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Indian Army Dog Unit: सेना के डॉग स्क्वॉड के बारे में जानिए 10 एकदम नई बातें

Indian Army Dog Unit
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किसी सैनिक और उसके डॉग के बीच एक बेहद गहरा रिश्ता होता है. युद्ध का मैदान हो या आतंकी घुसपैठ. बम डिफ्यूज करना हो या सर्जिकल स्ट्राइक. हर जगह ये 'शांत बहादुर' जीव खुद को प्रमाणित करते हैं. ये लड़ाई करना तो जानते ही हैं. साथ ही बचाव कार्यों में भी मदद करते हैं. आइए आपको बताते हैं इनके बारे में 10 हैरान करने वाली जानकारियां... (प्रतीकात्मक फोटोः एपी)

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मिलिट्री के कुत्तों (Dogs) की भी किसी सैनिक की तरह कठिन ट्रेनिंग होती है. हर कुत्ता ट्रेनिंग पूरी नहीं कर पाता. फेल हो जाता है. तो ट्रेनिंग में सफल होते हैं, वहीं डॉग यूनिट में शामिल होते हैं. (फोटोः इंडिया टुडे आर्काइव)

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सेना के इतिहास में बहादुर डॉग्स की कहानियां भरी पड़ी हैं. रीमाउंट वेटरीनरी कॉर्प्स (RVC) को शौर्य चक्र मिल चुका है. इसके अलावा 150 कमेंडेशन कार्ड्स भी मिल चुके हैं. (प्रतीकात्मक फोटोः एपी) 

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सेना के पास 1000 प्रशिक्षित कुत्ते हैं. जिन्हें कोई न कोई रैंक हासिल है. इनकी ताकत, सेहत, संख्या संभालने की जिम्मेदारी रीमाउंट वेटरीनरी कॉर्प्स (RVC) को ही सौंपी गई है. (फोटोः गेटी)

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सेना के डॉग्स का मुख्य काम है सर्च एंड रेस्क्यू. इसके अलावा ये बारूदी सुरंगें या बम खोजने में मदद करते हैं. अगर वो ऐसा न करें तो कई मिलिट्री मिशन खतरे में पड़ जाएं. इन बहादुर कुत्तों की वजह से जवानों की जिंदगियां बच जाती हैं. (फोटोः ट्विटर/इंडियन आर्मी)

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सैन्य कुत्तों की ट्रेनिंग खास तरह से होती है. ये हाथ के इशारों और अलग-अलग तरह के मौखिक आदेशों के आधार पर काम करते हैं. इन्हें ये आदेश इनके हैंडलर देते हैं, जो इनका पूरा ख्याल रखते हैं. (फोटोः गेटी)

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डॉग यूनिट में शामिल होने के लिए सघन मिलिट्री ट्रेनिंग से गुजरना होता है. हर कुत्ते को अलग-अलग तरह के कमांड्स दिए जाते हैं. इन्हें अलग-अलग स्थितियों में अलग-अलग तरह से भौंकने और आवाज निकालने की ट्रेनिंग दी जाती है. साथ ही अपनी जगह बिना पता चले दुश्मन का ठिकाना खोजने की ट्रेनिंग दी जाती है. (फोटोः ट्विटर/इंडियन आर्मी)

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आर्मी डॉग स्क्वॉड ने पहली बार साल 2016 के गणतंत्र दिवस परेड में भाग लिया था. रीमाउंट वेटरीनरी कॉर्प्स (RVC) सेंटर एंड कॉलेज मेरठ कैंट में है. जहां पर इन डॉग्स की ट्रेनिंग पूरी की जाती है. फिर उन्हें मार्च पास्ट की ट्रेनिंग भी जाती है. (फोटोः गेटी)
 

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भारतीय सेना के डॉग यूनिट में सबसे प्रमुखता से जर्मन शेफर्ड और लेब्राडोर की भर्ती की जाती है. क्योंकि ये प्राकृतिक तौर पर ट्रेनिंग को समझने के लिए सक्षम होते हैं. इन्हें सिखाना आसान होता है. साथ ही ये सैनिक द्वारा बताए जाए कमांड को आसानी से मान लेते हैं. (फोटोः गेटी)

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डॉग यूनिट में एक कुत्ते का सर्विस पीरियड 8 से 10 साल होता है. कई बार उसके सेहत और काबिलियत के आधार पर उसे कुछ समय का एक्सटेंशन भी मिल सकता है. लेकिन ऐसा दुर्लभ ही होता है. (प्रतीकात्मक फोटोः इंडिया टुडे आर्काइव)
 

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रिटायर किए गए डॉग्स को संभालना बेहद महंगा होता है. या तो इन्हें किसी को दान कर दिया जाता है. या फिर इन्हें यूथेनाइज कर दिया जाता है. ताकि दुश्मन इनसे किसी भी तरह का संवेदनशील डेटा न निकाल सके. (फोटोः इंडिया टुडे आर्काइव)

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