महाराष्ट्र में उद्धव सरकार गिरने के बाद एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार बन गई है. लेकिन अब शिवसेना को हासिल करने के लिए असली लड़ाई चल रही है. उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे दोनों के ही गुट शिवसेना और उसके चुनाव चिन्ह को अपने कब्जे में रखना चाहते हैं. इस लड़ाई के बीच अब चुनाव आयोग आगे आया है.
आयोग ने उद्धव और शिंदे गुट को 8 अगस्त तक साबित करने के लिए कहा है कि शिवसेना के असली दावेदार वह हैं. EC ने दोनों गुटों से तय वक्त के पहले जरूरी कागजात जमा करने के लिए कहा है. अब दोनों गुटों को तय तारीख में 1 बजे तक दावे से संबंधित दस्तावेज जमा करने होंगे. इसके बाद चुनाव आयोग दोनों गुटों के दावों पर सुनवाई करेगा. वहीं, शिवसेना संग्राम के अहम पड़ाव के तौर पर सुप्रीम कोर्ट में एक अगस्त को अहम तारीख होगी. सुप्रीम कोर्ट 1 अगस्त को शिवसेना के दोनों धड़ों की याचिकाओं पर सुनवाई करेगा.
बता दें कि शिवसेना के पास धनुष और तीर का चुनाव चिन्ह है. संगठन को 19 अक्टूबर 1989 को पंजीकृत किया गया था. इसे 15 दिसंबर 1989 को एक राज्य स्तरीय पार्टी के रूप में मान्यता मिली थी. 7 फरवरी 2018 को चुनाव आयोग के समक्ष प्रस्तुत किए गए चुनाव विवरण के मुताबिक उद्धव ठाकरे को पार्टी अध्यक्ष के रूप में चुना गया था. ठाकरे ने एकनाथ शिंदे को 23 जनवरी 2018 को अगले पांच साल के लिए शिवसेना नेता नियुक्त किया था.
इसके बाद उद्धव ठाकरे के वफादार और सांसद अनिल देसाई ने 25 जून 2022 को चुनाव आयोग को सूचित किया कि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में कुछ विधायक पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल हैं . देसाई ने किसी और के 'शिवसेना' या 'बालासाहेब' के नाम का इस्तेमाल करने पर भी आपत्ति जताई थी. तब तक ज्यादातर विधायक गुवाहाटी में एकनाथ शिंदे के साथ चले गए थे. इसके बाद जुलाई के पहले सप्ताह में अनिल देसाई ने चुनाव आयोग को तीन और पत्र लिखकर बताया था कि चार सदस्यों ने स्वेच्छा से पार्टी की सदस्यता छोड़ दी है.
अनिल देसाई ने अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए 2 जुलाई को एक और ईमेल किया और 25 जून को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाकर पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारी प्रतिनिधियों का पूरा संगठनात्मक ढांचा प्रस्तुत किया.
भाजपा के साथ सरकार बनाने वाले एकनाथ शिंदे ने 19 जुलाई 2022 को चुनाव आयोग में याचिका दायर कर उनके नेतृत्व वाले समूह को शिवसेना घोषित करने की मांग की थी. उन्होंने यह भी कहा था कि उनके गुट को पार्टी का चिन्ह 'धनुष और ती' आवंटित किया जाए.
उन्होंने चुनाव आयोग से यह भी कहा कि शिवसेना के बीच विवाद इस हद तक बढ़ गया था कि उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले समूह ने अनधिकृत बैठक की. और उन्हें हटाने के लिए 55 में से 14 मतों के माध्यम से प्रस्ताव पारित कर लिया. शिवसेना नेता के रूप में उनके स्थान पर अजय चौधरी को शिवसेना विधायक दल (SSLP) का नेता नियुक्त किया.
शिंदे ने चुनाव आयोग को यह भी बताया है कि 55 में से 40 विधायक, विभिन्न एमएलसी और 18 में से 12 सांसद उनके साथ हैं. आयोग ने अब दोनों समूहों को 8 अगस्त 2022 तक अपने दावों का समर्थन करने के लिए दस्तावेजों के साथ अपनी लिखित प्रस्तुतियां प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है.
कैसे फैसला करता है चुनाव आयोग
प्रतीक अधिनियम के तहत जब आयोग अपने पास मौजूद जानकारी पर संतुष्ट हो जाता है कि किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के प्रतिद्वंद्वी वर्ग या समूह हैं, जिनमें से प्रत्येक उस पार्टी के होने का दावा करता है, तो आयोग सभी उपलब्ध तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए मामले की सुनवाई करता है.
जब दो गुट एक ही चुनाव चिह्न पर दावा पेश करते हैं. चुनाव आयोग सबसे पहले पार्टी के संगठन और उसके विधायिका विंग के भीतर प्रत्येक गुट के समर्थन की जांच करता है. फिर यह राजनीतिक दल के भीतर शीर्ष पदाधिकारियों और निर्णय लेने वाले निकायों की पहचान करने के लिए आगे बढ़ता है. यह जानने के लिए आगे बढ़ता है कि उसके कितने सदस्य या पदाधिकारी किस गुट में हैं. उसके बाद आयोग प्रत्येक खेमे में सांसदों और विधायकों की संख्या गिनता है.
आयोग पार्टी के चुनाव चिह्न पर भी रोक लगा सकता है और दोनों गुटों को नए नामों और प्रतीकों के साथ पंजीकरण करने के लिए कह सकता है. यदि चुनाव नजदीक हैं, तो यह गुटों को अस्थायी चुनाव चिन्ह चुनने के लिए कह सकता है. यदि गुट भविष्य में एकजुट होने और मूल प्रतीक को वापस लेने का निर्णय लेते हैं, तो चुनाव आयोग को विलय कराने का अधिकार है और वह एकीकृत पार्टी को प्रतीक को बहाल करने का निर्णय ले सकता है.