राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुखिया शरद पवार के परिवार में भी विरासत की सियासत को लेकर लड़ाई छिड़ी है. इस लड़ाई के केंद्र में हैं उनके दो पोते. एक पोते पार्थ पवार हैं, जिन्हें शरद पवार ने इस साल अपनी लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारा था. दूसरे उनके दिवंगत बड़े बाई अप्पा साहेब पवार के पोते रोहित पवार हैं.
जबकि शरद पवार की सांसद बेटी सुप्रिया सुले दिल्ली की राजनीति में सक्रिय हो चुकीं हैं. ऐसे में महाराष्ट्र की राजनीति का वारिस बनने के लिए इन दो पोतों में अंदरखाने जंग छिड़ी है. हालांकि दो लाख से भी अधिक वोटों से पार्थ पवार के चुनाव हार जाने के बाद अब रोहित पवार का पलड़ा मजबूत लग रहा है. दादा शरद पवार की सीट गंवाकर पार्थ पवार परिवार से चुनाव हारने वाले पहले सदस्य बन गए हैं.
'पवार परिवार' में विरासत की सियासत को लेकर संघर्ष की पहली झलक लोकसभा चुनाव के दौरान दिखी. जब एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने लोकसभा चुनाव न लड़ने का फैसला करते हुए अपनी सीट पोते पार्थ पवार को सौंप दी. तब रोहित पवार ने फेसबुक पोस्ट लिखकर दादा शरद पवार से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए कहा था. हफिंगटन पोस्ट में छपी एक रिपोर्ट में इस घटनाक्रम को लेकर पार्थ पवार कहते हैं कि उन्होंने (रोहित) ने मेरे चुनाव में प्रचार किया. लेकिन उनके चचेरे भाई को इस तरह की फेसबुक पोस्ट नहीं लिखना चाहिए था.
बकौल पार्थ," यदि आप फोन उठाने और फोन करने की जगह अपने पिता या दादा को पत्र लिखते हैं तो मुझे लगता है कि यह मूर्खता है. उन्हें सच में अपने दादा से बात करनी थी न कि स्नेह दिखाने के लिए पत्र लिखना चाहिए था. इसे लोगों ने गलत रूप में लिया." वहीं संपर्क किए जाने पर रोहित ने कहा, 'हम सभी साथ हैं. हममें से किसी ने एक दूसरे के खिलाफ सार्वजनिक रूप से कुछ नहीं बोला है.' हाल में शरद पवार के साथ रोहित की मौजूदगी कुछ ज्यादा दिखने लगी है. जब लोकसभा चुनाव में एनसीपी की हार पर शरद पवार ने मीडिया को संबोधित किया था, तबसे रोहित उनके साथ-साथ दिखते रहे हैं. इससे राजनीतिक वारिस बनने की रेस में रोहित के आगे चलने की चर्चाएं चल रही हैं.
पवार परिवार की सियासी जड़ें
शरद पवार के सबसे बड़े भाई दिनकरराव गोविंदराव पवार ऊर्फ अप्पा साहेब पवार थे. वह पवार परिवार से राजनीति में उतरने वाले पहले सदस्य थे. महाराष्ट्र में किसानों और मजदूरों के हितों की लड़ाई लड़ने वाले बड़े नेता के तौर पर उन्होंने पहचान बनाई. बाद में अप्पा साहेब ने अपने छोटे भाई शरद पवार को कांग्रेस से जुड़ने के लिए राजी किया. 1999 में सोनिया गांधी से टकराव के बाद कांग्रेस से निकाले जाने के बाद शरद पवार ने नेशनल कांग्रेस पार्टी बनाई. इसके बाद महाराष्ट्र की राजनीति में पवार परिवार का दबदबा और कायम हुआ. बेटी सुप्रिया सुले पार्टी से सांसद बनती रहीं. वहीं शरद पवार ने अपने एक अन्य भाई अनंतराव के बेटे अजित पवार को भी प्रमोट किया. अजित महाराष्ट्र में राजनेता के रूप में उभरने में सफल रहे. वह एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन में डिप्टी सीएम भी बने.
अप्पा साहेब के पोते रोहित के सामने आने से पहले तक अजित पवार के बेटे पार्थ को ही पवार फेमिली का उत्तराधिकारी माना जा रहा था. 2017 में, रोहित ने पवार परिवार के बारामती के होम टाउन से जिला परिषद का चुनाव जीता था. तब से वह खामोशी के साथ राज्य में अपनी जमीन बनाते रहे. राकांपा में कई पार्टी कार्यकर्ता उन्हें शरद पवार के बाद वास्तविक जननेता के रूप में देखते हैं. पार्थ के विपरीत वह बड़े आत्मविश्वास के साथ सार्वजनिक मौजूदगी दर्ज कराते हैं.
पिंपरी-चिंचवाड़ में एक पार्टी नेता ने कहा," अजित दादा सुलभ नहीं हैं, लोग उनसे बात करने से डरते हैं. सुप्रिया दिल्ली की राजनीति में बिजी हैं. पार्थ खुद को बड़ा राजनेता मानकर व्यवहार करते हैं. रोहित अपवाद हैं, वह कार्यकर्ताओं से जुड़ते हैं. उनमें हम शरद पवार की छवि देखते हैं." पार्टी कार्यकर्ताओं के एक वर्ग का कहना है कि अप्पा साहेब ने ही शरद पवार को राजनीति में उतारा था. ऐसे में रोहित को आगे आना चाहिए.
यह पूछे जाने कि क्या वह खुद को शरद पवार का राजनीतिक वारिस मानते हैं, रोहित कहेत हैं, 'पार्टी के नेता राजनीतिक वारिस तय नहीं करते. यह जनता तय करती है. मैं राजनीति में रहते हुए समाज और राज्य के लिए कुछ करना चाहूंगा.' उधर पार्थ भी किसी तरह के पारिवारिक विवाद को खारिज करते हैं. सूत्र बता रहे हैं कि आने वाले विधानसभा चुनाव में रोहित पवार एक कठिन सीट चुनकर लड़ सकते हैं. ताकि पारिवारिक विरासत के सहारे ही सफल होने का ठप्पा उन पर न लगे. एक पार्टी नेता का कहना है कि अगर रोहित चुनाव हारते हैं तो भी पार्टी कार्यकर्ता उनसे सहानुभूति रखेंगे. कार्यकर्ता सोचेंगे कि अजित पवार और उनके बेटे ने उन्हें सफल नहीं होने दिया. कुल मिलाकर रोहित रेस में आगे दिख रहे हैं.