जब भी बात आती है क्लोज कॉम्बैट यानी नजदीकी लड़ाई की, तब छोटे, सटीक और घातक हथियार काम आते हैं. ऐसे समय में भारी बंदूकों से जवानों को दिक्कत आती है. इसलिए छोटी पिस्टल या फिर सब मशीन गन से हमला किया जात है. इसमें पहली है मॉडर्न सब मशीन कार्बाइन (Modern Sub Machine Carbine - MSMC). इसे DRDO के एडवांस्ड वेपन एंड इक्विपमेंट इंडिया लिमिटेड ने बनाया है. इसका उत्पादन साल 2005 से हो रहा है. वजन कम होने की वजह से इसे काफी पसंद किया जा रहा है. इसका वजन बिना गोलियों के मात्र 2.8 किलोग्राम है. (फोटोः DRDO)
MSMC की लंबाई बंद स्टॉक यानी बट के साथ 21.7 इंच है. जबकि, स्टॉक खोलकर 29.3 इंच. इसकी नली यानी बैरल की लंबाई 12 इंच है. इसमें 5.56x30 mm MINSAS कार्टिरेज लगती हैं. यह कार्बाइन गैस ऑपरेटेड, लॉन्ग स्ट्रोक पिस्टन रोटेटिंग बोल्ट सिस्टम पर काम करती है. (फोटोः विकिपीडिया)
MSMC एक मिनट में 800 से 900 राउंड फायर कर सकती है. यह निर्भर करता है उसे चलाने वाले इंसान पर. अगर वो सही गति में मैगजीन बदले तो इतनी गोलियां एक राउंड में फायर करना संभव है. इसकी फायरिंग रेंज 200 से 300 मीटर है. इसमें 30 राउंड का बॉक्स मैगजीन लगता है. इसमें आप ऑयरन साइट, रिफ्लेक्स साइट्स, इंफ्रारेड साइट्स या लेजर साइट्स लगाकर दुश्मन पर फायरिंग कर सकते हैं. (फोटोः AFP)
इस मशीन कार्बाइन ने सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्स के टेस्ट क्लियर कर लिए हैं. देश के बाकी राज्यों की पुलिस भी इसे अपनी स्पेशल टीमों के लिए शामिल किया है. भारतीय सेना के लिए इसके ट्रायल्स 2021 में पूरे हुए हैं. इसके ट्रायल्स अत्यधिक गर्मी और सर्दी वाले हिमालयी इलाकों में किए गए हैं. फिलहाल इस मशीन कार्बाइन का उपयोग CISF, CAPF, छ्त्तीसगढ़ पुलिस, स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप यानी SPG कर रही है. (फोटोः विकिपीडिया)
इसके बाद आती है मशीन पिस्टल. इसका नाम है अस्मि (ASMI). यानी गर्व, आत्मसम्मान और कड़ी मेहनत. इस 9 मिमी मशीन पिस्टल (9 mm Machine Pistol) की डिजाइनिंग DRDO के आर्मामेंट रिसर्च एंड डेवलपमेंट इस्टैबलिशमेंट और आर्मी इन्फैंट्री स्कूल, महू ने मिलकर की है. इसे बनाने में डीआरडीओ को सिर्फ 4 महीने लगे हैं. (फोटोः राजवंत रावत/इंडिया टुडे)
इसके दो वैरिएंट हैं. पहला- एक किलोग्राम वजन का दूसरा- 1.80 किलोग्राम वजन का. 9 मिमी मशीन पिस्टल (9 mm Machine Pistol) के ऊपर दुनिया के किसी भी तरह के माउंट लगाए जा सकते हैं. चाहे वो किसी भी तरह का टेलीस्कोप, बाइनोक्यूलर या बीम क्यों न हो. (फोटोः राजवंत रावत/इंडिया टुडे)
इस गन का ऊपरी हिस्सा एयरक्राफ्ट ग्रेड के एल्यूमिनियम से बना है, जबकि निचला हिस्सा कार्बन फाइबर से बनाया गया है. 100 मीटर की रेंज तक यह पिस्टल सटीक निशाना लगा सकती है. इसकी मैगजीन में स्टील की लाइनिंग लगी है यानी यह गन में अटकेगी नहीं. इसकी मैगजीन को पूरा लोड पर 33 गोलियां आती हैं. यह एक मिनट में 600 राउंड फायर कर सकती है. (फोटोः DRDO)