महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज होने के बाद अब एकनाथ शिंदे शिवसेना पर कब्जे की जंग में कूद गए हैं. उद्धव से शिवसेना की बागडोर छीनने के लिए शिंदे ने पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी भंग कर नई कार्यकारिणी बना दी है. सवाल है कि उनकी ये कार्यकारिणी कितनी वैध है? क्या इसके जरिए वे उद्धव ठाकरे के हाथों से पार्टी की कमान छीन लेंगे?
शिंदे ने बनाई शिवसेना की नई टीम
शिवसेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में आदित्य ठाकरे, मनोहर जोशी, लीलाधर डाके, दिवाकर रावते, सुधीर जोशी संजय राव, सुभाष देसाई, रामदास कदम, गजानन कीर्तिकर, आनंद गीते, आनंदराव अडसूल, आनंद राव व एकनाथ शिंदे शामिल थे. शिंदे ने सोमवार को इस कार्यकारिणी की भंग कर अपनी ओर से नई कार्यकारिणी का ऐलान कर दिया. इसमें रामदास कदम और आनंद राव अडसुल को फिर से नेता के तौर पर नियुक्त किया. उप नेता के तौर पर यशवंत जाधव, गुलाबराव पाटिल, उदय सामंत, तानाजी सावंत, शिवाजीराव पाटिल, विजय नाहटा और शरद पोंसे को नियुक्ति दी गई जबकि दीपक केसरकर को नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी का प्रवक्ता बनाया गया है.
साफ है कि शिंदे ने शिवसेना की नई कार्यकारिणी से उद्धव के करीबी नेताओं की छुट्टी कर अपने करीबी नेताओं को नियुक्त किया है. पुरानी राष्ट्रीय कार्यकारणी से महज दो नेताओं को लिया गया है, जो उद्धव खेमा छोड़कर सोमवार को उनके साथ आए थे.
नई कार्यकारिणी कितनी वैध
सवाल यह है कि शिंदे की बनाई कार्यकारिणी की वैधता क्या होगी. वरिष्ठ पत्रकार अरविंद सिंह कहते हैं कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाने का अधिकार पार्टी के अध्यक्ष के हाथ में होता है. ऐसे में शिंदे ने जिस तरह से शिवसेना की पुरानी कार्यकारणी को खत्म कर नई कार्यकारिणी बनाई है, उसकी वैधता पर सवाल उठना लाजमी है. उद्धव खेमा इसे चुनाव आयोग में चैलेंज कर सकता है. चुनाव आयोग शिवसेना के संविधान के लिहाज से भी हर पहलू को देखेगा और उसके बाद ही कोई फैसला करेगा.
क्या उद्धव से छीनी जा सकती है अध्यक्षता
एकनाथ शिंदे ने शिवसेना के 40 विधायकों को अपने साथ मिलाकर उद्धव का तख्तापलट तो कर दिया, लेकिन शिवसेना की कमान अब भी ठाकरे परिवार के पास ही है. इससे छीनना आसान नहीं है. शिवसेना के संविधान के मुताबिक शिवसेना के प्रमुख का चुनाव पार्टी की प्रतिनिधि सभा को करना होता है. पार्टी की प्रतिनिधि सभा गांव स्तर से लेकर तालुका स्तर और जिला स्तर के तमाम संगठनात्मक वैधानिक प्रक्रियाओं के आधार पर है. इसमें सांसद और विधायकों के साथ-साथ पार्टी के कई विभागों के मुखिया होते हैं.
साल 2018 में शिवसेना की प्रतिनिधि सभा में 282 लोग शामिल थे. इन सभी लोगों ने मिलकर ही उद्धव ठाकरे को शिवसेना का अध्यक्ष चुना था. उद्धव को प्रतिनिधि सभा के जरिए भी हटाया जा सकता है. इसीलिए एकनाथ शिंदे ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी भले बदल दी हो लेकिन पार्टी के प्रमुख पद को हाथ नहीं लगाया है. उद्धव ठाकरे अभी भी शिवसेना के अध्यक्ष हैं.
जानकार मानते हैं कि उद्धव और शिंदे दोनों की ओर से चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट के सामने यह दिखाने के लिए कोशिश की जा रही है कि शिवसेना पर उनका दावा मजबूत है. उद्धव ठाकरे ने भी 25 जून को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक की थी, जिसमें छह महत्वपूर्ण प्रस्तावों को पारित किया गया था.
इसमें उद्धव ठाकरे को सेना प्रमुख के रूप में पुष्टि की गई थी और उन्हें पार्टी के सभी निर्णय लेने के लिए अधिकृत किया गया था. पूर्व मंत्री विजय शिवतारे और हिंगोली के जिलाध्यक्ष पद से विधायक संतोष बांगर, ठाणे के जिला प्रमुख नरेश म्हस्के को बर्खास्त कर दिया था, जिन्हें शिंदे ने अपने साथ कर लिया है. ऐसे में देखना है कि इस शह-मात के खेल में कौन शिकस्त खाता है और शिवसेना की कमान किसके हाथों में रहती है?