने के लिए कब-कब नोटिस भेजा गया और किस नियम के तहत डिप्टी स्पीकर ने उनकी अर्जी खारिज कर दी? सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि डिप्टी स्पीकर अपने ही खिलाफ दी गई अर्जी पर खुद ही जज कैसे बन गए? 

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ठाकरे गुट से भी पांच दिन में मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने शिंदे और भरत गोगेवाल व अन्य साथी विधायकों की याचिकाओं पर डिप्टी स्पीकर, महाराष्ट्र सरकार, शिवसेना के ठाकरे धड़े और केंद्र सरकार सहित सभी पक्षकारों को नोटिस देकर पांच दिनों में जवाब मांगा है. नोटिस के उस जवाब पर याचिकाकर्ता अगले तीन दिनों में जवाब दाखिल करना होगा.

SC ने पूछा- HC में क्यों नहीं की अपील

सुप्रीम कोर्ट ने एकनाथ शिंदे से वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल ने कहा कि डिप्टी स्पीकर का नोटिस संवैधानिक नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि आप हाई कोर्ट क्यों नहीं गए? कौल ने कहा कि वहां उनको जान से मारने की धमकियां दी जा रही हैं. मुंबई में उनके घरों पर हमले हो रहे हैं. उनकी संपत्ति को तोड़ा जा रहा है. लिहाजा बुनियादी अधिकारों पर संकट के मद्देनजर वो संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत यहां सीधे आए हैं.

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'जल्दबाजी में कदम उठा रहे डिप्टी स्पीकर'

डिप्टी स्पीकर के नोटिस और जवाब के लिए दिए गए समय पर कौल ने कहा कि जब तक डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का फैसला नहीं हो जाता वो अयोग्यता पर कार्यवाही नहीं कर सकते. वो जल्दबाजी में कदम उठा रहे हैं. उन्होंने 27 जून की शाम पांच बजे तक का समय दिया था, जो कि प्राकृतिक न्याय के खिलाफ है. जब डिप्टी स्पीकर को हटाने का नोटिस भेजा गया हो तो उनका नोटिस जारी करना गलत है. जस्टिस सूर्यकांत ने पूछा कि आपने ये सारी आपत्तियां डिप्टी स्पीकर के समक्ष क्यों नहीं उठाईं?

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कौल ने कहा कि स्पीकर या डिप्टी स्पीकर के पास विधायकों की अयोग्यता का फैसला करते समय सभी सदस्यों का समर्थन होना चाहिए लेकिन महाराष्ट्र में खुद ही डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल अविश्वास के दायरे में हैं. अगर डिप्टी स्पीकर को हटाने पर फैसले से पहले अयोग्यता की कार्यवाही हुई तो यह संवैधानिकता के तहत अस्वीकार्य होगा. 

'डिप्टी स्पीकर के फैसले के बाद कोर्ट दे सकता है दखल'

शिवसेना का पक्ष रखते हुए अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि रेबिया केस में यह भी कहा गया है कि गलत फैसला करने पर भी स्पीकर को फैसला करने दें. अंतिम निर्णय होने के बाद ही अदालत हस्तक्षेप कर सकती है.

उन्होंने कहा कि राजस्थान का अपवाद छोड़ दें तो सुप्रीम कोर्ट ने कभी भी स्पीकर के पास लंबित कार्रवाई पर सुनवाई नहीं की है. उनका अंतिम फैसला आने पर कोर्ट में सुनवाई होती है. देश में किसी भी मामले में एक बार कार्यवाही शुरू करने के बाद अध्यक्ष को कार्रवाई करने से रोका नहीं गया.

'डिप्टी स्पीकर ने उन्हें नोटिस न मिलने की बात कही'

सुप्रीम कोर्ट ने मनु सिंघवी से सवाल किया अगर स्पीकर के खिलाफ ही अर्जी दी गई हो तो क्या वे खुद उस अर्जी पर सुनवाई कर सकते हैं? डिप्टी स्पीकर ने रिकॉर्ड पर कहा कि कभी भी उन्हें पद से हटाने के लिए नोटिस नहीं दिया गया. अगर ऐसा है तो हम हलफनामा दाखिल करने को कहेंगे.

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वहीं दूसरी तरफ सवाल यह उठता है कि अगर स्पीकर को नोटिस मिला तो क्या उन्होंने उसे खुद ही खारिज कर दिया? अगर स्पीकर ने नोटिस को किसी कारण से रद्द किया तो इसका मतलब है कि वो खुद ही अपने मामले में जज बन गए.

वकील के ईमेल से स्पीटकर को हटाने का नोटिस भेजा

डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल के वकील राजीव धवन ने कहा कि स्पीकर को पद से हटाने का जो नोटिस विधायकों ने ईमेल के जरिये दिया था, वह रजिस्टर ईमेल नहीं था. वो किसी वकील के ईमेल से आया था.

इस पर पीठ ने कहा कि अगर आज हम नोटिस पर कोई आदेश जारी नहीं करते तो डिप्टी स्पीकर के पास अयोग्यता पर फैसले को लेकर हमेशा अधिकार रहेगा.

धवन ने कहा कि डिप्टी स्पीकर के समक्ष विधायकों को पेश होने दें, लेकिन कार्यवाही उनके खिलाफ होगी या नहीं, ये उनसे बात किए बिना ऑन रिकॉर्ड कुछ नहीं कह सकता.

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