शिवसेना संरक्षक बाल ठाकरे की वसीयत मामले नया मोड़ आ सकता है. बुधवार को बंबई हाई कोर्ट में एक गवाह ने अपने बयान में कहा कि जब बाल ठाकरे ने अपनी वसीयत पर दस्तखत किए थे तब उद्धव ठाकरे के अलावा कोई दूसरा कानूनी उत्तराधिकारी या रिश्तेदार वहां मौजूद नहीं था. ठाकरे के दूसरे बेटे जयदेव ने वसीयत को यह कहते हुए चुनौती दी है कि वसीयत पर हस्ताक्षर के दौरान उनके पिता की मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी.
गौरतलब है कि शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे का नवंबर 2012 में निधन हो गया था. उन्होंने अपनी वसीयत में सम्पत्ति का एक बड़ा हिस्सा उद्धव के नाम कर दिया है, जबकि दूसरे पुत्र जयदेव को कुछ भी नहीं दिया गया है. बुधवार को गवाह वकील एफ डिसूजा से जयदेव की वकील सीमा सरनाइक ने जज गौतम पटेल के समक्ष जिरह की. बाल ठाकरे ने डिसूजा की मौजूदगी में ही वसीयत पर हस्ताक्षर किया था.
जिरह के दौरान एक सवाल के जवाब में डिसूजा ने कहा कि जब बाल ठाकरे के सामने वसीयत पढ़ी गई तब परिवार के सदस्यों में सिर्फ उद्धव ही वहां मौजूद थे. उद्धव के अलावा वसीयत की तामील कराने वाले अनिल परब, शशि प्रभु, वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व सांसद ए. शिरोडकर और बाल ठाकरे के निजी सहायक रवींद्र महात्रे भी उस वक्त मौजूद थे. डिसूजा ने कहा कि उन्होंने परिवार के अन्य सदस्यों से सम्पर्क नहीं किया क्योंकि वह उन्हें निजी तौर पर नहीं जानते थे और उनके पास उनके फोन नंबर भी नहीं थे.
जयदेव की वकील सरनाइक के सवाल किया कि क्या उन्होंने उद्धव या महात्रे को यह बताया था कि ठाकरे परिवार के अन्य कानूनी उत्तराधिकारियों को मौजूद रहना चाहिए. डिसूजा ने कहा, 'मैंने वकील शिरोडकर से मशविरा किया था. उन्होंने कहा कि यह कानूनी रूप से जरूरी नहीं कि परिवार के सभी सदस्य मौजूद रहें. दिलचस्प यह है कि राज्यसभा के पूर्व सदस्य शिरोडकर का निधन हो गया है. कोर्ट ने आगे जिरह के लिए 12 दिसंबर की तारीख मुकर्रर की है.
-इनपुट भाषा